बाराबंकी: वर्ल्ड ट्रांसप्लांट ओलंपिक गेम्स में तौहीद ने लहराया अपना परचम, ब्रॉन्ज मेडल जीतकर देश का नाम किया रोशन
तौहीद के मुताबिक बचपन से ही उनके अंदर खेलने और देश का नाम रोशन करने की ख्वाहिश थी।
अगर आपके अंदर लगन, दृढ़ इच्छाशक्ति और जज्बा है, तो कोई भी काम आपके लिए बड़ा नहीं। बाराबंकी के रहने वाले तौहीद अहमद ने इसे सच कर दिखाया है। किडनी से जुड़ी गंभीर बीमारी के चलते एक समय उन्हें अपने पसंदीदा खेल फुटबॉल को छोड़ना पड़ा था। इसके बाद तौहीद को अपने जीवन में सिर्फ अंधकार ही दिख रहा था। शायद ही किसी ने सोचा होगा कि वह दोबारा फिट हो सकेंगे, लेकिन फिर भी उन्होंने हिम्मत नहीं हारी और किडनी ट्रांसप्लांट के बाद एक नई शुरुआत की।
उन्होंने अपना खेल बदला और बैडमिंटन में महारथ हासिल की। तौहीद ने अब ऑस्ट्रेलिया के पर्थ में वर्ल्ड ट्रांसप्लांट ओलंपिक गेम में भाग लिया। उन्होंने वहां इस विशेष प्रकार के ओलंपिक में भाग लिया और कांस्य पदक जीतकर देश का नाम रोशन किया है।
किडनी ट्रांसप्लांट करनी पड़ी
दरअसल, तौहीद अहमद के सिर से बेहद कम उम्र में ही उनके पिता का साया उठ गया था। इसके बाद इनको माइग्रेन समेत अन्य कई समस्याएं शुरू हो गईं। जिसके इलाज के लिए उन्होंने कई तरह की दवाओं का सेवन किया। उन्हीं दवाओं के साइड इफेक्ट के चलते इनकी किडनी पर उसका बुरा असर आ गया। जिससे नौबत किडनी ट्रांसप्लांट तक आ गई। आखिरकार उन्हें अपनी किडनी ट्रांसप्लांट करनी ही पड़ी।
करीब 25 देशों ने लिया भाग
तौहीद अहमद ने बताया कि वर्ल्ड ट्रांसप्लांट ओलंपिक गेम में करीब 25 देशों ने भाग लिया था। इन 25 देशों के खिलाड़ियों से मुकाबला करके उन्होंने ब्रॉन्ज मेडल जीता है। तौहीद के मुताबिक बचपन से ही उनके अंदर खेलने और देश का नाम रोशन करने की ख्वाहिश थी। जब उन्हें वर्ल्ड ट्रांसप्लांट ओलंपिक गेम्स के बारे में पता चला तो उन्होंने इसके लिए जान लगा दी।
तौहीद ने कहा- अभी और भी ज्यादा मेहनत करनी
तौहीद के मुताबिक उनकी कैटेगरी में उनसे भी अच्छे-अच्छे प्लेयर हैं। इसलिए अभी उन्हें और भी ज्यादा मेहनत करनी है। क्योंकि 2025 में जर्मनी में वर्ल्ड ट्रांसप्लांट ओलंपिक गेम है। जिसमें उनका मकसद है कि वह पूरी मेहनत से गोल्ड मेडल जीतें और अपने देश का नाम रोशन करें।