जो दी तो सिर्फ 2 घंटे के लिए गयी हो, मगर उसे जीवन भर ख़ुशी ख़ुशी काटने को इंसान तैयार हो गया हो। वो सज़ा जो सज़ा न हो कर के पुरस्कार हो, वो सज़ा जो सज़ा न हो कर के मज़ा हो....
आइये सुनते हैं ऐसी ही एक सज़ा और उसके पीछे की रोचक कहानी को, जिसके मुख्य किरदार हैं छोटे लाल भटनागर, जो आज भी उस सज़ा को काट रहे हैं, जो उन्हें 41 साल पहले महज़ दो घंटे के लिए मिली थी। जी हां सजा भी ऐसी नहीं, बल्कि किताबों के बीच रहने की।
यह रोचक कहानी है जिला पुस्तकालय में रहने वाले बिजनौर के मोहल्ला चाहशीरी निवासी छोटेलाल भटनागर की। जो कलक्ट्रेट में रिकॉर्ड लिफ्टर रहे, 41 साल पहले किसी बात पर छोटेलाल की तत्कालीन डीएम एम रामचंद्रम से नोकझोंक हुई तो डीएम साहब ने छोटेलाल की ड्यूटी शाम को पांच से सात बजे तक जिला पुस्तकालय में बैठने और वहां किताबों का हिसाब किताब रखने की सजा दे दी। उसके बाद न जाने कितने डीएम आए और चले गए, लेकिन 41 सालों से आज भी छोटेलाल भटनागर उस सजा को पुरस्कार समझकर काट रहे हैं। छोटेलाल कहते हैं कि शुरू में लगा कि मेरे साथ गलत हो गया, लेकिन धीरे-धीरे किताबों से ऐसी दोस्ती हुई कि यह सजा पुरस्कार लगने लगी। उन्होंने बताया कि मैं रोज कलक्ट्रेट का काम निपटाता और शाम को पुस्तकालय आकर किताबों के बीच बैठता। कुछ किताबें पढ़ता, तो कुछ अनुभवों को कागजों पर उतारता।
सन 2006 में कलक्ट्रेट से रिटायर हो गया तो पूरा समय पुस्तकालय को समर्पित कर दिया। छोटेलाल की उम्र 75 साल हो गई, लेकिन आज भी सुबह नौ बजे पुस्तकालय आकर बैठ जाते है और शाम तक वहीं रहते हैं।
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