टीएमएच में इलाज के लिए लगेगा पैसा; सरकारी अस्पतालों में व्यवस्था नहीं
भगवान न करें, कोरोना बढ़े अन्यथा इस बार और भयावह रूप ले सकता है। कारण कि इस बार इलाज भी मिलना मुश्किल होगा। टाटा मुख्य अस्पताल (टीएमएच) व टाटा मोटर्स अस्पताल में इस बार कोरोना मरीजों को इलाज कराने के लिए पैसा लगेगा।
कोल्हान के सबसे बड़े सरकारी अस्पताल एमजीएम या फिर परसुडीह स्थित सदर अस्पताल में कोरोना से लड़ने के लिए पर्याप्त संसाधन नहीं है। ऐसे में मरीजों की स्थित क्या होगी, इसका अंदाजा आप खुद ही लगा सकते हैं। एमजीएम अस्पताल में मैन पावर की भारी कमी है। डॉक्टर, नर्स, टेक्नीशियन, सफाई कर्मी सहित अन्य कर्मचारियों की भारी कमी है। एमजीएम में कोविड मरीजों के लिए 110 बेड है। जबकि टीएमएच में लगभग एक हजार बेड लगाया गया था। इसके अलावे आईसीयू, सीसीयू का भी व्यवस्था है। एमजीएम में आईसीयू, सीसीयू नहीं है। ऐसे में गंभीर मरीजों को टीएमएच में भर्ती होना मजबूरी होगी लेकिन इसपर खर्च अधिक होने की वजह से हर कोई देने में असमर्थ होगा।
एक मरीज का खर्च कम से कम एक लाख रुपये
कोविड मरीजों की बढ़ती संख्या को देखते हुए विभाग की तरफ से एक रेट तय किया गया है, ताकि मरीजों को परेशानी नहीं हो। कोविड अस्पताल में अगर कोई बिना लक्षण वाले मरीज भर्ती होते हैं तो उनका एक दिन का चार्ज छह हजार रुपए होगा। इसमें पीपीई किट भी शामिल होगा। वहीं, ऑक्सीजन के साथ एक दिन का खर्च दस हजार रुपये तय किया गया है। इसके साथ ही आइसीयू का चार्ज 15 हजार व आइसीयू में वेंटिलेटर के साथ 18 हजार रुपये देने होंगे। चिकित्सकों का कहना है कि कोरोना मरीजों को अस्पताल में कम से कम 10 दिन भर्ती रहना पड़ता है। ऐसे में कम से कम एक लाख रुपये खर्च आएगा, जो मध्य व निम्न वर्ग के लिए संभव नहीं होगा।
भगवान न करें, कोरोना बढ़े अन्यथा इस बार और भयावह रूप ले सकता है। कारण कि इस बार इलाज भी मिलना मुश्किल होगा। टाटा मुख्य अस्पताल (टीएमएच) व टाटा मोटर्स अस्पताल में इस बार कोरोना मरीजों को इलाज कराने के लिए पैसा लगेगा।
कोल्हान के सबसे बड़े सरकारी अस्पताल एमजीएम या फिर परसुडीह स्थित सदर अस्पताल में कोरोना से लड़ने के लिए पर्याप्त संसाधन नहीं है। ऐसे में मरीजों की स्थित क्या होगी, इसका अंदाजा आप खुद ही लगा सकते हैं। एमजीएम अस्पताल में मैन पावर की भारी कमी है। डॉक्टर, नर्स, टेक्नीशियन, सफाई कर्मी सहित अन्य कर्मचारियों की भारी कमी है। एमजीएम में कोविड मरीजों के लिए 110 बेड है। जबकि टीएमएच में लगभग एक हजार बेड लगाया गया था। इसके अलावे आईसीयू, सीसीयू का भी व्यवस्था है। एमजीएम में आईसीयू, सीसीयू नहीं है। ऐसे में गंभीर मरीजों को टीएमएच में भर्ती होना मजबूरी होगी लेकिन इसपर खर्च अधिक होने की वजह से हर कोई देने में असमर्थ होगा।
एक मरीज का खर्च कम से कम एक लाख रुपये
कोविड मरीजों की बढ़ती संख्या को देखते हुए विभाग की तरफ से एक रेट तय किया गया है, ताकि मरीजों को परेशानी नहीं हो। कोविड अस्पताल में अगर कोई बिना लक्षण वाले मरीज भर्ती होते हैं तो उनका एक दिन का चार्ज छह हजार रुपए होगा। इसमें पीपीई किट भी शामिल होगा। वहीं, ऑक्सीजन के साथ एक दिन का खर्च दस हजार रुपये तय किया गया है। इसके साथ ही आइसीयू का चार्ज 15 हजार व आइसीयू में वेंटिलेटर के साथ 18 हजार रुपये देने होंगे। चिकित्सकों का कहना है कि कोरोना मरीजों को अस्पताल में कम से कम 10 दिन भर्ती रहना पड़ता है। ऐसे में कम से कम एक लाख रुपये खर्च आएगा, जो मध्य व निम्न वर्ग के लिए संभव नहीं होगा।
जिला प्रशासन के सामने यह होगी चुनौती
- टीएमएच में शुल्क लगने से सरकारी अस्पतालों में भीड़ बढ़ेगी। जबकि सरकारी अस्पतालों में सुविधा नहीं है। बेड से लेकर, ऑक्सीजन, वेंटिलेटर, डॉक्टर, नर्स, टेक्नीशियन सहित अन्य कर्मचारियों की भारी कमी है। ऐसे में स्थिति अनियंत्रित होने में देर नहीं लगेगी।
- जिले के सभी सीएचसी-पीएचसी को कोविड सेंटर बनाया गया है लेकिन वहां पर डॉक्टर व कर्मचारियों की संख्या काफी कम है। हाल ही में आउटसोर्स पर तैनात लगभग 200 कर्मचारियों को हटा दिया गया है। इससे स्थिति और भी बिगड़ गई है।
एमजीएम छोड़ जिले में लगभग 50 सरकारी डॉक्टर ही तैनात है। बीते साल इसमें से अधिकांश पॉजिटिव हो गए थे। इससे चिकित्सकों की संकट हो गई थी। इसे देखते हुए जिला प्रशासन ने निजी चिकित्सकों से सहयोग मांगी लेकिन कोई आगे नहीं आया।
- कोरोना की वजह से शहर के अधिकांश निजी नर्सिंग होम बंद हो गए। इससे अन्य मरीजों को भी इलाज मिलना बंद हो गया। कई मरीजों की मौत इलाज के अभाव में हो गई थी।
कोरोना की पहली लहर में जितने लोग मदद को आगे आएं वह अब देखने को नहीं मिलेगा। कारण कि उनकी आर्थिक स्थिति भी पहले जैसा नहीं रह गया है। शुरुआती दौर में हर कोई ने किसी न किसी रूप से मदद की। किसी ने खाना बांटने का काम किया तो कोई पीपीई किट।
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