लखनऊ: मौतों का ग्राफ बढ़ने से श्मशान में बवाल, जेब में हों 20 हजार तभी होगा अंतिम संस्कार, लकड़ियां भी घटीं
शवों के अंतिम संस्कार के दौरान लकड़ी कम पड़ जाने से कुछ लोगों ने हंगामा किया। इसके बाद नगर निगम प्रशासन ने लकड़ी की व्यवस्था कराई और ठेकेदारों को लकड़ी की कमी न होने देने की हिदायत दी।
कोरोना के कठिन दौर में शहर में मौतों का ग्राफ बढ़ता ही जा रहा है। सोमवार को रात आठ बजे तक 130 शव शहर के दो श्मशान स्थलों पर पहुंचे। इसमें ज्यादातर शव संक्रमित माने जा रहे हैं। शवों के अंतिम संस्कार के दौरान लकड़ी कम पड़ जाने से कुछ लोगों ने हंगामा किया। इसके बाद नगर निगम प्रशासन ने लकड़ी की व्यवस्था कराई और ठेकेदारों को लकड़ी की कमी न होने देने की हिदायत दी।
बैकुंठधाम पर सोमवार को 86 शव पहुंचे। इनमें कई संक्रमित माने जा रहे हैं। इनका अंतिम संस्कार विद्युत शवदाह गृह और लकड़ी से बैकुंठधाम पर अलग से बने स्थलों पर किया गया। बैकुंठधाम पर काम करने वाले दीपू पंडित ने बताया कि इधर सामान्य शव भी बढ़े हैं। सोमवार को ऐसे 42 शवों को अंतिम संस्कार किया गया। उधर गुलाला घाट पर कुल 44 शव पहुंचे।
निशातगंज व डालीगंज से लानी पड़ी लकड़ी
बैकुंठधाम पर सामान्य शवों के अंतिम संस्कार के लिए सोमवार सुबह लकड़ी कम पड़ जाने पर अंतिम संस्कार कराने आए लोगों को निशातगंज, रहीम नगर और डालीगंज आदि से लकड़ी खरीद कर लानी पड़ी। जहां इनसे मनमाना दाम वसूला गया। बैकुंठधाम पर अंतिम संस्कार कराने वाले और लकड़ी की टाल वाले दीपू पंडित ने बताया कि अचानक शवों की संख्या बढ़ जाने से मांग के अनुरूप ऐशबाग से लकड़ी नहीं आ पा रही है। कटान बंद होने से यह समस्या हुई है। पहले 15 से 20 शव आते थे, अब 40 आ रहे हैं। घाट पर लकड़ी का रेट 550 रुपये प्रति कुंतल फिक्स है, जबकि बाहर वाले अधिक पैसा वसूल रहे हैं।
जेब में 20 हजार, तभी अंतिम संस्कार
सामाजिक कार्यकर्ता सुमन सिंह रावत सोमवार को सुबह 11 बजे से बैकुंठ धाम पर रिश्तेदार केशव के साथ दाह संस्कार के लिए इंतजार करती रहीं। आठ घंटे तक चले हंगामे के बाद अंतत: खुद ही लकड़ी मंगवाकर दाह संस्कार करवाना पड़ा। सुमन रावत का आरोप है कि जब उनके रिश्तेदार का शव वहां पहुंचा तो एंबुलेंस, लकड़ी, पंडित, सफाई करवाने समेत 20 हजार रुपये का खर्च बताया गया। नियमानुसार किया जाए तो महज 3800 रुपये में दाह संस्कार हो जाता है
समस्या से बचाने को बनाया काउंटर
नगर आयुक्त अजय द्विवेदी का कहना है कि बैकुंठधाम पर लकड़ी का काम पंडे ही करते हैं। उसका रेट तय है। सुबह लकड़ी कम होने की जानकारी पर निरीक्षण किया गया। पंडा ने ऐशबाग से कम लकड़ी आ पाने की बात कही तो लकड़ी मंगवाई गई। किसी को कोई समस्या न हो, इसके लिए एक काउंटर भी बना दिया गया है। विद्युत शवदाह गृह के पीछे जो अतिरिक्त शवदाह स्थल संक्रमित शवों के लिए बने हैं, वहां लकड़ी की कमी नहीं है। वहां नगर निगम खुद लकड़ी देता है।
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