Bihar CoronaVirus Update बिहार में एक तरफ लोग कोरोनावायरस संक्रमण की आपदा से जूझ रहे हैं वहीं दूसरी ओर बाजार उनकी मजबूरी को कैश करने में मानवता की सारी हदें पार कर रहा है। अस्पताल से श्मशान तक हर जगह लूट मची हुई है
अश्विनी, पटना। जिंदगी फरियाद कर रही है, पर कौन सुने? उम्मीद बंधाते दो शब्द सुने बिना इस समाज, इस देश का कोई नागरिक अंतिम यात्रा पर निकल पड़ता है। जहां जिंदगी की उम्मीद है, उस दर से निराश होकर। यह बताते हुए कि साहब! हमें वाकई मदद की जरूरत थी। दृश्य यही है। लोग यहां से वहां दौड़ रहे हैं। आरजू-मिन्नत कर रहे। आपदा का समय है, पर कुछ के लिए अवसर भी। यह कहने में कोई गुरेज नहीं, अन्यथा पांच-छह किलोमीटर तक जाने को एक एंबुलेंस के भाड़े की शुरुआत छह हजार रुपये से क्यों हो? कभी फाइव स्टार में नहीं ठहरे तो यह आपदा वह अवसर भी दे रही है। इलाज के लिए पंद्रह-बीस हजार के कमरे से शुरुआत। और क्या चाहिए? पैकेज पर पैकेज है। ठीक वैसे ही, जैसे खरीदारी हो या कोई समारोह। इस आपदा को अवसर बनाने वालों पर नकेल कसना जरूरी है।
स्वजनों की सांसों को गिनते हुए भटक रहे लोग
आम हो या खास, हर कोई भटक रहा है। एक बेड के लिए तरस रहा है। थक-हार कर किसी चबूतरे या वृक्ष की छांव में स्वजन की सांसों को गिनता हुआ। दिन-दिन भर दौड़ लगाने के बाद भी एक बेड नहीं मिल पाने की मायूसी। किसी प्राइवेट अस्पताल में जगह पा भी ली तो अगले ही दिन ऑक्सीजन का संकट बता बाहर का रास्ता।
अस्पताल से श्मशान तक हर जगह है आफत
सरकारी अस्पताल फुल। नो वैकेंसी का पर्चा चिपका हुआ। मरीजों के आने का सिलसिला जारी है। कहां जाए आम आदमी? खुद को आने वाली परिस्थितियों के लिए तैयार करता हुआ। मनहूस घड़ी भी आ जाती है, पर अभी अंत यहीं पर नहीं। यह तो अंतिम स्थल तक पीछा नहीं छोड़ने वाली। वहां तक के लिए भी जेब ठीक-ठाक ढीली करनी ही होगी। कदम-कदम पर ऐसे ही हालात से जूझते उस समाज के लोग, जहां आफत-विपत में एक दूसरे के लिए दौड़ पडऩे का संस्कार रहा हो। जैसे कहीं गुम हो गया हो। यहां तो बाजार में जिंदगी की कीमत तय हो रही। कोरोना ने भाव कुछ ज्यादा ही बढ़ा दिया है।
...और एक बेचारा निकल पड़ता है ऊपर वाले को रिपोर्ट करने
वक्त इंसानियत को ढूंढ रहा है। कोई फोन तो उठा ले, ढाढस तो बंधा दे, एक खुराक भर ही सही, वही दे दे। लेकिन, नहीं...। कोविड प्रोटोकॉल..., यह रिपोर्ट नहीं चलेगा...। रिपोर्ट पर रिपोर्ट और एक बेचारा निकल पड़ता है ऊपर वाले को रिपोर्ट करने। ऐसे लोगों की भी बेशक कमी नहीं, जो इस आपदा में दिन-रात सेवा भाव से जुटे हैं, पर आपदा को अवसर बनाने वालों पर नकेल भी जरूरी है।
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