एसिड अटैक पीड़िता के इलाज के नाम पर NGO ने 'करोड़ों' कमाए, पीड़िता ने बताया फिर क्या हुआ
रेशमा कुरैशी पर 2014 में तेजाब से हमला हुआ था. उसके बाद वो एसिड अटैक पीड़ितों की प्रतिनिधि बन गईं. मदद के नाम पर कई NGO आगे आए. लेकिन आज वो बिल्कुल अकेली हैं.
मोबाइल पर वीडियो स्क्रॉल करते हुए ऐसे ऐड हर किसी ने देखे हैं जिनमें गैरसरकारी संगठन (NGO) किसी की बीमारी, गरीबी या दुर्दशा दिखाकर दान मांगते हैं. एसिड अटैक की पीड़ित रेशमा कुरैशी (Reshma Qureshi) के नाम पर भी कुछ NGO ने लोगों से पैसे मांगे, लेकिन उन्हें इसका कोई फायदा नहीं दिया गया. रेशमा कुरैशी ने खुद ये आरोप लगाया है.
मीडिया से बात करते हुए रेशमा ने बताया कि उनके लिए अपने रोजमर्रा के खर्चे चलाना मुश्किल हो गया है. उनका आरोप है कि कुछ NGO ने उनके नाम पर ‘करोड़ों रुपये’ जमा किए हैं, लेकिन उन पर एक भी रुपये खर्च ‘नहीं’ किए गए. रेशमा कई बड़े और वैश्विक मंचों पर एसिड अटैक पीड़ितों को संघर्ष करने की प्रेरणा देती रहीं हैं. लेकिन उनके पास बुनियादी जरूरतें पूरी करने के लिए नौकरी नहीं है. फिलहाल रेशमा दिल्ली के एक NGO में रह रही हैं.
जीजा ने फेंका था तेजाब
साल 2014 में रेशमा पर तेजाब से हमला हुआ था. उन्होंने बताया कि उनके जीजा ने ही मुंबई में अपने कुछ दोस्तों के साथ मिल कर उन पर तेजाब फेंक दिया था. इससे उनका चेहरा बुरी तरह से झुलस गया. रेशमा की जान तो बच गई लेकिन उनकी एक आंख खराब हो गई. ये मामला उस वक्त देश में चर्चा का विषय बन गया था. तब रेशमा की मदद के लिए नामचीन हस्तियों के साथ कई NGO भी आगे आए थे. इंडिया टुडे के मुताबिक एक बार रेशमा ने सुपरस्टार शाहरुख खान के साथ भी मंच साझा किया था. शाहरुख किसी NGO से जुड़े थे, जिसने उनके इलाज के लिए मदद भी की थी.
साल 2016 में रेशमा ने न्यूयॉर्क फैशन वीक में फैशन डिजाइनर अर्चना कोचर के लिए रैंप वॉक भी की थी. इसके अलावा वो टेड टॉक्स जैसे कई मोटिवेशनल प्लेटफॉर्म में भाग ले चुकी हैं. उनकी आत्मकथा 'बींग रेशमा' की भी काफी चर्चा हुई थी. इस सबके बाद भी आज रेशमा निराश हैं. उनके पास काम नहीं है. पिता टैक्सी ड्राइवर हैं. उन्होंने बेटी के इलाज पर सारी जमा पूंजी खर्च कर दी. अपनी टैक्सी भी बेंच दी.
'पैसा बनाते हैं NGO'
मीडिया से बात करते हुए रेशमा ने बताया कि एक समय था जब उनके पोस्टर पूरे मुंबई शहर में लगाए गए थे. वो एसिड अटैक पीड़ितों को मेकअप करना सिखाती थीं. रेशमा के मुताबिक उन्हें अंदाजा नहीं था कि उनके नाम पर फंड जमा किया जा रहा है. अब वो बताना चाहती हैं कि कुछ NGO हैं जो उनके जैसे पीड़ितों के नाम पर सिर्फ पैसा बनाते हैं. लाखों-करोड़ों रुपये कूटने के बाद पीड़ितों को छोड़ देते हैं. रेशमा कहती हैं, "मैंने निर्दयता की हद पार होते देखी है. एक NGO जिसने मेरा नाम इस्तेमाल करके करोड़ों रुपये कमाए और फिर पिछले महीने मेरा ट्विटर अकाउंट भी डिलीट कर दिया. जैसे जैसे मैं बड़ी हुई तो समझ आया कि सिर्फ मैं अकेली नहीं हूं जिसे घूमने और टेड टॉक में अपनी बात रखने का मौका मिला है."
उन्होंने आगे बताया, "मेरे इलाज और मेरे भविष्य के लिए न के बराबर रुपये खर्च किए गए. मैंने वो NGO डेढ़ साल पहले छोड़ दिया था. अब मेरे पास बिल्कुल रुपये नहीं हैं. न ही मेरी पढ़ाई पूरी हुई थी और न ही अब मेरे पास नौकरी है. मैंने अपनी लड़ाई के कानूनी तरीके भी अपनाए, लेकिन बिना रुपयों के. मैं अपनी इस लड़ाई में अकेली हूं और मैं इतने बड़े बड़े NGO से अकेले नहीं लड़ सकती. मैंने मेरे नाम का इस्तेमाल कर जमा की गई राशि का पता लगाने के लिए लीगल नोटिस भी भेजा था. जिस पर NGO ने कहा कि उन्होंने अलग अलग जगह वो रुपये खर्च कर दिए."
आखिर में रेशमा ने उन्हें शरण देने वाले NGO का आभार व्यक्त किया और कहा कि ऐसे लोगों की वजह से इंसानियत जिंदा है. उनका कहना है कि उनके जैसे लोगों को ऐसी लोकप्रियता नहीं चाहिए जो बाद में उन्हें ही नुकसान पहुंचाए. उन्हें अपना जीवन जीने के लिए सिर्फ एक नौकरी चाहिए. रेशमा ने कहा कि उन्हें अपनी आंख का इलाज करवाने के लिए रुपयों की जरूरत है. सरकार उनके जैसे लोगों के लिए नौकरी की व्यवस्था करवा सकती है.