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दानिश सिद्दीकी की हत्या: बिगड़ सकते हैं अफगानिस्तान के हालात, तालिबान को लेकर कितनी अलर्ट है भारत सरकार?

जब से अमेरिकी फौजों की वापसी हुई है, अफगानिस्तान में स्थितियां लगातार बिगड़ी हैं। तालिबानी लड़ाकों ने अफगानिस्तान पर कब्जा करने और वहां की सत्ता हथियाने की हिंसक कोशिशें तेज कर दी हैं। हर दिन नए-नए इलाकों पर तालिबानी कब्जा कर रहे हैं और हिंसा बदस्तूर जारी है।

दानिश सिद्दीकी की हत्या: बिगड़ सकते हैं अफगानिस्तान के हालात, तालिबान को लेकर कितनी अलर्ट है भारत सरकार?

अगर आप तालिबानी हमले के शिकार पुलित्जर पुरस्कार से सम्मानित भारत के युवा पत्रकार दानिश सिद्दीकी के इंस्टाग्राम पर उनकी आखिरी तस्वीरें देखेंगे तो आपको कंधार समेत आसपास के इलाकों में तालिबान के दहशत की एक झलक मिल जाएगी।

दानिश लगातार उन खतरनाक इलाकों से गुज़र रहे हैं और उनकी कार के शीशे पर बुलेट्स टकरा रही हैं। हर तरफ से हो रही गोलीबारी के बीच जिस तरह अफगान सुरक्षाबलों की ये गाड़ी उड़ा दी गई और दानिश समेत उसमें सवार तमाम अफगान सैनिक मारे गए, उससे तालिबान के इरादों का पता चलता है।


दानिश की हत्या और तालिबान के मंसूबे 
दरअसल, जब से अमेरिकी फौजों की वापसी हुई है अफगानिस्तान में स्थितियां लगातार बिगड़ी हैं। तालिबानी लड़ाकों ने अफगानिस्तान पर कब्जा करने और वहां की सत्ता हथियाने की हिंसक कोशिशें तेज कर दी हैं। हर दिन नए-नए इलाकों पर तालिबानी कब्जा कर रहे हैं और हिंसा बदस्तूर जारी है। ऐसे में जो भी अफगानिस्तान का समर्थन कर रहा है और तालिबानियों की कार्रवाइयों का विरोध कर रहा है, वह उसके निशाने पर होता है। दानिश सिद्दीकी की मौत उसी की एक मिसाल है।


जिस तरह शंघाई सहयोग संगठन से जुड़े देशों के विदेश मंत्रियों की बैठक में अफगानिस्तान का मुद्दा छाया रहा और तालिबानियों के जिहादी तेवर और हमलों की चौतरफा निंदा होती रही, उससे साफ है कि आने वाले दिन और खतरनाक होने वाले हैं। खासकर शांति की तमाम कोशिशें नाकाम होने और सीजफायर के लगातार उल्लंघन को लेकर पाकिस्तान को छोड़कर तमाम देश खासकर तालिबान को चेतावनी दे रहे हैं।

भारत के विदेश मंत्री एस जयशंकर ने भी तालिबान को हिंसा का रास्ता छोड़ने की सख्त चेतावनी दी है। हालांकि पिछले दो दशकों में जब से अमेरिकी फौजें अफगानिस्तान में बनी रहीं, तालिबान ने अपनी ताकत लगातार मजबूत की है। अपने लड़ाकों को आधुनिक से आधुनिकतम हथियारों की ट्रेनिंग दी है।

तालिबान का इतिहास और अफगानिस्तान 
अगर पीछे लौटें तो 1996 से 2001 तक के पांच साल अफगानिस्तान के लोगों के लिए सबसे खतरनाक और भयानक थे, जब तालिबानियों ने वहां अपना शासन चलाया और दुनिया को ये बताने की कोशिश की इस्लामिक सरकारें कैसे चलती हैं। वहां की महिलाओं के लिए खासकर ये दौर सबसे बुरा था और पूरी दुनिया में तालिबानी सरकार की आततायी नीतियों और क्रूर कानूनों की खुलकर आलोचना हुई, मानवाधिकार संगठन सामने आए और तमाम अंतर्राष्ट्रीय मंचों पर ये मुद्दा छाया रहा।

आखिरकार अमेरिका ने शांति की पहल की अपने हजारों सैनिक भेजे और 2001 से अबतक यानी 20 सालों तक अफगानिस्तान में लोकतंत्र बहाली में मदद की। तालिबान के साथ शांति वार्ताएं होती रहीं, सीजफायर लागू हुआ, लेकिन तालिबान भीतर ही भीतर अपनी तैयारियां करता रहा। उसका मिशन तब भी अफगानिस्तान पर शासन करना था और अब भी है। अमेरिकी दखल का लगातार विरोध करते हुए तालिबान लगातार अमेरिका को अपना सबसे बड़ा दुश्मन मानने लगा।

अस्सी के दशक के अंत में और नब्बे के दशक में अल कायदा का उदय हुआ और ओसामा बिन लादेन दुनिया का सबसे बड़ा आतंकी माना गया। लादेन की अपनी दुनिया थी, लेकिन तालिबान उसे लगातार मदद देता रहा। अफगानिस्तान और पाकिस्तान के पेशावर से ओसामा अपनी गतिविधियां चलाता और तमाम आतंकी संगठनों की मदद करता, अपने सबसे बड़े दुश्मन अमेरिका पर हमले को लेकर रणनीतियां बनाता।

9/11 के नाम से मशहूर हो गए वर्ल्ड ट्रेड टावर और पेंटागन पर हुए हमले आज भी अमेरिका समेत पूरी दुनिया के लिए एक भयानक सपने की तरह हैं। लेकिन अमेरिका ने बीस सालों तक अफगानिस्तान में अपनी फौज रखी और शांति की कोशिशें जारी रहीं, लेकिन अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति डोनॉल्ड ट्रंप ने जाते-जाते ये ऐलान कर दिया कि अफगानिस्तान से अमेरिकी फौज जनवरी 2021 तक वापस आ जाएगी।

दरअसल,उनका तर्क था कि आखिर कबतक अमेरिका अपनी फौज को अफगानिस्तान में रख सकता है। अब अफगानिस्तान को अपनी समस्या खुद हल करनी चाहिए, वैसे अमेरिका बाहर से उसका समर्थन करता रहेगा।

बहरहाल जनवरी की टाइमलाइन निकल गई और बाइडन के राष्ट्रपति बनने के 6 महीने बाद आखिरकार अमेरिकी सैनिक वापस आ गए।

अमेरिकी फौज की वापसी और अफगानिस्तान के हालात 
उधर जब से अमेरिकी फौज की वापसी शुरू हुई तो अप्रैल से ही अफगानिस्तान में तालिबान ने तेजी से अपने पांव पसारना शुरू कर दिया। खबर है कि तालिबान अफगास्तिान पर करीब 80 हजार लड़ाकों की मदद से सत्ता कब्जाना चाहता है। पिछले चार महीने के दौरान उसने जंग छेड़ रखी है और 1100 से ज्यादा अफगानी सैनिकों और करीब चार हजार आम लोग इसके शिकार हो चुके हैं।

तालिबान के प्रमुख मौलवी हैबतुल्लाह अंखुजादा के नेतृत्व में तालिबान कांधार से लेकर काबुल तक हमले कर रहा है। तालिबान ये भी दावा कर रहा है कि उसने अफगानिस्तान के तकरीबन 85 फीसदी जमीन पर कब्जा कर लिया है। तालिबानी प्रवक्ता ये भी कह रहे हैं कि अफगानिस्तान के 421 में साढ़े तीन सौ जिले तालिबान के पास आ चुके हैं। जमीनी हकीकत क्या है, ये साफ तौर पर नहीं कहा जा सकता। हालांकि युद्ध में ऐसे तमाम दावे होते हैं। फिर भी इसमें संदेह नहीं कि अफगानिस्तान के लिए इस वक्त बहुत ही मुश्किल वक्त है।

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