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Sunday, November 17, 2024
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मां को मारने के बाद मैंने उसका सिर गोद में रख लिया... दिल्ली के कातिल बेटे की 77 पेज की चिट्ठी हिला देगी

दिल्‍ली के रोहिणी में एक बेटे ने बाइक की केबल से मां का गला घोंट दिया। चार दिन तक शव के साथ रहा। इस दौरान गंगाजल से उसका मुंह धोया और गीता का 18वां अध्‍याय पढ़ा। 77 पन्‍नों का स्‍यूसाइड नोट लिखा और अपनी जान दे दी।

मां को मारने के बाद मैंने उसका सिर गोद में रख लिया... दिल्ली के कातिल बेटे की 77 पेज की चिट्ठी हिला देगी

यह वारदात है घर की चारदीवारी में घिरे अवसाद की। ‘क्षितिज' नाम था उसका। नाम की तरह ही बचपन से ‘क्षितिज’ को छूने की चाह थी। मगर, जीवन के हिसाब से सब कुछ 'ठीक-ठाक' नहीं था। चारदीवारी के अंदर की हकीकत का पता उस 250 पेज के रजिस्टर से चलता है जो क्राइम सीन पर पुलिस को मिला। उस रजिस्टर के आखिरी 77 पेज में जो लिखा है, वह हत्या और आत्महत्या की खतरनाक कहानी है। उन 77 पेज पर पेंसिल से लिखी प्रमुख बातें आप भी पढ़िए, समझिए और डिप्रेशन के लक्षण को इग्नोर न करिए। चार दिन में लिखे 77 पेज की प्रमुख हूबहू बातें कुछ ऐसी थीं।

'बाइक की केबल से मां का गला घोंटा ताकि मरने से तकलीफ न हो'
'दो साल से मैं मरना चाह रहा था, मैं मरने से पहले अपनी मां को उस दुख से आजाद करना चाहता हूं हर इतवार को मां सत्संग में जाती थीं। इस बार भी (पिछले हफ्ते) मां जब आईं। थोड़ी कहासुनी, थोड़ी हंसी भी हुई थी। मां की आंखों में जाला आ गया है, लगता है मोतियाबिंद है। अब तो मैं मर जाना चाहता हूं। गुरुवार है आज। बाइक की केबल का इस्तेमाल मैंने मां के गले को घोंटने के लिए किया है। ताकि मां को मरने से पीड़ा न हो...।'

‘जैसे ही मैंने वायर कसा। मां 4 से 5 सेकंड में निढाल होकर गिर गईं।... मुझे पता था दिमाग में ऑक्सिजन नहीं पहुंचने पर मौत हो जाती है।’

‘मां के गिरते ही मैंने उसका सिर गोद में रख लिया। आठ से दस मिनट तक गला दबा कर रखा। मैं मुंह दबाकर रोये जा रहा था। गुरुवार दिन भर और पूरी रात रोता रहा हूं। मुझे पापा की बहुत याद आ रही है। मरने के बाद भी मां की आंखें खुली थीं। मैंने बंद करने की कोशिश की। मगर हो न सकीं।’

मां के चेहरे को गंगाजल से धोया, गीता का 18वां अध्‍याय पढ़ा
‘... शुक्रवार है आज। मां के शव को देखा नहीं जा रहा। मैंने अपनी मां के चेहरे को गंगाजल से नहलाया है। उनके पास बैठकर भगवत गीता का 18वां अध्याय पढ़ा। पूरी भगवत गीता नहीं पढ़ सका हूं, मैंने भगवत गीता को मां के सीने पर रख दिया है।’

‘अब बारी थी मेरे सुसाइड करने की। पहले मैंने पिस्टल खरीदने की कोशिश की। नहीं मिली। फिर इलेक्ट्रिक कटर का विचार आया है। आज बाजार गया हूं। दो दुकानदार से इलेक्ट्रिक कटर मांगा। दोनों ने ब्लेड नहीं दिए। पता नहीं क्यों मेरे से अजीब सवाल जवाब करने लगे, कि किस काम के लिए ब्लेड चाहिए। रात को घर लौटा था। मां के शव के पास खूब रोया हूं। पापा होते तो क्या होता।’

‘मां की मौत को आज 71 घंटे हो चुके हैं। बदबू आने लगी है। मां की गर्दन को कटर से काट दिया है (शरीर से अलग नहीं है)। शुक्रवार शाम से शव में बदबू आने लगी थी। मां के शव को बाथरूम में घसीट कर ले गया। दरवाजा बंद कर दिया है ताकि बदबू न आए। मैं बस, सुसाइड नोट पूरा करना चाहता हूं। बदबू घर में हो चुकी है। आज शनिवार है। तीन दिन से खाली पेट हूं। कुछ खाया ही नहीं। मुझे याद आया रसोई में मैंने गरम पानी पीने को रखा है।’

'अब मैं मरने की तैयारी कर रहा हूं...'
‘कमरे में बदबू नहीं रुक रही। इससे मेरी भी तबीयत बिगड़ने लगी है। मैंने लकड़ी की पेंसिल के बुरादे को जलाया है। धूपबत्ती जलाई है। घर में एक जायफल रखा था, उसे भी जलाया है। सारा डियो भी छिड़क दिया। फिर भी, मैं मास्क लगाकर सुसाइड नोट पूरा करुंगा। आज रविवार है। इस समय दोपहर के दो बज रहे हैं। अब तक तीन दिन से प्रॉपर्टी डीलर फ्लोर किराए पर दिखाने के लिए तीन बार किराएदारों के साथ आ चुका है। लेकिन आज हर हालत में नोट पूरा कर लूंगा।’

‘आज इतवार है, मां को सत्संग जाना है। मां की सहेली बार बार फोन कर रही है। पहले मां के फोन पर अब मेरे फोन पर घंटी बज रही है। मैंने फोन उठा लिया। मां की सहेली पूछ रही हैं मिथलेश फोन नहीं उठा रही हैं। कहां हैं। मैंने उनसे कह दिया कि मां तो मर चुकी हैं, मैंने चार दिन पहले ही मार दिया, अब मैं मरने की तैयारी कर रहा हूं।’

‘यह सब देखना बहुत डरावना लगता है। पापा के जाने के बाद मां के जीजा ने हमारी पिता की तरह देखभाल की। इसलिए मैं घोषणा करता हूं कि मेरे मरने के बाद मेरी बाइक (नंबर, चेसिस नंबर) उनके नाम होगी। मेरी इच्छा है कि मां का अंतिम संस्कार मेरी मौसी करें।’

'क्लास में सबसे डरपोक, दब्बू बच्चा था'
‘परवरिश अच्छी हुई। पापा की सरकारी नौकरी थी। नामचीन स्कूल में पापा ने पढ़ाया। बाद में इग्नोर करने लगे। क्लास में सबसे डरपोक, दब्बू बच्चा था। दोस्त के नाम पर दो ही दोस्त थे। मजाक उड़ाते थे। कई बार टीचर से शिकायत की। लेकिन कोई नहीं सुनता था। स्कूल बस में चढ़ते उतरते समय मेरे अंदर अजीब सा डर, शर्म, घबराहट रहती थी।’

‘मेरी मां मेरी उम्मीद थीं। पापा के जाने के बाद मां और मैं अकेले पड़ गए। मेरे पापा हम सबको ऐसे समय में छोड़कर चले गए, जब हमको सबसे ज्यादा जरूरत थी।’

'14 साल बाद मेरा जन्म हुआ था'
‘मेरी अच्छी परवरिश के लिए मां ने सिलाई भी की। मां कहती थी कुछ ट्यूशन छोटे बच्चों को पढ़ाना शुरू कर दे। सुनकर मैं डर गया था। दसवीं में था। पिता की मौत हो गई। मैं अपने माता पिता के यहां 14 साल बाद जन्मा था। इकलौता बेटा था। दिल्ली यूनिवर्सिटी के एसओएल में एडमिशन लिया। लेकिन किस्मत धोखा दे गई, दो बार फिसल गया। डिप्रेशन रहता है। एक रात, दो रात, तीन रात, पांच रात तक जगा रहा हूं। नींद नहीं आती। कई बार बेहोश सा पड़ा रहता हूं। बीमारियां मेरे अंदर भरती जा रही हैं। मां कई बार टोकती थीं। मां हाई बीपी से परेशान रहती हैं। मेरे पापा बहुत बहादुर थे। मां बताती थीं जब मैं छोटा था, पापा गोद में लेकर अस्पताल गए। वहां बंदर गोद से मुझे खींच कर ले जाना चाहते थे लेकिन पिता ने कस कर पकड़े रखा। बंदरों को भगा दिया।’

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