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बातचीत: आप ऑस्कर जीत के आ जाओ, बोलने वाले फिर भी कमियां निकाल लेंगे: जान्हवी कपूर

एक्ट्रेस जान्हवी कपूर ने वुमन सेंट्रिक फिल्में करके बेहद कम समय में अपनी एक अलग पहचान बना ली है। हालांकि जान्हवी को कई बार उनकी फिल्म चॉइस के कारण निशाने पर लिया जाता रहा है।

बातचीत: आप ऑस्कर जीत के आ जाओ, बोलने वाले फिर भी कमियां निकाल लेंगे: जान्हवी कपूर

चाहे 'गुंजन सक्सेना' हो या 'रूही', ऐक्ट्रेस जाह्नवी कपूर अपने करियर के शुरुआत से ही केंद्रीय भूमिकाओं वाली फिल्में कर रही हैं। इसी कड़ी में अपनी अगली फिल्म 'गुड लक जेरी' में वह एक बिहारी माइग्रेंट लड़की जेरी के रोल में हैं। इसी सिलसिले में हुई बातचीत में जाह्नवी से फिल्म के अलावा, पापा बोनी कपूर संग फिल्म मिली, बहन खुशी के डेब्यू और सारा अली खान संग दोस्ती पर खास बात की गई। 25 साल की जान्हवी कपूर ने 2018 में फिल्म 'धड़क' से बॉलीवुड में डेब्यू किया था। 4 साल में जान्हवी ने अपनी अदाकारी और अलग-अलग किरदारों से चौंकाया है। हालांकि उन्हें कई बार उनकी फिल्म चॉइस के लिए टारगेट भी किया गया। जान्हवी का कहना है कि वह अपना काम ईमानदारी से करती हैं, लेकिन लोगों का क्या है, वो तो ऑस्कर जीत आओ, तब भी कमियां निकाल लेंगे। पढ़िए जान्हवी कपूर से बातचीत के अंश:

'गुड लक जेरी' में जेरी की दुनिया आपकी दुनिया से बिल्कुल अलग है। उसमें ढलने के लिए, उसे समझने के लिए क्या तैयारी की?
काफी तैयारी करनी पड़ी। जेरी एक बिहारी लड़की है, जिसे लगता है कि इस दुनिया में जिंदा रहने का यही तरीका है कि चुपचाप सिर झुकाकर काम करो, पर उसे जिंदगी में आगे भी बढ़ना है। वह फिल्म के दौरान खुद को ढूंढती है और उसे अहसास होता है कि उसे सहमी हुई रहने की जरूरत नहीं है। मैं अपने अंदर की जेरी को बाहर ला सकती हूं, जो मजबूत, शातिर, लड़ाकू है और वो अपने परिवार के लिए कुछ भी करेगी। इसके लिए पहले तो मुझे बिहारी बोली, लहजे पर काम करना पड़ा। मेरे कोच बिहार के थे, तो उनसे बिहार की संस्कृति के बारे में सीखा। जब एक बिहारी फैमिली माइग्रेट होकर पंजाब आती है, तो उन पर क्या गुजरती है। उनकी प्राथमिकताएं क्या होती हैं, हालात क्या होते हैं, सपने क्या होते हैं, इन सबके बारे में काफी समझा।

आपने इस किरदार से कुछ जुड़ाव भी महसूस किया? क्योंकि पहली फिल्म धड़क के वक्त आप भी काफी शर्मीली थीं, पर गुंजन सक्सेना के वक्त आपमें एक आत्मविश्वास दिखा। आपके परिवार में भी जब (मम्मी श्रीदेवी का निधन) वो दुर्भाग्यपूर्ण वाकया हुआ, आप अपने परिवार का मजबूत स्तंभ बनीं? आपने कैसे उस वक्त सब कुछ हैंडल किया?
देखिए, किसी भी इंसान की जिंदगी में जब भी ऐसी दिक्कत आती है या जब भी वे मुश्किल दौर से गुजरते हैं, उन्हें लगता है कि उनकी जिंदगी की समस्या सबसे बड़ी है, लेकिन सच ये है कि हर इंसान की जिंदगी में कुछ न कुछ हो रहा है, जिससे वे गुजर रहे हैं और यही जिंदगी है। हम बस यह कर सकते हैं कि हम आगे बढ़ सकते हैं। अपने परिवार को खुश रख सकते हैं, हमारे लिए जो जरूरी है उसे ईमानदारी से कर सकते हैं। ऐसे काम कर सकते हैं, ऐसे इंसान बन सकते हैं, जिस पर आपको गर्व हो।

'गुंजन सक्सेना', 'रूही', 'गुड लक जेरी', 'मिली', आप दूसरी ही फिल्म से टाइटल रोल कर रही हैं। क्या ये सोची-समझी चॉइस है कि ऐसे मजबूत और सेंट्रल रोल ही करूंगी? इतनी जल्दी फिल्म को अपने कंधों पर उठाने का जिम्मेदारी बड़ी नहीं लगी?
हां, शायद थोड़ा टाइम लेना चाहिए था। देखिए, मैंने इतना सोचा नहीं, मुझे ये कहानियां अच्छी लगीं। मुझे लगा कि इस किरदार में मुझे बहुत सीखने को मिलेगा तो मैंने सोचा कि करके देखते हैं। बस इतना ही था। निश्चित तौर पर ऐसे रोल करने पर आपकी जिम्मेदारी बढ़ जाती है, लेकिन मुझे ये अहसास तभी होता है जब प्रमोशन में लोग पूछते हैं कि आपके कंधों पर फिल्म है। मेरा मानना है कि एक अच्छी फिल्म बस अच्छी फिल्म होती है। इससे फर्क नहीं पड़ता कि उसका लीड लड़का है या लड़की। इस रोल में अगर कोई लड़का होता तो यही दबाव वो भी महसूस कर रहा होता।

क्या इस बात की राहत है कि फिल्म ओटीटी पर आ रही है, तो बॉक्स ऑफिस का टेंशन नहीं है। आप थिएटर और ओटीटी के बीच क्या फर्क मानती हैं? दूसरे, बॉक्स ऑफिस के गणित में कितनी रुचि लेती हैं?
हां, इस बात की राहत तो है कि फिल्म ओटीटी पर आ रही है। मेरा मानना है कि थिएटर रिलीज स्टारडम को ज्यादा बढ़ावा देता है, क्योंकि वो ऑडियंस के मन में एक लार्जर दैन लाइफ वाला अहसास लाता है। वहीं, ओटीटी में ये सुविधा होती है कि जब चाहो फिल्म देख सकते हो, जब चाहो रोक सकते हो। लेकिन अगर आपकी कहानी अच्छी है, आपका काम अच्छा है तो चाहे उसे फोन पर देखें, टीवी पर या आप बड़े पर्दे पर, आपकी मेहनत दिखेगी और हमारी कोशिश यही है कि हम अच्छा काम करें। बॉक्स ऑफिस बिजनेस के बारे में मैं बचपन से सुनती रही हूं, क्योंकि पप्पा (बोनी कपूर) प्रड्यूसर हैं तो वे बात करते रहते हैं कि इस फिल्म का बिजनेस क्या है, उसका क्या है। ये हमारे घर पर बहुत कॉमन रहा है, पर मेरा काम क्रिएटिव ज्यादा है तो उस पर ज्यादा फोकस करती हूं।

पापा के साथ आप पहली बार फिल्म 'मिली' कर रही हैं, वो कितना स्पेशल हैं? आपके पापा इतने सालों से इंडस्ट्री में हैं तो उन्होंने कुछ सीख दी?
उन्होंने मुझे सिखाया कि जो भी करो, दिल से करो और अगर किसी काम में आप अपना सौ फीसदी नहीं दे पा रहे हो तो वो काम मत करो। मिली बहुत स्पेशल है, क्योंकि ये हमारा साथ में पहला प्रोजेक्ट है। ये कहानी उनके दिल के बहुत करीब है। पता नहीं क्यों उनके दिल को ये कहानी बहुत छू गई। उन्होंने कहा कि उनके हिसाब से मिली एक मासूम लड़की है, जो अपने पापा के लिए कुछ भी करेगी और उन्हें लगता है कि मैं भी वैसी ही हूं, इसलिए मैं इस रोल के लिए सही रहूंगी, तो मैंने उनके विजन के साथ न्याय करने की कोशिश की है और उम्मीद करती हूं कि ऑडियंस को भी मेरा काम पसंद आए।

निजी जिंदगी में आपके लिए परिवार कितनी अहमियत रखता है?
सबसे ज्यादा। परिवार सबसे ज्यादा इंपॉर्टेंट है। जिंदगी में आप कुछ भी करो, जितनी भी ऊंचाई तक पहुंच जाओ या जिंदगी जितनी भी झंड हो जाए, परिवार है तो सबकुछ है।

आपकी बहन खुशी भी ऐक्टिंग में आ रही हैं। आपको अब अनुभव है कि इंडस्ट्री कैसे चलती है? नेगेटिविटी, ट्रोलिंग भी होती है, तो आपने उन्हें कुछ टिप्स दिए?
खुशी मेरे से ज्यादा समझदार है। उसे किसी भी सलाह की जरूरत नहीं है। अभी भी शायद मुझे इन चीजों से फर्क पड़ जाए, पर वह परवाह नहीं करती है। वह ज्यादा माहिर है।

वैसे, 'गुंजन सक्सेना' में लोगों को आपकी मेहनत दिखी। ऐसे में, क्या अब ट्रोलिंग वगैरह खत्म हुई या अब भी उसका सामना करना पड़ता है?
नहीं, नहीं। लोगों को जब बोलना है तो आप ऑस्कर जीतकर भी आ जाओ, तब भी लोग कुछ न कुछ वजह ढूंढ ही लेते हैं बोलने के लिए, पर आपको खुद को पता होना चाहिए कि आपने ईमानदारी से काम किया है या नहीं। हर बार ऐसा होता है कि आप कुछ न कुछ ज्यादा या कम कर सकते थे। 'गुंजन सक्सेना' में हमने बहुत ईमानदारी से काम किया, पर मैं यकीन से कह सकती हूं कि कुछ चीजें मैं और अच्छे से कर सकती थी और ये मुझे हर प्रोजेक्ट के साथ लगेगा। मैं बस ये चाहती हूं कि मैं ऑडियंस को इतनी तो पसंद आती रहूं कि वे मेरे काम को देखते रहें। 


आपने और सारा अली खान ने जब एक ही साल डेब्यू किया था, तो आप दोनों की काफी तुलना होती थी। वहीं, अब आप दोनों की दोस्ती चर्चा में रहती है। ये बॉन्डिंग कैसे बनी?
हम एक दूसरे को बहुत पहले से जानते हैं। करीब छह-सात साल से। इंडस्ट्री में रहकर या जिस दुनिया से हम आए हैं, कई बार हमें लगता है कि हम एक-दूसरे को अच्छे से समझ पाते हैं। मुझे उसके साथ बहुत मजा आता है और उम्मीद करती हूं कि उसे भी मेरे साथ मजा आता है। हम आसानी से एक दूसरे से घुल मिल गए। वो अपनी जिंदगी में जब अच्छा करती है तो मुझे खुशी मिलती है और मैं ये आत्मविश्वास के साथ कह सकती हूं कि अगर मैं जिंदगी में कुछ अच्छा करूंगी तो वो भी मेरे लिए इतनी ही खुश होगी। ये भरोसा हर दोस्ती में होना चाहिए।

अपनी मम्मी श्रीदेवी की दी हुई कोई ऐसी सीख है, जिसे आपने गांठ बांध लिया हो?
बिल्कुल। उन्होंने सिखाया था कि सबसे जरूरी बात ये है कि आप खुद की नजर में और अपने मां-बाप के नजर में अच्छे इंसान बनो। बाकी सारी चीजें बाद में आती हैं।

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