कोविड से हुए रिवर्स माइग्रेशन का असर:फैशन रिटेलर्स की सेल्स को छोटे शहरों में मिला बड़ा सपोर्ट; मोबाइल डेटा, सोशल मीडिया और ई-कॉमर्स का बड़ा हाथ
अगर आप किसी छोटे शहर में रहते हैं और अच्छा पहनने-ओढ़ने के शौकीन हैं तो आपको यह सुनकर अच्छा लगेगा। कोविड के चलते रिवर्स माइग्रेशन हुआ है यानी बड़े शहरों से बड़ी संख्या में लोग होमटाउन लौटकर आए हैं। इसको देखते हुए फैशन रिटेलर्स ने छोटे शहरों पर फोकस बढ़ा दिया है क्योंकि उनको वहां बढ़िया पहनने-ओढ़ने वालों से अच्छा रेस्पॉन्स मिल रहा है। ऐसे में कपड़ों के फेमस ब्रांड बेनेटन ने जो 40 नए स्टोर की प्लानिंग की है उनमें से 70% टीयर-3 और टीयर-4 शहरों में खोलना तय किया है।
रिलायंस ट्रेंड्स, पैंटालूंस, ली, रैंगलर और लिवाइस का कारोबार ठंडा पड़ा
कोविड के चलते हुए लॉकडाउन ने मेट्रो और बड़े शहरों पर फोकस वाले फैशन रिटेलर्स की हवा निकाल दी है। रिलायंस ट्रेंड्स, पैंटालूंस, ऑरेलिया, ली, रैंगलर और लिवाइस जैसे दिग्गजों का कारोबार वहां ठंडा पड़ गया है। उनको बिहार के गया, मुजफ्फरपुर और डेहरी-ऑन-सोन, उत्तराखंड के हल्दवानी, कर्नाटक के बेलगावी और मैंगलुरू और महाराष्ट्र के नासिक जैसे शहरों में सपोर्ट मिला है। फैशन रिटेलर्स के मुताबिक, वहां उनकी सेल्स को सस्ते मोबाइल डेटा, सोशल मीडिया और ई-कॉमर्स से बढ़ावा मिला है।
मेट्रो में फैशन रिटेलर्स की सेल्स अब भी कोविड के पहले वाले लेवल से 30% नीचे
जहां तक मेट्रो शहरों में फैशन रिटेलर्स की सेल्स की बात है तो वहां उनकी बिक्री अब भी कोविड के पहले वाले लेवल से 30% नीचे है। ऐसे में उन फैशन रिटेलर्स को छोटे शहरों की सेल्स में हुई बढ़ोतरी का सपोर्ट मिल रहा है। बड़े शहरों में ली और रैंगलर के डेनिम ब्रांड्स की सेल्स में 65-75% रिकवरी हुई है, जबकि छोटे शहरों में उनकी बिक्री बेहतर होकर 95% तक पहुंच गई है।
छोटे शहरों के लोगों के पास मेट्रो वालों से बहुत ज्यादा खर्च करने लायक पैसा
भारत में ली और रैंगलर ब्रांड की फ्रेंचाइजी कंपनी एस टर्टल के CEO नितिन छाबड़ा कहते हैं, 'छोटे शहरों के लोगों के पास मेट्रो वालों से बहुत ज्यादा खर्च करने लायक पैसा है। उनमें अच्छा पहनने ओढ़ने की चाहत मेट्रो शहरों के लोगों जितनी है।’
लिवाइस के साउथ एशिया, मिडिल ईस्ट, नॉर्थ अफ्रीका के एमडी संजीव मोहंती के मुताबिक, 'IT सेक्टर में काम करने वाले बहुत से लोग छोटे शहरों में रहकर काम कर रहे हैं। लोग कहीं आ-जा नहीं रहे हैं, सैर-सपाटा नहीं कर रहे हैं, खाने-पीने नहीं निकल रहे हैं। ऐसे में वे फैशन, फुटवेयर और ब्यूटी प्रॉडक्ट्स पर खर्च कर रहे हैं।'
छोटे शहरों में किराया और सैलरी का खर्च कम होने से मुनाफा ज्यादा होता है
इन सबके बीच छोटे शहरों में कई फैशन रिटेलर का ग्रोथ रेट कोविड से पहले वाले लेवल पर पहुंच गया है। ये छोटे शहर उनकी कारोबार विस्तार की योजना का हिस्सा बन रहे हैं। फैशन रिटेलर्स का कहना है कि छोटे शहरों में किराया और सैलरी का खर्च कम होने से मुनाफा ज्यादा होता है। बड़े शहरों में स्टोर का किराया सेल्स के 35-40% तक होता है जबकि टीयर-2 और टीयर-3 में 10-15% तक रहता है।
छोटे शहरों में लॉयल्टी प्रोग्राम चलते हैं, वहां मेट्रो जैसा उतावलापन नहीं होता
रिलांयस ट्रेंड ने एक लाख से कम आबादी वाले शहरों में अपनी मौजूदगी तेजी से बढ़ाई है। कंपनी के CEO अखिलेश प्रसाद के मुताबिक, 'वर्क फ्रॉम होम के चलते शहरों से लोगों के लौटने पर हमें अच्छा पहनते ओढ़ने वाले कस्टमर मिल रहे हैं और होमटाउन में भी उनके अच्छा खर्च करने की उम्मीद है।'
बेनेटन के CEO संदीप चुग कहते हैं, 'छोटे शहरों में लॉयल्टी प्रोग्राम खूब चलते हैं, क्योंकि वहां लोगों में मेट्रो वालों जितना उतावलापन नहीं होता। हम मेट्रो शहरों में 4,000 रुपए की खरीदारी पर 10% वाला डिस्काउंट छोटे शहरों में 2000 रुपए पर देते हैं।'
सुविधाजनक मार्केटिंग, एक्सचेंज पॉलिसी और बेहतर लॉयल्टी प्रोग्राम ला रहे हैं
छोटे शहरों में लोगों की दिलचस्पी ब्रांडेड कपड़ों में बढ़ने से फैशन रिटेलर्स भी उनके हिसाब से पॉलिसी बना रहे हैं। ये सुविधाजनक मार्केटिंग, एक्सचेंज पॉलिसी और बेहतर लॉयल्टी प्रोग्राम ला रहे हैं। कम दाम की प्रॉडक्ट रेंज के अलावा उनके विज्ञापन के लिए लोकल सेलेब्रिटी ला रहे हैं।
वीमार्ट रिटेल के चेयरमैन ललित अग्रवाल के मुताबिक, 'छोटे शहरों में लोग मौज मजे के लिए खरीदारी नहीं करते। शॉपिंग उनके लिए इनवेस्टमेंट जैसा होता है। उनके लिए प्रॉडक्ट की एक्सचेंज डेट बीतने के एक दो दिन बाद भी बदली मायने रखती है।'
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