अयोध्या: राजस्थान की गायों के देसी घी से होगी रामलला की पहली आरती, 1200 किलोमीटर दूर से लाया गया 650 किलो घी
रामलला की पहली आरती के लिए 650 किलो घी अयोध्या लाकर श्रीराम मंदिर ट्रस्ट को सौंप दिया गया है। इसे रथों पर रखकर लाया गया है।
नए मंदिर में रामलला की पहली आरती राजस्थान के जोधपुर से आए घी से होगी। गुरुवार को राजस्थान से 650 किलो घी अयोध्या लाया गया। खास बात यह है कि घी ट्रेन, बस या कार में नहीं, बल्कि रथ (बैलगाड़ी) से 10 दिन में 1200 किलोमीटर की दूरी तय कर लाया गया है।
कारसेवकपुरम में श्रीराम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट को यह घी समर्पित किया गया है। रथ के साथ ही 108 छोटे शिवलिंग भी लाए गए हैं। इस रथ को पंचकोसी परिक्रमा भी कराई गई। श्रीरामजन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट के महासचिव चंपत राय ने बताया कि जिन संत महापुरुष के संकल्प से यह गो घृत अयोध्या पहुंचा है, उनके प्रति हम कृतज्ञता व्यक्त करते हैं। जोधपुर की धरती को प्रणाम करते हैं।
दो नवंबर 1990 को दिगंबर अखाड़ा के सामने जब गोली चली थी, उसमें दो लोग शहीद हुए थे। उनमें प्रो़ महेंद्र अरोड़ा जोधपुर के थे। उनके साथ जोधपुर के मथानिया गांव का रहने वाला छोटा बालक भी था। उसका नाम सेठाराम माली था। ये गोघृत वहीं से आया है। शायद इनकी आत्माओं ने यह प्रेरणा दी होगी। ये कहते हुए चंपत राय भावुक हो उठे।
650 किलो घी जोधपुर के बनाड़ स्थित श्रीमहर्षि संदीपनी रामधर्म गोशाला में बनाया गया है। महर्षि संदीपनी ने बताया कि उन्होंने 20 साल पहले संकल्प लिया था कि अयोध्या में जब भी राममंदिर बनेगा, उसके लिए गाय का शुद्ध देसी घी वो लेकर जाएंगे। इसी बीच वर्ष 2014 में उन्होंने गायों से भरे एक ट्रक को रुकवाया, जो जोधपुर से गोकशी के लिए ले जाया जा रहा था। ट्रक में करीब 60 गायें थीं। इन गायों को छुड़वाया और आस-पास की गोशालाओं में ले गए। सभी ने इन गायों को रखने से मना कर दिया। अंत में उन्होंने निर्णय लिया कि वे खुद गोशाला शुरू करेंगे। इन गायों को पालेंगे।
जड़ी-बूटियों से सुरक्षित रखा घी
ये संकल्प भी था कि जितना भी घी होगा, उसे वे बैल पर ले जाएंगे। शुरुआत में मटकी में घी एकत्र किया। गर्मी की वजह से घी पिघलकर बाहर आने लगा। मटकी में भी दरारें आने लगीं। एक दो बार तो घी भी खराब हो गया। इस पर पता चला कि पांच अलग-अलग जड़ी बूटियों के रस से घी को कई सालों तक सुरक्षित रखा जा सकता है। ऐसे में हरिद्वार से ब्राह्मी व पान की पत्तियों समेत अन्य जड़ी-बूटियां लेकर आए। इनका रस तैयार कर घी में मिलाया। इसके बाद इस घी को स्टील की टंकियों में डालकर एसी के जरिये 16 डिग्री तापमान में रखा। सुरक्षित स्टोरेज का ही नतीजा है कि नौ साल बाद भी घी पहले जैसा रहा।