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गुजरात में RTI लगाने की सजा- 10 पर आजीवन बैन, देश के पहले सूचना आयुक्त हबीबुल्ला ने उठाए सवाल

गुजरात सूचना आयोग ने दस लोगों पर आरटीआई के जरिए सवाल पूछे जाने को लेकर प्रतिबंध लगाया है। आयोग ने इस कार्रवाई के पीछे हवाला देते हुए कहा है कि ये लोग सवाल पूछने के बहाने महज सरकारी कर्मचारियों को परेशान करने का काम करते थे। वहीं इसको लेकर एक सूचना आयुक्त ने ही सवाल खड़े किए हैं।

गुजरात में RTI लगाने की सजा- 10 पर आजीवन बैन, देश के पहले सूचना आयुक्त हबीबुल्ला ने उठाए सवाल

गुजरात में दस लोगों पर आजीवन आरटीआई दाखिल करने को लेकर प्रतिबंध लगा दिया गया है। यह कार्रवाई गुजरात सूचना आयोग की तरफ से की गई है। इसके पीछे आयोग का मत है कि इन लोगों ने पिछले 18 महीनों में आरटीआई (Right to Information) के जरिए अधिक मात्रा में सवाल पूछकर सरकारी अधिकारियों को परेशान करने का काम किया है। इसी वजह से इन लोगों पर आरटीआई (सूचना का अधिकार) आजीवन बैन लगाया गया है। वहीं इस कार्रवाई को लेकर 2005 और 2010 के बीच भारत के पहले मुख्य सूचना आयुक्त वजाहत हबीबुल्लाह ने हमारे सहयोगी अखबार टीओआई को बताया कि यह आदेश न केवल विवादित हैं, बल्कि पूरी तरह से अवैध भी हैं। इस फैसले के खिलाफ गुजरात हाई कोर्ट में चुनौती दी जा सकती है।

हालांकि अभी तक, जीआईसी लोगों को अवरुद्ध करने में अडिग हो सकता है। एक आवेदक को बताया गया कि जीआईसी आयोग के समक्ष अपनी बात रखने के नागरिकों के अधिकार को वापस ले लेता है। आयोग ने पेटलाड शहर के आवेदक हितेश पटेल और उनकी पत्नी पर 5,000 रुपए का जुर्माना भी लगाया, जो उसके इतिहास में पहली ऐसी कार्रवाई है। इन लोगों ने अपने आवासीय समाज से संबंधित 13 आरटीआई सवाल दाखिल किए थे। सूचना आयुक्तों ने संबंधित अधिकारियों को निर्देश दिया है कि इन दस लोगों के जरिए सूचना मांगे जाने पर मौजूदा मुद्दों पर कोई जानकारी न दी जाए। यह जानकारी आरटीआई हेल्पलाइन चलाने वाले और आरटीआई आवेदनों और प्रतिक्रियाओं का अध्ययन करने वाले गैर सरकारी संगठन महति अधिकार गुजरात पहल के जरिए विश्लेषण में सामने आई है।

उदाहरण के तौर पर बात करें तो एक आवेदक, अमिता मिश्रा जो कि गांधीनगर के पेथापुर की एक स्कूली शिक्षिका है। अमिता ने जब अपनी सेवा पुस्तिका और वेतन विवरण की एक प्रति मांगी तो उसे इसको लेकर प्रतिबंधित कर दिया गया था। सूचना आयुक्त के एम अध्वर्यु ने जिला शिक्षा कार्यालय और सर्व विद्यालय काडी को अमिता के आवेदनों पर कभी विचार नहीं करने का आदेश दिया। दरअसल स्कूल के अधिकारियों ने इसके पीछे यह शिकायत की थी कि वह आवश्यक 2 रुपये प्रति पेज आरटीआई शुल्क का भुगतान नहीं करती है और वही सवाल पूछती है।

मोडासा कस्बे के कस्बा के एक स्कूल कर्मचारी सत्तार मजीद खलीफा पर प्रतिबंध लगा दिया गया था, जब उसने अपने संस्थान के खिलाफ कार्रवाई करने के बाद उसके बारे में सवाल पूछना शुरू कर दिया था। सूचना आयुक्त अध्वर्यु ने इस विषय को लेकर आयोग में अपील करने का खलीफा का अधिकार वापस ले लिया। अध्वर्यु ने जांच में पाया कि खलीफा "आरटीआई के जरिए स्कूल से बदला लेने की कोशिश कर रहा था। सत्तारूढ़ ने यह भी कहा कि खलीफा ने आभासी सुनवाई के दौरान पीआईओ (सार्वजनिक सूचना अधिकारी), शिक्षा विभाग के अपीलीय प्राधिकरण और यहां तक कि आयोग के खिलाफ भी आरोप लगाए।

वहीं एक मामले में सूचना आयुक्त दिलीप ठाकर ने भावनगर के चिंतन मकवाना को सीसीटीवी फुटेज सहित भावनगर के मुख्य जिला स्वास्थ्य कार्यालय के बारे में कोई भी जानकारी मांगने से प्रतिबंधित कर दिया। मकवाना की पत्नी जेसर में स्वास्थ्य विभाग की तीसरी श्रेणी की कर्मचारी हैं और इस मुद्दे पर विवाद के बाद विभाग के कर्मचारियों को सरकारी आवासीय क्वार्टर के आवंटन से संबंधित मानदंडों की जानकारी चाहती थीं। मकवाना की पत्नी और उनकी सास पर यह कहते हुए पांच साल का प्रतिबंध लगा दिया गया था कि उनकी आरटीआई 'दुर्भावनापूर्ण' और इरादे से पूरी तरह बदला लेने वाली थी।

एमएजीपी की पंक्ति जोग का कहना है कि "इन 10 आदेशों के विस्तृत विश्लेषण से पता चलता है कि गुजरात के सूचना आयुक्तों ने एनडी कुरैशी बनाम भारत संघ, सीबीएसई के सुप्रीम कोर्ट के मामले में 2008 के दिल्ली हाई कोर्ट के आदेश जैसे मुट्ठी भर अदालती आदेशों के पैरा पर भरोसा किया है।"

दिलचस्प बात यह है कि इस साल 18 जून को गुजरात के गृह विभाग ने एक आरटीआई जवाब में कहा था कि "आरटीआई आवेदकों को काली सूची में डालने या प्रतिबंधित करने का कोई कानून नहीं है। जबकि साल 2007, जून में गुजरात के दिवंगत मुख्य सूचना आयुक्त आरएन दास ने आरटीआई आवेदकों को गलत पाते हुए इन्हें काली सूची में डालने का आदेश दिया था। हबीबुल्लाह ने कहा कि सूचना आयोग एक नागरिक के लिए अपील की अंतिम अदालत है। तो फिर सूचना आयोग ऐसे आदेश कैसे पारित कर सकता है, जो कि कानून के ही बाहर हैं? कोई भी सूचना आयुक्तों से अपनी कल्पना का प्रयोग करने या कानून का आविष्कार करने की उम्मीद नहीं करता है। आरटीआई अधिनियम को समझना मुश्किल कानून नहीं है।"

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