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Thursday, September 26, 2024
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आदिवासी समाज की झलक, अटल भी आए याद... राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू के पहले भाषण में गरीब के सच होते सपनों की बात

द्रौपदी मुर्मू ने देश के 15वें राष्ट्रपति के रूप में शपथ ले ली है। आज संसद के केंद्रीय कक्ष में चीफ जस्टिस एनवी रमण ने राष्ट्रपति मुर्मू को शपथ दिलाई। राष्ट्रपति के भाषण के दौरान केंद्रीय कक्ष तालियों की गड़गड़ाहट से गूंजता रहा। राष्ट्रपति ने कहा कि मैं देश की पहली राष्ट्रपति हूं जिसका जन्म आजाद भारत में हुआ है।

आदिवासी समाज की झलक, अटल भी आए याद... राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू के पहले भाषण में गरीब के सच होते सपनों की बात

ठीक सवा 10 बजे जैसे ही देश की पहली आदिवासी राष्ट्रपति के रूप में द्रौपदी मुर्मू ने शपथ ली, संसद भवन का केंद्रीय कक्ष तालियों की गड़गड़ाहट से गूंज उठा। देश की नई राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने अपने सहज अंदाज में हिंदी में भाषण दिया। उनके संबोधन में आदिवासी समाज की झलक थी, तो पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी का भी जिक्र था। उन्होंने कहा कि देश के सर्वोच्च संवैधानिक पद पर मेरा निर्वाचन इस बात का सबूत है कि भारत का गरीब सपने देख सकता है और उसे पूरा भी कर सकता है। उन्होंने कहा कि मैंने अपनी जीवन यात्रा ओडिशा के एक छोटे से आदिवासी गांव से शुरू की थी। मैं जिस पृष्ठभूमि से आती हूं, वहां मेरे लिए प्रारंभिक शिक्षा हासिल करना भी सपने जैसा था लेकिन अनेक बाधाओं के बावजूद मेरा संकल्प दृढ़ रहा और मैं कॉलेज जाने वाली अपने गांव की पहली व्यक्ति थी। राष्ट्रपति के संबोधन के दौरान कई बार संसद का केंद्रीय कक्ष तालियों से गूंजता रहा।

"मैंने देश के युवाओं के उत्साह और आत्मबल को करीब से देखा है। हम सभी के श्रद्धेय अटल जी कहा करते थे कि देश के युवा जब आगे बढ़ते हैं तो वे सिर्फ अपना ही भाग्य नहीं बनाते बल्कि देश का भी भाग्य बनाते हैं। आज हम इसे सच होते देख रहे हैं।" -संसद के सेंट्रल हॉल में राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू

राष्ट्रपति बनना मेरी व्यक्तिगत उपलब्धि नहीं
मुर्मू ने कहा कि मैं जनजातीय समाज से हूं और वार्ड काउंसलर से लेकर भारत के राष्ट्रपति बनने तक का अवसर मुझे मिला है। यह लोकतंत्र की जननी भारतवर्ष की महानता है। ये लोकतंत्र की ही शक्ति है कि उसमें एक गरीब घर की आदिवासी बेटी भारत के सर्वोच्च संवैधानिक पद तक पहुंच सकती है। उन्होंने कहा कि राष्ट्रपति के पद तक पहुंचना मेरी व्यक्तिगत उपलब्धि नहीं है। ये भारत के प्रत्येक गरीब की उपलब्धि है। मेरा निर्वाचन इस बात का सबूत है कि भारत का गरीब सपने भी देख सकता है और उसे पूरा भी कर सकता है।

"संथाल क्रांति, पाइका क्रांति से लेकर कोल क्रांति और भील क्रांति ने स्वतंत्रता संग्राम में आदिवासी योगदान को और सशक्त किया था। सामाजिक उत्थान एवं देश-प्रेम के लिए ‘धरती आबा’ भगवान् बिरसा मुंडा जी के बलिदान से हमें प्रेरणा मिली थी।" -राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू

उन्होंने कहा कि मैं देश की पहली राष्ट्रपति हूं जिसका जन्म आजाद भारत में हुआ है। हमारे स्वाधीनता सेनानियों ने आजाद हिंदुस्तान के हम नागरिकों से जो अपेक्षाएं की थीं, उनकी पूर्ति के लिए इस अमृत काल में तेज गति से काम करना होगा। इन 25 वर्षों में अमृत काल की सिद्धि का रास्ता दो पटरी पर आगे बढ़ेगा- सबका प्रयास और सबका कर्तव्य।

आपका मत करोड़ों नागरिकों के विश्वास की अभिव्यक्ति
इससे पहले राष्ट्रपति ने अपने संबोधन की शुरुआत में ही भारत के सर्वोच्च संवैधानिक पद पर निर्वाचित करने के लिए सभी सांसदों और विधानसभा सदस्यों का आभार व्यक्त किया। उन्होंने कहा कि आपका मत देश के करोड़ों नागरिकों के विश्वास की अभिव्यक्ति है। मैं भारत के समस्त नागरिकों की आशा, आकांक्षा और अधिकारों के प्रति इस पवित्र संसद से सभी देशवासियों का पूरी विनम्रता से अभिनंदन करती हूं। आपकी आत्मीयता, विश्वास और आपका सहयोग मेरे लिए इस नए दायित्व को निभाने में मेरी बहुत बड़ी ताकत रहेगा।

उन्होंने कहा कि मुझे राष्ट्रपति के रूप में देश ने एक ऐसे महत्वपूर्ण कालखंड में चुना है जब हम अपनी आजादी का अमृत महोत्सव मना रहे हैं। आज से कुछ दिन बाद ही देश अपनी स्वाधीनता के 75 वर्ष पूरे करेगा। यह भी एक संयोग है कि जब देश अपनी आजादी की 50वीं वर्षगांठ मना रहा था तभी मेरे राजनीतिक जीवन की शुरुआत हुई थी और आज आजादी के 75वें वर्ष में मुझे ये नया दायित्व मिला है। यह जिम्मेदारी मिलना मेरे लिए बहुत बड़ा सौभाग्य है।

जंगल और जलाशय
उन्होंने कहा कि मेरा जन्म तो उस जनजातीय परंपरा में हुआ है जिसने हजारों वर्षों से प्रकृति के साथ ताल-मेल बनाकर जीवन को आगे बढ़ाया है। मैंने जंगल और जलाशयों के महत्व को अपने जीवन में महसूस किया है। हम प्रकृति से जरूरी संसाधन लेते हैं और उतनी ही श्रद्धा से प्रकृति की सेवा भी करते हैं।

कवि भीम भोई की पढ़ी कविता
मैंने अपने अब तक के जीवन में जन-सेवा में ही जीवन की सार्थकता को अनुभव किया है। जगन्नाथ क्षेत्र के एक प्रख्यात कवि भीम भोई जी की कविता की एक पंक्ति है: 'मो जीवन पछे नर्के पड़ी थाउ, जगत उद्धार हेउ'। यानी अपने जीवन के हित-अहित से बड़ा जगत कल्याण के लिए कार्य करना होता है। मुर्मू ने कहा कि यह मेरे लिए संतोष की बात है जो सदियों से वंचित रहे, विकास के लाभ से दूर रहे, वे गरीब, दलित, पिछड़े तथा आदिवासी मुझमें अपना प्रतिबिंब देख सकते हैं। मेरे इस निर्वाचन में देश के गरीबों का आशीर्वाद शामिल है। देश की करोड़ों गरीब महिलाओं और बेटियों के सपनों और सामर्थ्य की झलक है।

उन्होंने कहा कि देश के प्रथम राष्ट्रपति डॉक्टर राजेन्द्र प्रसाद से लेकर श्री राम नाथ कोविन्द जी तक, अनेक विभूतियों ने इस पद को सुशोभित किया है। इस पद के साथ-साथ देश ने इस महान परंपरा के प्रतिनिधित्व का दायित्व भी मुझे सौंपा है। संविधान के आलोक में, मैं पूरी निष्ठा से अपने कर्तव्यों का निर्वहन करूंगी। मेरे लिए भारत के लोकतांत्रिक-सांस्कृतिक आदर्श और सभी देशवासी हमेशा मेरी ऊर्जा के स्रोत रहेंगे।

अटल का जिक्र
राष्ट्रपति ने कहा कि मैंने देश के युवाओं के उत्साह और आत्मबल को करीब से देखा है। हम सभी के श्रद्धेय अटल जी कहा करते थे कि देश के युवा जब आगे बढ़ते हैं तो वे सिर्फ अपना ही भाग्य नहीं बनाते बल्कि देश का भी भाग्य बनाते हैं। आज हम इसे सच होते देख रहे हैं। मैं चाहती हूं कि हमारी सभी बहनें व बेटियां अधिक से अधिक सशक्त हों तथा वे देश के हर क्षेत्र में अपना योगदान बढ़ाती रहें।

उन्होंने कहा कि दशकों पहले मुझे रायरंगपुर में श्री ऑरोबिंदो इंटीग्रल स्कूल में शिक्षक के रूप में कार्य करने का अवसर मिला था। कुछ ही दिनों बाद श्री ऑरोबिंदो की 150वीं जन्मजयंती मनाई जाएगी। शिक्षा के बारे में श्री ऑरोबिंदो के विचारों ने मुझे निरंतर प्रेरित किया है।

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