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Friday, September 27, 2024
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जहरीले बेगड़ा ने मंदिर तोड़कर बनवाई थी दरगाह, PM मोदी ने 500 साल बाद उसी मंदिर में फहराई पताका

ये कथा है अत्याचार पर आस्था के विजय की। आक्रमणकारी के आतंक के साये से बिना डरे धर्म का पालन करते रहने वाले लोगों की। गुजरात को वह मुगल शासक जिसने अनगिनत मंदिर तोड़वाए जिससे लोग मजबूर होकर लोग इस्लाम कबूल कर लें। उसने मां काली के पावागढ़ मंदिर को भी तोड़ दिया और अपवित्र करने के लिए ऊपर दरगाह बना दी लेकिन 500 साल बाद उस मंदिर पर पताका फहराई गई है।

जहरीले बेगड़ा ने मंदिर तोड़कर बनवाई थी दरगाह, PM मोदी ने 500 साल बाद उसी मंदिर में फहराई पताका

पिता नहीं चाहता था कि उसके बेटे को कोई जहर देकर मार सके और इसलिए उसने बचपन से ही अपने बेटे को जहर देना शुरू कर दिया था। बाद में जहर देकर पिता को मार दिया गया लेकिन वह बच्चा बच गया। अब उस बच्चे ने खुद जहर खाना शुरू कर दिया। जी हां, थोड़ा-थोड़ा, बर्दाश्त कर लेने के बाद उस बच्चे का शरीर ही जहरीला हो गया। कहते हैं कि उसके साथ सेक्स करने वाली युवती की भी मौत हो जाया करती थी। बदन पर बैठने वाली मक्खी तड़पकर मर जाती थी। वह राक्षसी प्रवृत्ति का जहरीला शासक महमूद बेगड़ा था, जिसने गुजरात के उस पवित्र पावागढ़ मंदिर को तोड़वा दिया था जिसकी स्थापना ऋषि विश्वामित्र ने की थी। कहा जाता है कि ऋषि ने पावागढ़ की पहाड़ी पर माता काली की तपस्या की थी। वही पावागढ़ मंदिर, जहां 500 साल बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने शिखर पर ध्वज पताका फहराई है। पीएम ने कहा कि ये शिखर ध्वज केवल हमारी आस्था और आध्यात्म का ही प्रतीक नहीं है! ये इस बात का भी प्रतीक है कि सदियां बदलती हैं, युग बदलते हैं, लेकिन आस्था का शिखर शाश्वत रहता है। उन्होंने कहा कि आज भारत के आध्यात्मिक और सांस्कृतिक गौरव पुनर्स्थापित हो रहे हैं। इतिहास के पन्नों में दर्ज है पावागढ़ मंदिर की कथा।

लव-कुश को मोक्ष यहीं पर
ऐसा माना जाता है कि भगवान राम के बेटे लव और कुश को यहीं पर मोक्ष प्राप्त हुआ था। गुजरात के पंचमहल जिले में बने प्राचीन पावागढ़ मंदिर की खास बात है कि यहां दक्षिणमुखी मां काली की मूर्ति है। पावागढ़ मंदिर तक जाने के लिए माची हवेली से रोपवे की सुविधा है। पैदल पहुंचने के लिए 250 सीढ़ियां चढ़नी होती हैं। पावागढ़ नाम के पीछे भी एक कथा है। बताते हैं कि प्राचीन काल में इस पहाड़ी तक पहुंचना लगभग असंभव माना जाता था। चारों तरफ खाई से घिरे होने के कारण हवा का वेग बहुत ज्यादा रहता था इसलिए इसे पावागढ़ कहा गया यानी वो जगह जहां हवा एक जैसी हो। पुराण के अनुसार, प्रजापति दक्ष के यज्ञ में शिव का अपमान देख सती ने योग बल से अपने प्राण त्याग दिए। उनकी मृत्यु से व्यथित भोलेनाथ मृत शरीर को लेकर तांडव करने लगे। भगवान विष्णु ने चक्र से सती के मृत शरीर के टुकड़े किए तो माता सती का एक अंग यहां भी गिरा था।

11वीं सदी का मां काली मंदिर
यह मंदिर श्रीराम के समय का माना जाता है। इसे शत्रुंजय मंदिर कहा जाता था। पावागढ़ के बारे में 11वीं सदी के बाद से ज्यादा जानकारी उपलब्ध है। यहां मां काली का मंदिर इसी सदी में बनाया गया था। इसके बाद कई बार आक्रांताओं ने मंदिर को नुकसान पहुंचाया। करीब 400 साल तक 550 मीटर की ऊंचाई पर स्थित यह मंदिर श्रद्धालुओं की आस्था का केंद्र रहा। विदेशी आक्रमणकारियों के हमले शुरू हो गए थे।

बेगड़ा ने किया दुस्साहस
15वीं सदी में गुजरात के सुल्तान महमूद बेगड़ा ने देखा कि यह हिंदुओं की आस्था का प्रमुख केंद्र है। बड़ी संख्या में यहां लोग पूजा-आराधना करने आते थे। ऐसे में उसने मंदिर को तोड़कर उसके ऊपर दरगाह का निर्माण करा दिया। उसके बारे में कहा जाता है कि वह जबरन इस्लाम कबूल करवा देता था। हिंदुओं की आस्था को कमजोर और अपवित्र करने के लिए उसने मंदिर के ऊपर दरगाह बनवा दी।

500 साल बीत गए लेकिन...
इसके बाद 500 साल बीत गए लेकिन मां के मंदिर पर पताका नहीं दिखी। वजह यह थी कि मंदिर का शिखर खंडित था। हिंदू धार्मिक रीति-रिवाज के अनुसार खंडित शिखर पर पताका नहीं फहराई जाती। बेगड़ा के मंदिर विध्वंस करने के बाद खंडित शिखर पर ध्वजा नहीं दिखी। मोदी भी लंबे समय तक गुजरात के सीएम रहे लेकिन यहां कभी नहीं आए क्योंकि मन में एक टीस थी कि मां के धाम में पताका नहीं फहर रही है। 2017 में मंदिर को नए रूप में बदलने का काम शुरू हुआ। दरगाह का प्रबंधन करने वाली टीम से बात शुरू हुई और आखिरकार उसे शिफ्ट करने पर सहमति बन गई। करीब 125 करोड़ रुपये के खर्च के साथ महाकाली मंदिर के परिसर को भव्य स्वरूप प्रदान किया गया।

बेगड़ा महज 12 साल की उम्र में सुल्तान बन बैठा था और 65 साल की उम्र तक राज किया। उसने गुजरात के चम्पानेर, बड़ौदा, जूनागढ़, कच्छ आदि इलाकों पर राज किया। उसने कई मंदिर तोड़वा दिए थे। 1509 में बेगड़ा की मौत हो गई। आज 500 साल के बाद उसके द्वारा अपवित्र की गई ऋषि विश्वामित्र की तपस्थली फिर से प्राचीन स्वरूप में आ गई है। यह कथा इस बात को भी साबित करती है कि अत्याचारियों पर आस्था की हमेशा विजय होती आई है।

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