25 फरवरी 1961, जब महारानी एलिजाबेथ द्वितीय पहुंची थीं काशी... नाव की सवारी और उमड़ पड़ा था शहर
ब्रिटेन की महारानी एलिजाबेथ द्वितीय करीब 61 साल पहले वाराणसी की यात्रा पर आई थीं। साल था 1961 और दिन 25 फरवरी। दरअसल, इस साल वे भारत के गणतंत्र दिवस समारोह में मुख्य अतिथि के तौर पर पधारी थीं। इसी क्रम में उनका काशी दौरा हुआ था।
ग्रेट ब्रिटेन की महारान एलिजाबेथ द्वितीय का निधन हो गया। उनके निधन के बाद वाराणसी में भी उन्हें याद किया जा रहा है। दरअसल, करीब 61 साल पहले वर्ष 1961 में क्वीन एलिजाबेथ सेकेंड काशी के दोरे पर आई थीं। भगवान शिव की नगरी को घूमने की उनकी इच्छा उन्हें यहां खींच लाई थी। उन्होंने प्रेम की मशहूर निशानी ताजमहल को देखा। बाबा विश्वनाथ की नगरी को भी। भारत के गणतंत्र दिवस समारोह में बतौर मुख्य अमिति पधारीं क्वीन एलिजाबेथ का काशी ने जोरदार स्वागत किया था। दरअसल, 26 जनवरी को भारत के गणतंत्र दिवस समारोह में भाग लेने के बाद वे आगरा आई थीं। इसके बाद 15 दिनों के पाकिस्तान दौरे पर चली गईं। वहां से वापस लौटने के बाद उन्होंने दुर्गापुर स्टील प्लांट का दौरा किया। फिर वे कोलकाता गईं। बेंगलुरु, मैसूर और मुंबई दौरे के बाद आखिरी चरण में वे काशी पहुंची थीं।
25 फरवरी 1961 को क्वीन एलिजाबेथ द्वितीय काशी पहुंची थीं। वहां तत्कालीन प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू ने उनका स्वागत किया। कहा जाता है कि क्वीन एलिजाबेथ द्वितीय की सवारी जिन सड़कों से गुजरी थी, उसकी छतों पर लोग खड़े होकर हर हर महादेव का जयघोष कर रहे थे। महारानी इस भव्य स्वागत से गदगद दिखी थी। काशी नरेश ने उन्हें तब गंगा विहार भी कराया था। इसके लिए नंदेशर पैलेस से क्वीन की सवारी निकली। महरानी हाथी पर सवार थीं। वहां से बलुआ घाट तक हाथी की सवारी करते हुए गईं। हजारों की संख्या में लोग इस आयोजन में साथ चल रहे थे।
महारानी को एक सजे-धजे बजड़े मै बैठाया गया था। उन्होंने काशी के घाटों का दर्शन किया था। बजड़े पर 'गॉड सेव द क्वीन' के बैनर भी लगे थे। मणिकर्णिका घाट पर जलती चिताओं को देखकर उन्होंने सवाल भी किया था। महारानी के कौतूहल को काशी नरेश विभूति नारायण सिंह ने इसकी महत्ता बताकर शांत किया था। महारानी के इस तरफ इशारा किए जाने के बाद मीडिया की भी उत्सुकता बढ़ी। लंदन के अखबारों में उस समय बर्निंग घाट्स ऑफ काशी शीर्षक से तस्वीरें भी प्रकाशित की गई थीं। वाराणसी के कई सीनियर लोग उस वाकये को आज भी याद करते हैं। कहते हैं, तब चारों तरफ रानी के आगमन की सूचना थी। महारानी के साथ ड्यूक फिलिप भी आए थे।
मेहमान नवाजी की कायल थीं महारानी
महारानी एलिजाबेथ द्वितीय काशी और देश में हुई मेहमान नवाजी की कायल थीं। उन्होंने तत्कालीन प्रधानमंत्री पंडित नेहरू से भी इसका जिक्र किया था। 1961 के गणतंत्र दिवस परेड से पहले महारानी और ड्यूक फिलिप ने जयपुर का दौरा भी किया था। वहां उनका शाही स्वागत किया गया। उस समय उन्होंने महाराजा पैलेस के आंगन में जयपुर के महाराजा संवाई मान सिंह द्वितीय के साथ हाथी की सवारी भी की थी।
गणतंत्र दिवस की परेड के बाद महारानी एलिजाबेथ द्वितीय आगरा के लिए रवाना हुई थीं। वहां खुली जीप में सवार होकर उन्होंने ताजमहल तक का सफर किया। इस दौरान उन्होंने सड़कों पर उमड़ें हजारों लोगों की ओर हाथ हिलाकर उनका अभिवादन स्वीकार किया।