गरीबी में जिए और कर्ज में मौत, नहीं था 1 रुपया भी, तिरंगा देने वाले पिंगली वेंकैया की कहानी
सफेद, केसरिया और हरे रंग से तिरंगा बनता है। तिरंगा देश के एक अरब लोगों के दिलों में राष्ट्रीय गौरव का प्रतीक है। स्वतंत्रता दिवस पर हर घर तिरंगा अभियान हो रहा है। यह तिरंगा आंध्र प्रदेश के एक स्कूल में मामूली टीचर रहे पिंगली वेंकैया ने देश को दिया था। क्रांतिकारी पिंगली ने अपना पूरा जीवन गरीबी में गुजारा और कर्ज में डूबकर उनका निधन हुआ।
ब्रिटिश भारतीय सेना की छोड़ी नौकरी
पिंगली वेंकैया ने गांधीवादी पैदल सैनिक बने। वह दक्षिण अफ्रीका में ब्रिटिश भारतीय सेना में भी रहे। उन्होंने 1921 में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के झंडे का प्रारंभिक डिजाइन बनाया जो कुछ बदलाव के साथ स्वतंत्र भारत का राष्ट्रीय ध्वज बना।
2 अगस्त 1878 को हुआ था जन्म
वेंकैया का जन्म 2 अगस्त, 1878 को कृष्णा (तत्कालीन मद्रास प्रेसीडेंसी) के भाटलापेनुमरु गांव में पिंगली हनुमंत रायुडू और वेंकट रत्नम के घर हुआ था।
घर और पिंगली के पास से नहीं मिला एक रुपया भी
पिंगली वेंकैया की जब मृत्यु हुई तो उनके घर या उनके पास से एक रुपया भी नहीं मिला।
कभी नहीं भुनाई प्रतिष्ठा
वेंकैया का जीवन कठिनाईयों भरा रहा। एक शिक्षक, कृषक, लेखक और भाषाविद् बनते गए, लेकिन किसी तरह अपनी जरूरतों को पूरा करने के लिए संघर्ष करते रहे। उन्होंने तिरंगा बनाया लेकिन उसकी प्रतिष्ठा कभी नहीं भुनाई।
किसी ने नहीं की मदद
उन्होंने आजीविका के लिए सब्जियां उगाईं लेकिन गंभीर वित्तीय तनाव का सामना करना पड़ा। किसी ने उनकी मदद नहीं की। पूर्व विधान परिषद सदस्य जी एस राजू, तत्कालीन सांसद के एल राव और कुछ अन्य लोगों ने उनके अंतिम दिनों में वित्तीय मदद की पेशकश की, लेकिन उनका कर्ज बढ़ता रहा।
बिना इलाज के बेटे ने तोड़ा दम
वेंकैया के छोटे बेटे चलपति राव की बिना इलाज मृत्यु हो गई। यहां तक कि चित्तनगर में जिस झोपड़ी में वह रहते थे, वह सेना में उसकी सेवा के लिए प्रशंसा के प्रतीक के रूप में प्राप्त एक भूखंड पर खड़ी थी।
कड़ी मेहनत के बाद डिजाइन किया तिरंगा
वेंकैया ने ध्वज को डिजाइन करने पर कड़ी मेहनत की और 1916 में एक पुस्तक, 'भारत देशनिकी ओका जातीय पटाकम' (भारत के लिए राष्ट्रीय ध्वज) प्रकाशित की। उन्होंने झंडे के 30 प्रारूप डिजाइन भी प्रकाशित किए, जिसमें भारतीय संस्कृति और विरासत के साथ उनके महत्व और संबंध को समझाया गया।
क्या थी पिंगली की अंतिम इच्छा?
4 जुलाई, 1963 को उनका निधन हुआ और अंतिम इच्छा यह थी कि उनका शरीर तिरंगे में लपेटकर लाया जाए। अंतिम संस्कार पूरा होने तक झंडा एक पेड़ से बंधा रहे।
ऐसे हुई महात्मा गांधी से मुलाकात
19 साल की उम्र में वह ब्रिटिश भारतीय सेना में शामिल हो गए। उन्होंने दक्षिण अफ्रीका में बोअर युद्ध में भाग लिया, जहां उन्होंने पहली बार महात्मा गांधी से मुलाकात की।