अफगानिस्तान में पटरी पर लौट रही जिंदगी:तालिबान के डर का साया कम होने से कॉलेज लौट रहे हजारा समुदाय के युवा; 2018 में हुए आत्मघाती हमले में 40 स्टूडेंट्स मारे गए थे
ढाई साल पहले एक आत्मघाती हमलावर ने मावूद एकेडमी ट्यूशन सेंटर में ब्लास्ट कर दिया था, जिसमें करीब 40 छात्र मारे गए थे। ये सभी अल्पसंख्यक हजारा समुदाय के बच्चे थे, जो कॉलेज की प्रवेश परीक्षा की तैयारियों में जुटे थे। नाजीबुल्लाह यूसेफी (38) जो एक शिक्षक हैं और अगस्त 2018 में हुए ऐसे ही एक धमाके में बच गए थे, अब अपने छात्रों के साथ नई जगह पर शिफ्ट हो गए हैं। अगले धमाके के लिए उनके पास प्लान भी है।
वे कहते हैं, ‘मैं अपनी क्लास में हूं और शायद मारा भी जाऊं। लेकिन इस बार अपने बच्चों को बचाने के लिए मैं हमलावर को गले लगाऊंगा, ताकि वह धमाका न करे।’
सबसे ज्यादा हिंसा हजारा समुदाय ने ही झेली
अब तक अफगानिस्तान में सबसे ज्यादा हिंसा हजारा समुदाय ने ही झेली है। लेकिन अब हालात बदल रहे हैं। तालिबान के डर का साया कम होने के साथ इस समुदाय के युवा कॉलेजों में लौटने लगे हैं। अपने डर को किनारे कर उनकी आंखों में अपने देश में ही रहकर उच्च शिक्षा हासिल करने का सपना है। 18 साल की छात्रा मर्जिया मोहसेनी कहती हैं कि अगर तालिबान की सत्ता लौटती है, तो उन्हें अपना शिक्षा हासिल करने का अधिकार खो देने का डर है, लेकिन सेना ने उन्हें सुरक्षा का भरोसा दिया है।
मर्जिया वकील बनना चाहती हैं ताकि देश में सभी को उनका अधिकार दिलाने में मदद कर सकें। ज्यादातर हजारा छात्र गरीब परिवारों से आते हैं। 15 डॉलर (लगभग 1 हजार रुपए) महीने के हॉस्टल में रहकर अपना गुजारा करते हैं। इनमें से कई ऐसे हैं जो अपने परिवार में शिक्षा हासिल करने वाले पहले हैं। सभी को उम्मीद है कि वे स्नातक होकर नौकरियां करेंगे ताकि अपने परिवार की आर्थिक स्थिति और उनके वर्तमान को बदल सकें।
बरसों से पश्तून अमीरों के सताए हुए शिया मुस्लिम हैं हजारा समुदाय के लोग
अफगानिस्तान की 3.5 करोड़ जनसंख्या में हजारा समुदाय महज 10 से 20 फीसदी ही है। ये मुख्य रूप से शिया मुस्लिम हैं और 19वीं शताब्दी के अंत में अफगानिस्तान के पश्तून अमीरों के सताए हुए हैं। हजारा लोग बीते कुछ सालों में ट्यूशन सेंटर, मस्जिदों, अस्पतालों और मतदान केंद्रों पर हुए हमलों के सबसे ज्यादा शिकार हुए हैं। आईएस ने ज्यादातर हमलों की जिम्मेदारी भी ली।
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