राष्ट्रपति चुनाव: झारखंड नामधारी पार्टियों के लिए भाजपा का ब्रह्मास्त्र हैं द्रौपदी मुर्मू, जानिए कैसे
राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (NDA) ने झारखंड की पूर्व राज्यपाल द्रौपदी मुर्मू को राष्ट्रपति चुनाव के लिए अपना उम्मीदवार घोषित किया है। राष्ट्रपति पद के लिए चुने जाने के बाद द्रौपदी मुर्मू आदिवासी समुदाय से ताल्लुक रखने वाली भारत की पहली राष्ट्रपति होंगी।
द्रौपदी मुर्मू देश की अगली राष्ट्रपति हो सकती हैं। वोटों की गुणा-गणित में ये लगभग तय है। राष्ट्रपति पद की उम्मीदवारी के लिए उनका संथाली महिला होना ज्यादा मायने रखता है। मुर्मू जीत गईं तो राष्ट्रपति भवन पहुंचने वाली वो पहली आदिवासी महिला होंगी। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जब उनके नाम पर सहमति जताई होगी, तब निश्चित रूप से उनके दिमाग में समीकरण घूम रहे होंगे। झारखंड के लिहाज से देखें तो आदिवासियों के आसपास पूरी राजनीति घूमती रहती है। सियासी तौर पर सबसे मजबूत सोरेन परिवार इसकी वकालत करता है। कांग्रेस की मदद से आजकल सत्ताधीश भी है। ऐसे में आदिवासी महिला को राष्ट्रपति उम्मीदवार बनाकर बीजेपी ने पूरे गेम को विपक्ष के पाले में डाल दिया है।
द्रौपदी मुर्मू के बहाने भविष्य की राजनीति पर नजर
पश्चिम बंगाल, ओडिशा और झारखंड में आदिवासियों के नाम पर राजनीति परवान चढ़ती है। आदिवासियों के बीच धर्मांतरण भी बड़ा मुद्दा है। हिन्दू संगठनों के लिए कम से कम द्रौपदी मुर्मू नाम का रोल मॉडल मिल जाएगा। जिनका हवाला देकर अपनी बात को कह सकते हैं। वहीं, इन राज्यों की राजनीति की बात करें तो पश्चिम बंगाल में ममता बनर्जी की तृणमूल कांग्रेस (TMC), ओडिशा में नवीन पटनायक की बीजेडी और झारखंड में सोरेन परिवार की झारखंड मुक्ति मोर्चा (JMM) ताकतवर क्षेत्रीय दल हैं। इन तीनों राज्यों में कांग्रेस का दबदबा नहीं के बराबर है, जिस कारण बीजेपी को इन राज्यों में सीधे क्षेत्रीय दलों से मुकाबले में लोहे का चना चबाना पड़ता है। ऐसे में द्रौपदी मुर्मू को राष्ट्रपति भवन में भेजकर पार्टी अपनी लड़ाई आसान करना चाहती है।
बीजेपी की सोशल इंजीनियरिंग कमाल दिखा पाएगा?
1958 में ओडिशा के मयूरभंज जिले के कुसुमी प्रखंड स्थित संथाली गांव उपरबेड़ा में द्रौपदी मुर्मू का जन्म हुआ। देश में जो आइडेंटिटी पॉलिटिक्स चल रही है उस लिहाज से बीजेपी की द्रौपदी मुर्मू बिल्कुल फिट बैठ रही हैं। बीजेपी के इस फैसले ने कम से कम ओडिशा की नवीन पटनायक सरकार और झारखंड की हेमंत सोरेन सरकार को धर्म संकट में तो डाल ही दिया है। मुर्मू की उम्मीदवारी निम्नवर्गीय राजनीति की धार को ही तेज कर रहा है, जिस पर लंबे समय से बीजेपी की नजर है। जो शहरी पार्टी की सीमित पहचान से पैन इंडिया पार्टी बनने को बेताब दिख रही है। आदिवासी महिला की पहुंच राष्ट्रपति भवन तक होने से सीधा असर पश्चिम बंगाल, ओडिशा, झारखंड जैसे पूर्वी भारतीय राज्यों में देखने को मिलेगा।
कौन हैं राष्ट्रपति उम्मीदवार द्रौपदी मुर्मू?
द्रौपदी मुर्मू ने ओडिशा की राजधानी भुवनेश्वर की रामा देवी कॉलेज से आर्ट्स ग्रेजुएट हैं। सिंचाई विभाग में क्लर्क की नौकरी भी की। उसके बाद वो शिक्षक बन गईं। बाद में उन्होंने राजनीति जॉइन कर लीं। द्रौपदी मुर्मू दो बार विधायक बनकर ओडिशा विधानसभा पहुंचीं और 2007 में उन्हें सर्वोत्तम विधायक का नीलकंठ अवॉर्ड से सम्मानित किया गया। मुख्यमंत्री नवीन पटनायक की पार्टी बीजू जनता दल और भारतीय जनता पार्टी की गठबंधन सरकार में मुर्मू को मंत्री बनाया गया। फिर केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार ने उन्हें झारखंड का राज्यपाल बना दिया। 18 मई 2015 को झारखंड की 9वीं राज्यपाल बनाई गईं और 12 जुलाई 2021 तक इस पद पर रहीं। अगर, वो राष्ट्रपति के लिए चुनी जाती हैं तो आजादी के बाद पैदा होने वाली पहली राष्ट्रपति भी होंगी।