खलासी से दबंग माफिया, फिर बना नेता, अपनी ही बर्थडे पार्टी में मारा गया... कहानी बाहुबली अजीत सिंह की
रेलवे खलासी से ठेकेदार बना अजीत सिंह राजनीति में सक्रिय हो गया। पहले भाजपा ने उसे विधान परिषद भेजा। उसके बाद समाजवादी पार्टी ने सदन भेजा। दबंग अजीत सिंह की बर्थडे पार्टी में कुछ लोग हवाई फायरिंग कर रहे थे। इसी बीच एक गोली उसको जा लगी और उसकी मौके पर ही मौत हो गई।
यह अजब संयोग था कि जिस वक्त बर्थ डे पार्टी में 'तुम जियो हजारों साल' गूंज रहा था, उसी वक्त उसे गोली लगी। लगी भी किससे? जिस पर उसकी सुरक्षा का जिम्मा था। वह रेलवे में खलासी के पद पर भर्ती हुआ था। बहुत छोटा पद होता है रेलवे का, लेकिन वह रेलवे का ठेकेदार बन गया और फिर माफिया। वह भी ऐसा जिसके खौफ से लखनऊ का बच्चा- बच्चा वाकिफ था। पैसे से सत्ता के करीब पहुंचा और महत्वाकांक्षा ने उसे बाहुबली राजनेता बना दिया। पहले भारतीय जनता पार्टी ने विधान परिषद भेजा। छह साल का कार्यकाल पूरा होने के बाद समाजवादी पार्टी से विधान परिषद पहुंच गया। जी, हां हम बात कर रहे हैं लखनऊ के बाहुबली विधायक अजीत सिंह की।
खलासी और मजदूर यूनियन नेता
उन्नाव के मुलाहिमपुर गांव में निवासी रंजीत सिंह उत्तर रेलवे में कर्मचारी थे और चारबाग में आरक्षण केंद्र के पीछे बने रेलवे क्वार्टर में रहते थे। रंजीत सिंह उत्तर रेलवे की मजदूर यूनियन में सक्रिय थे, जिसके चलते रेलवे के अफसरों में अच्छी पकड़ थी। उन्हीं का लड़का था अजीत सिंह। दबंग अजीत सिंह ने शुरुआती पढ़ाई केकेवी में की और फिर केकेसी में दाखिला लिया। इसी दौरान पिता ने बुलेट दिलवा दी। बात 1980 दशक के आखिरी दौर की है। तब कम लोगों के पास ही बुलेट होती थी। रंजीत ने अपनी पहुंच के बल पर बेटे को रेलवे में खलासी के पद पर भर्ती करवा दिया। अजीत भी रेलवे मजदूर यूनियन में शामिल हो गया और अफसरों तक पहुंच बनाकर मनमाफिक काम करवाने शुरू कर दिए। केकेसी छात्रसंघ चुनाव में भी दखल शुरू कर दी। चुनावों में मदद से छात्र नेता उसके पक्ष में रहते थे। देखते ही देखते हुसैनगंज से लेकर चारबाग तक उसकी तूती बोलने लगी। रेलवे के कर्मचारी से लेकर अधिकारी तक अजीत सिंह के ‘आशीर्वाद’ को लालायित रहते थे। रिटायर्ड आईपीएस बृजलाल बताते हैं कि एक बार अजीत सिंह के इशारे पर एक रेलवे के अफसर ने कुछ नियम विरुद्ध काम किया। कुछ लोगों ने रेलवे बोर्ड में शिकायत की और जांच शुरू हो गई। दिल्ली से रेलवे विजिलेंस के दो इंस्पेक्टर जांच करने लखनऊ आए। स्टेशन पर गेस्ट हाउस में रुके थे। रात में अजीत के गुर्गों ने उन्हीं पीटा और धमकाया कि अगर अफसर के खिलाफ गलत रिपोर्ट दी, तो परिवार की खैर नहीं। दोनों इंस्पेक्टर इतना डर गए कि जांच में क्लीन चिट दे दी थी।
भंडारी के शूटर ने उठवा लिया
1991 के बाद का यह वह दौर था, जब सुभाष भंडारी का मर्डर हो चुका था और बक्शी ने भी अपराध से किनारा कर लिया था। राम गोपाल मिश्रा और अन्ना आपसी रंजिश में फंसे थे। मैदान साफ देख अजीत सिंह ने चारबाग टेंपो-टैक्सी स्टैंड से वसूली की कोशिश की। यह बात भंडारी के शूटर रहे रेलवे कर्मी सुरेश जायसवाल को नागवार लगी। उसने अजीत को उठवा लिया और चारबाग के एक प्लॉट पर ले जाकर धमकाने के साथ ही बेइज्जत किया। बदला लेने के लिए अजीत ने सुरेश को ठिकाने लगाने की कसम खा ली। अजीत और उसके गुर्गों ने पहली बार हमला किया, लेकिन सुरेश बच निकला। कुछ दिनों बाद ही अजीत ने अपने साथियों के साथ हजरतगंज में डीआरएम कार्यालय परिसर के पीछे बने क्वार्टर के बाहर ताबड़तोड़ फायरिंग कर सुरेश की हत्या कर दी। फायरिंग में एक अन्य रेल कर्मी भी जख्मी हुआ था।
और शुरू हो गई वसूली
सुरेश की हत्या के बाद अजीत सिंह का वर्चस्व कायम हो गया। उसने खम्मन पीर बाबा की मजार के ठेकेदार मोहम्मद अनीस से भी रंगदारी वसूलनी शुरू कर दी। लोको वर्कशॉप में रेलवे स्क्रैप (कबाड़) की नीलामी में भी पैर जमा लिए। अजीत और उसके साथियों ने लालकुआं निवासी मिश्रा बंधुओं (लल्ला मिश्रा और राजू मिश्रा) की अलग-अलग जगहों पर दिन दहाड़े हत्या कर सनसनी मचा दी। लल्ला की हत्या लोको वर्कशॉप के पास और राजू की हत्या सिटी बस में हुई थी। मिश्रा बंधुओं की हत्या, उनकी और अजीत सिंह के खास सुधीर शुक्ला की रंजिश का परिणाम थी। इसी के बाद अजीत ने हजरतगंज का कार स्टैंड हथियाने के लिए अपने साथियों के साथ पृथ्वी पाण्डेय को एलडीए के सामने गोलियों से भून डाला। अजीत की बैठक यादव भवन में भी शुरू हो गई। महानगर के बाहुबली यादव बंधुओं (योगेंद्र मुरारी और बृजेंद्र मुरारी) का घर यादव भवन के नाम से जाना जाता है। देखते ही देखते अजीत और उनके साथियों के खिलाफ लखनऊ और उन्नाव के थानों पर चार दर्जन से अधिक हत्या, हत्या के प्रयास, वसूली, अपहरण जैसी धाराओं में मामले दर्ज हो गए। लेकिन, सजा एक मामले में भी नहीं हुई।
राजनीति की राह और एमएलसी
स्क्रैप नीलामी के साथ अजीत ने जमीनों के कामों में भी दखल देना शुरू कर दिया। ठेकों और स्टैंडों की वसूली भी चरम पर थी। चारों ओर से रुपया बरस रहा था। अब डर सिर्फ पुलिस का था। सो, पुलिस से बचने के लिए उसने सत्ताधारी राजनेताओं से नजदीकी बनानी शुरू कर दी। 1997 के शुरू में भाजपा के एक बड़े नेता ने पार्टी में शामिल करवा लिया। इसी साल भाजपा ने अजीत को स्थानीय निकाय चुनाव में (लखनऊ-उन्नाव सीट से) उतारा और वह निर्विरोध चुनाव जीतकर उच्च सदन (विधान परिषद) पहुंच गया। सीनियर क्राइम रिपोर्टर मनीष मिश्रा बताते हैं कि जिस दिन उसे टिकट मिला, उसके एक दिन पहले ही तत्कालीन एसएसपी लखनऊ अरुण कुमार ने अजीत के चारबाग स्थित आवास पर छापा मारा था। बाहुबली से 'माननीय' बनते ही अजीत सिंह काली गाड़ियों के काफिले के साथ घूमने लगा था। एक तत्कालीन महिला सभासद के जरिए उसकी पहुंच कल्याण सिंह तक हो गई। 2003 में समाजवादी पार्टी के टिकट से दोबारा एमएलसी बना।
बर्थडे पार्टी में हत्या
चार सितंबर 2004 को उन्नाव के गेस्ट हाउस में अजीत सिंह का जन्मदिन मनाया जा रहा था। शराब की बोतलें खुल रही थीं। बीच-बीच हवाई फायरिंग भी हो रही थी। खाने के बाद अजीत कमरे में सोने चला गया, लेकिन साथी उसे फिर बुला लाए। अजीत मंच के सामने बैठा था। 'तुम जियो हजारों साल, हर साल के दिन हों पचास हजार' का कोरस शुरू हो गया। साथियों ने हवा में फायरिंग शुरू कर दी। अचानक किसी की नजर गई कि अजीत सिंह के चेहरे से खून बह रहा है। अजीत का चेहरा नीचे झुका था। आनन-फानन में साथी कानपुर के अस्पताल ले गए, जहां उसे मृत घोषित कर दिया गया। अजीत के मौसेरे भाई अरविंद सिंह ने इस मामले में रायबरेली के बाहुबली विधायक अखिलेश सिंह, रमेश कालिया समेत तीन अज्ञात के खिलाफ एफआईआर दर्ज कराई। जांच में पता चला कि अजीत को लगी गोली उसी के गनर (सिपाही) फतेहपुर निवासी संजय द्विवेदी की कारबाइन से निकली थी। अजीत सिंह की कुर्सी के पीछे बैठा संजय द्विवेदी फायरिंग कर रहा था। पुलिस ने संजय को गैर इरादतन हत्या का आरोपी बनाया। कोर्ट ने 11 अप्रैल 2007 को सिपाही संजय को दोष मुक्त कर दिया।