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'लाश' चला रही थी कार, धनंजय सिंह से लेकर श्रीप्रकाश शुक्ला का नाम सामने आया, 25 साल बाद भी कातिल का सुराग नहीं

उत्तर प्रदेश के लखनऊ में 19 जुलाई 1997 को इंजीनियर गोपाल शरण श्रीवास्तव की हत्या कर दी गई थी। इस हत्याकांड में मारुति हादसे से दो बच्चे भी घायल हुए। हत्याकांड में धनंजय सिंह, श्रीप्रकाश शुक्ला समेत कई लोगों का नाम सामने आया। हालांकि 25 साल बाद भी पुलिस हत्यारे को नहीं पकड़ पाई।

'लाश' चला रही थी कार, धनंजय सिंह से लेकर श्रीप्रकाश शुक्ला का नाम सामने आया, 25 साल बाद भी कातिल का सुराग नहीं

19 जुलाई 1997 सुबह करीब साढ़े दस बज रहे थे। इंदिरानगर सी ब्लॉक चौराहे के पास एक मारुति कार ने दो स्कूली बच्चों को टक्कर मार दी। दोनों बच्चे गंभीर रूप से घायल हो गए। आसपास मौजूद लोग कार चालक को पकड़ने के लिए पीछे दौड़े। इस दौरान अनियंत्रित मारुति एक मकान की बाउंड्री से टकराकर रुक गई। पीछे से पहुंचे लोगों ने चालक को कार से निकालना चाहा। ड्राइविंग सीट पर बैठे शख्स की हालत देख सब सन्न रह गए। पूरी शर्ट खून से लथपथ थी और शरीर स्टेयरिंग के सहारे रुका था। लोगों को लगा कि जैसे लाश कार चला रही थी। लोगों ने चौराहे से कुछ दूर स्थित पुलिस पिकेट पर सूचना दी। सिपाही मौके पर पहुंचे और दोनों बच्चों सहित कार चालक को अस्पताल भेजा। कार चालक के सिर और सीने पर गोलियां लगी थीं।

सिपाहियों ने घटना की जानकारी गाजीपुर थाने के साथ ही कंट्रोल रूम को दी। चालक गोली मारने और और कार की चपेट में दो छात्रों के आने की जानकारी होते ही पुलिस के आला अफसर आनन-फानन में मौके पर पहुंच गए। छानबीन में पता चला कि कार चालक उप्र राज्य निर्माण निगम के सहायक अभियंता गोपाल शरण श्रीवास्तव थे, जिनकी तैनाती तत्कालीन मायावती सरकार के ड्रीम प्रॉजेक्ट अम्बेडकर उद्यान में थी। हादसे में घायल बच्चों की पहचान इंदिरानगर निवासी पुलिस सब इंस्पेक्टर विजय प्रताप सिंह के बेटे चार वर्षीय संचित सिंह और छह वर्षीय सुधीन्द्र सिंह के रूप में हुई। अस्पताल में इंजिनियर गोपाल शरण श्रीवास्तव और संचित को ब्रॉट डेड घोषित कर दिया गया, जबकि, सुधींद्र की हालत गंभीर थी।

क्या थी घटना
इंजिनियर गोपाल शरण श्रीवास्तव इंदिरानगर सी-2231 में रहते थे। उस वक्त के क्राइम रिपोर्टर विष्णु मोहन बताते हैं कि घटना वाले दिन सुबह करीब नौ बजे सचान नामक ठेकेदार उनसे मिलने आया था। साइट (अम्बेडकर उद्यान) में कुछ दिक्कतें बताईं। इस पर गोपाल शरण ने साइट पर पहुंचने के साथ ही खुद भी पौने ग्यारह बजे तक आने को कहा। इसके बाद करीब साढ़े दस बजे तैयार होकर कार से निकले। इंदिरानगर सी ब्लॉक चौराहे के पहले बाइक सवार दो युवकों ने उनकी कार को ओवरटेक किया और आगे पहुंच कर रुकने का इशारा किया। गोपाल शरण के कार धीमी करते ही कार की ड्राइविंग सीट के पास बाइक लगाई ओर कुछ समझने से पहले ही बाइक पर पीछे बैठे युवक ने पिस्टल निकाल कर पूरी मैगजीन उन पर खाली कर दी। गोली लगने से कार अनियंत्रित हुई और सामने से आ रहे दो बच्चों को रौंद डाला।

कई बिंदुओं पर शुरू हुई तफ्तीश
मामले की तफ्तीश कई बिंदुओं को लेकर शुरू हुई। पहला ठेकेदारों से विवाद, दूसरा रंजिश, तीसरा किसी माफिया को वसूली न देने का परिणाम। छानबीन के दौरान पुलिस को कार से 7.63 बोर का एक खोखा मिला। अंदाजा था कि हत्या थर्टी पिस्टल से हुई है। पाकिस्तान निर्मित यह पिस्टल उस समय गिने चुने बदमाशों के पास थी। लखनऊ में इससे पहले ला-मार्टिनियर कॉलेज के असिस्टेंट वॉर्डन फ्रेड्रिक गोम्स हत्याकांड में भी इसी पिस्टल का प्रयोग हुआ था। पुलिस ने मौके से मिले खोखे को मिलान के लिए लैब भेजा और तहकीकात शुरू की गई। सचान के साथ अम्बेडकर उद्यान के ठेकेदारों से पुलिस की टीमों ने अलग-अलग पूछताछ की, लेकिन कोई नतीजा नहीं निकला। परिवार ने कोई व्यक्तिगत रंजिश भी नहीं बताई। रिटायर्ड आईपीएस राजेश पाण्डेय बताते हैं कि छानबीन बीन में पता चला कि गोपाल शरण ने किसी एक माफिया गिरोह को पैसा दिया था और उसका प्रतिद्वंदी गैंग भी वसूली का दबाव बना रहा था। पूरे मामले में यूपी पुलिस के लिए आतंक बन चुके श्रीप्रकाश शुक्ला का भी नाम आया, लेकिन पुलिस के पास कोई साक्ष्य नहीं थे।

माफिया धनंजय सिंह की तलाश
लंबी तफ्तीश के बाद गाजीपुर थाने की पुलिस ने हत्याकांड में धनंजय सिंह की तलाश शुरू की। जौनपुर निवासी धनंजय सिंह (जो बाद में दो बार विधायक और एक बार लोकसभा सदस्य रहा) का नाम तब तक लखनऊ के कई हत्याकांडों में जुड़ चुका था। उस दौर में फैजाबाद के अभय सिंह और धनंजय सिंह की दोस्ती परवान पर थी। पुलिस के तलाश शुरू करने पर धनंजय फरार हो गया। गिरफ्तारी के लिए लखनऊ पुलिस के तेजतर्रार अफसरों की कई टीमें गठित की गईं। लखनऊ और जौनपुर के साथ पूर्वांचल के कई जिलों में हफ्तों दबिशों का दौर चला। लेकिन, धनंजय हत्थे नहीं चढ़ा। लखनऊ पुलिस ने उस पर पचास हजार का इनाम घोषित किया। वह फरार चल ही रहा था कि 17 अक्टूबर 1998 को भदोही पुलिस की (भदोही और मीरजापुर रोड पर) एक पेट्रोल पंप पर बदमाशों से मुठभेड़ हो गई। भदोही पुलिस को जानकारी मिली थी कि कुछ बदमाश पंप को लूटने वाले हैं। इस सूचना पर पुलिस ने घेराबंदी की थी। पुलिस की गोली से चार लोग मारे गए। कहा गया कि मारे गए बदमाशों में धनंजय सिंह और उसके साथी थे, जो पंप लूटने के उद्देश्य से आए थे। लेकिन, चार महीने बाद ही पुलिस की कहानी झूठी साबित हुई।

जिंदा निकला धनंजय और छूट गया केस
चार महीने बाद ही फरवरी 1999 में धनंजय सिंह ने इंजीनियर हत्याकांड में लखनऊ कोर्ट में आत्मसमर्पण कर दिया। लंबी सुनवाई के बाद साक्ष्यों के अभाव में धनंजय बरी हो गया। रिटायर्ड आईपीएस राजेश पाण्डेय के अनुसार धनंजय के छूटने के साथ ही इंजीनियर गोपाल शरण श्रीवास्तव की हत्या हमेशा के लिए एक रहस्य ही बनकर रह गई। उधर, भदोही में हुई कथित मुठभेड को लेकर खुलासा हुआ कि पुलिस की गोली से मारे गए लोगों में सपा कार्यकर्ता ओम प्रकाश यादव और उसके साथी थे। मानवाधिकार आयोग ने मामले की जांच शुरू करवाई और तीन दर्जन पुलिसकर्मियों के खिलाफ एफआईआर दर्ज हुई और सबको निलंबित भी कर दिया गया।

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