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जानिए क्यों साथ आए बहुजन समाज पार्टी और इमरान मसूद, क्या हैं दोनों की मजबूरियां?

सहारनपुर के मुस्लिम नेता इमरान मसूद ने इस साल विधानसभा चुनाव से पहले कांग्रेस छोड़ दिया था। वह समाजवादी पार्टी के साथ आए गए पर उनको अखिलेश यादव ने टिकट नहीं दिया। तभी से वह नाराज चल रहे थे। अब लोकसभा चुनाव से पहले उन्‍होंने बसपा का दामन थाम लिया है।

जानिए क्यों साथ आए बहुजन समाज पार्टी और इमरान मसूद, क्या हैं दोनों की मजबूरियां?

उत्‍तर प्रदेश विधानसभा चुनाव 2022 के बाद से ही बसपा प्रमुख मायावती को यह मलाल था कि मुसलमानों ने उनका साथ नहीं दिया। उसके बाद से वह लगातार इस कोशिश में लगी थीं कि किसी तरह मुसलमान फिर उनके साथ आ जाएं। वहीं विधानसभा चुनाव से ठीक पहले कांग्रेस छोड़ सपा में शामिल हुए इमरान मसूद के सामने अपना वजूद साबित करने की चुनौती थी। दोनों की यह मजबूरी ही एक-दूसरे के साथ आने की वजह बनी। मसूद ने बुधवार को बसपा प्रमुख मायावती से मुलाकात कर पार्टी जॉइन कर ली। इसके साथ ही मायावती ने उनको पश्चिमी यूपी का प्रभारी भी बना दिया।

बसपा की मजबूरी

  • दलित-मुस्लिम समीकरण शुरुआत से बसपा की मजबूती रहा है।
  • 2012 से लगातार बसपा का वोट प्रतिशत गिर रहा है।
  • ओबीसी वोट बैंक सपा और भाजपा में बंटता गया।
  • विधानसभा चुनाव 2022 में मुसलमान एकतरफा सपा की तरफ चला गया। वहीं दलित वोट बैंक में भी सेंध लग गई।
  • नतीजा यह रहा कि बसपा अब तक के सबसे खराब दौर में पहुंच गई। वोट प्रतिशत 13 फीसदी से भी नीचे रह गया।
  • तब से बसपा की मजबूरी थी कि किसी तरह मुसलमान उसके साथ आएं। बसपा प्रमुख मायावती लगातार इसी कोशिश में लगी थीं।
  • इमरान मसूद पश्चिमी यूपी में बड़ा मुस्लिम चेहरा हैं। उनके भाई नोमान मसूद विधानसभा चुनाव से ही बसपा के साथ हैं।
  • बसपा को लग रहा है नगर निकाय चुनाव में इनके जरिए मुसलमानों को अपने पाले में लाने में सफलता मिल सकती है।

पश्चिमी यूपी ही क्यों?
2024 से पहले नगर निकाय चुनाव बसपा को फिर से दलित-मुस्लिम समीकरण साधने का बेहतर मौका लग रहा है। खासतौर से पश्चिमी यूपी इसके लिए बेहतर जमीन भी है। इमरान मसूद सहारनपुर से हैं। यहां पिछले नगर निकाय चुनाव में बसपा दूसरे नंबर पर रही थी। मेयर पद पर बसपा प्रत्याशी फजलुर्रहमान करीब 2,000 वोट के मामूली अंतर से हारे थे। पार्षदों की संख्या भी भाजपा के बाद सबसे ज्यादा थी। सपा चौथे नंबर पर थी। पश्चिमी यूपी में ही मेरठ और अलीगढ़ में बसपा के मेयर जीते थे। मसूद परिवार का असर पश्चिमी यूपी के कई जिलों तक है। सहारनपुर में मुसलमान और दलितों की आबादी जोड़ ली जाए तो ये 60 फीसदी से ज्यादा है। इसके अलावा भी पश्चिम के कई जिले हैं जहां दलित-मुस्लिम गठजोड़ बसपा को रास आता है।

इमरान मसूद की मजबूरी
  • इमरान मसूद ने भी अपनी राजनीतिक पारी की शुरुआत 2006 में सहारनपुर नगरपालिका में चेयरमैन पद जीतकर की थी।
  • 2007 में सपा ने उनको मुजफ्फराबाद सीट से विधायक का टिकट नहीं दिया लेकिन वह निर्दलीय लड़ गए और सपा को हराया।
  • इन दो चुनावों में जीत और परिवार के राजनीतिक रसूख के बाद उनका कद काफी बढ़ गया लेकिन उसके बाद से उनको कोई सफलता नहीं मिली।
  • 2022 विधानसभा चुनाव में वह कांग्रेस छोड़कर सपा में आए लेकिन उनको टिकट नहीं मिला।
  • वह सपा में जाने के बाद से खुद को ठगा हुआ महसूस कर रहे थे।
  • माना जा रहा है कि नगर निकाय चुनाव में वह अपने किसी रिश्तेदार को चुनाव लड़ाएंगे।
  • निकाय चुनाव में खुद को साबित करते हैं तो 2024 में अपना कद बढ़ाने का बेहतर मौका मिलेगा।

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