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शाइस्ता परवीन, साइमा मसूद... BSP के मेयर पद के ये उम्मीदवार, क्या है मायावती की रणनीति?

बहुजन समाज पार्टी की ओर से वर्ष 2024 के लोकसभा चुनाव की तैयारियों को एक अलग अंदाज में शुरू किया गया है। मायावती की रणनीति पिछले दिनों पार्टी के मेयर पद उम्मीदवारों की घोषणा के बाद सामने आई है। अल्पसंख्यकों को लुभाने की रणनीति के रूप में इसे देखा जा रहा है।

शाइस्ता परवीन, साइमा मसूद... BSP के मेयर पद के ये उम्मीदवार, क्या है मायावती की रणनीति?

उत्तर प्रदेश की राजनीति में बहुजन समाज पार्टी एक अलग ही रणनीति के साथ अपना स्थान बनाने की कोशिश करती दिख रही है। पिछले चार चुनावों में पार्टी की स्थिति खराब होने के बाद मायावती ने अब अपनी रणनीति बदल दी है। प्रदेश के राजनीतिक मैदान में 25 से 30 फीसदी वोट बैंक की राजनीति करने वाली बहुजन समाज पार्टी 12 फीसदी के आसपास सिमटती दिखी। पहले के चुनावों में बसपा अपनी तैयारियों को चुनाव से पहले शुरू करती थी। लेकिन, जिस प्रकार से राजनीतिक स्वरूप में बदलाव हुआ है। उप चुनावों में भी पूरी ताकत झोंकी जाने लगी है, उसके बाद मायावती ने भी अपनी रणनीति में बदलाव कर दिया है। अब वे अपने परंपरागत वोट बैंक को साधने में जुट गई हैं।

बसपा प्रमुख मायावती दलित वोटों को साधने के लिए वे लगातार जिला स्तर के पार्टी पदाधिकारियों के साथ बैठक कर रही हैं। वहीं, दलित-मुस्लिम समीकरण को जमीन पर उतारने के लिए भी बड़े स्तर पर प्रयास किया जा रहा है। हालिया मेयर पद के उम्मीदवारों की घोषणा ने कुछ यही संकेत दिया है। बसपा की ओर से माफिया डॉन पूर्व सांसद अतीक अहमद की पत्नी शाइस्ता परवीन को नगर निकाय चुनाव के लिए प्रयागराज की मेयर सीट का उम्मीदवार बनाए जाने की तैयारी है। वहीं, सहारनपुर के मेयर पद के उम्मीदवार के तौर पर कांग्रेस के पश्चिमी यूपी में चेहरा रहे इमरान मसूद की पत्नी साइमा मसूद को दावेदार बनाया गया है।

क्या है मायावती की पूरी रणनीति?
मायावती ने शाइस्ता परवीन और साइमा मसूद के जरिए मायावती अल्पसंख्यक वोट बैंक को सहेजने और समेटने की कोशिश करती दिख रही हैं। भारतीय जनता पार्टी के पसमांदा मुस्लिमों को निशाना बनाकर किए जाने वाले कार्यों को देखते हुए बसपा ने अपनी रणनीति पर काम शुरू कर दिया है। दरअसल, रामपुर और खतौली विधानसभा उप चुनाव के परिणाम ने बसपा को अपनी रणनीति पर विचार करने का एक मौका दिया है। रामपुर में मुस्लिम वोटों की संख्या काफी ज्यादा है। इसके बाद भी वहां पर आजम खान का किला ढहा। भाजपा ने जीत दर्ज की। वहीं, खतौली में मुजफ्फरनगर दंगों की आग से दरकी जाट-मुस्लिम समीकरण के एकजुट होता दिखा है।

भाजपा और सपा लगातार अपने वोट बैंक को बढ़ाने और पार्टी को ग्रासरूट लेवल पर मजबूत करने की कोशिश करते दिख रहे हैं। मायावती इस दौड़ में पिछड़ती दिख रही थी। ऐसे में उन्होंने अब अपनी अलग रणनीति पर काम करना शुरू कर दिया है। बसपा अपने कैडर के जरिए ही मजबूत रही है। ऐसे में कैडर पर भरोसा जताकर वे वोट बैंक को एक प्रकार से भरोसा दिलाने की कोशिश करती दिख रही हैं।

बसपा में शामिल कराए गए इमरान मसूद
यूपी चुनाव 2022 से पहले इसी साल जनवरी में पश्चिम यूपी में कांग्रेस का चेहरा रहे इमरान मसूद ने समाजवादी पार्टी का दामन थामा था। लेकिन, जिस उम्मीद के साथ वे सपा से जुड़े, वह पूरी होती नहीं दिखी। इमरान ने अक्टूबर 2022 में सपा का दामन छोड़ा और बसपा के पाले में आ गए। मसूद करीब एक दशक तक पश्चिमी यूपी में कांग्रेस का चेहरा रहे। बसपा ने अब उन्हें पश्चिमी यूपी का संयोजक बना दिया है। पश्चिमी यूपी में मुसलमानों की बड़ी आबादी है और मायावती उसी को टारगेट करती दिख रही हैं। बसपा सूत्रों की मानें तो पार्टी प्रमुख मुस्लिम मतदाताओं को निशाना बना रही हैं। नगर निकाय चुनाव में मुस्लिम महिला उम्मीदवारों को उतार कर वे एक बड़ी आबादी को साधने की कोशिश करती दिखी हैं।

बड़ा संदेश देने की कोशिश में मायावती
बसपा प्रमुख मायावती यूपी चुनाव 2022 के बाद से लगातार मुस्लिम मतदाताओं को एक संदेश देने का प्रयास कर रही हैं। वे मुस्लिम वोट बैंक को संदेश दे रही हैं कि उनके वोट सपा के साथ रहे, तब भी वह भाजपा को हरा नहीं सकती है। मायावती कई मौकों पर कहती दिखी हैं कि सपा को विधानसभा चुनाव में मुस्लिम वोट बैंक का पूरा साथ मिला, लेकिन फिर भी भाजपा जीत गई। अगर मुस्लिमों ने बसपा का समर्थन किया होता तो राज्य में बीजेपी की सत्ता चली जाती। बसपा ने आजमगढ़ लोकसभा उप चुनाव में अपनी ताकत दिखाई थी। वहां बसपा के मुस्लिम उम्मीदवार को 2.66 लाख से अधिक वोट मिले थे। सपा बहुत कम अंतर से भाजपा से अपनी गढ़ सीट हार गई थी।

यूपी चुनाव का भी दिया जा रहा हवाला
बसपा की ओर से यूपी विधानसभा चुनाव 2022 का भी हवाला दिया जा रहा है। यूपी की 403 सदस्यीय विधानसभा सीटों पर बसपा ने सबसे अधिक 88 मुस्लिम उम्मीदवार उतारे थे। वहीं, सपा ने 61 मुस्लिम उम्मीदवारों को चुनावी मैदानों में उतारा था। बसपा का कोई भी मुस्लिम उम्मीदवार जीत नहीं दर्ज कर पाया। सपा के 30 और सहयोगी दलों रालोद के दो और सुभासपा के एक मुस्लिम उम्मीदवार ने चुनाव में जीत दर्ज की थी। अब पार्टी पूर्व सांसद और माफिया डॉन अतीक अहमद के जरिए प्रयागराज और आसपास के इलाकों में बड़ा संदेश देने की कोशिश करती दिख रही है। अतीक के खिलाफ यूपी सरकार और अन्य एजेंसियों की कार्रवाई लगातार चल रही है।

आपराधिक छवि वालों से पहले किया था किनारा
बसपा ने पहले आपराधिक छवि वाले उम्मीदवारों से किनारा किया था। यूपी चुनाव 2022 के दौरान मायावती ने पूर्वांचल के माफिया मुख्तार अंसारी को मऊ से टिकट देने से मना कर दिया था। इसके बाद सुभासपा ने मुख्तार के बेटे अब्बास अंसारी को टिकट दिया था। हालांकि, अब अतीक अहमद परिवार से पार्टी जुड़ती दिख रही है। अतीक के खिलाफ करीब 40 मामले दर्ज हैं। वर्ष 2005 में इलाहाबाद से बसपा विधायक राजू पाल की हत्या में भी अतीक अहमद की संलिप्तता सामने आई थी। इलाहाबाद पश्चिम से पांच बार विधायक रहे अतीक की पत्नी को पार्टी में शामिल कराए जाने पर सफाई भी दी जाने लगी है।

पार्टी प्रवक्ता धर्मवीर चौधरी कहते हैं कि अतीक अहमद की पत्नी शाइस्ता परवीन के खिलाफ कोई आपराधिक मामला नहीं है। वह स्वच्छ और निष्पक्ष राजनीति के लिए प्रतिबद्ध हैं। बसपा ने उनके प्रयागराज में मेयर सीट के लिए मैदान में उतारने की योजना बनाई है। प्रवक्ता का कहना है कि मुस्लिमों को यह अहसास हो गया है कि सपा ने उन्हें वोटर के तौर पर इस्तेमाल किया। उनके हक के लिए कभी खड़े नहीं हुए। मुसलमानों का झुकाव बसपा की ओर है और पार्टी उन्हें सम्मान और प्रतिनिधित्व दे रही है।

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