MBBS करने छात्र क्यों जाते हैं विदेश, क्या सिर्फ कम फीस है मुख्य कारण ?
यूक्रेन-रूस युद्ध अपने चरम पर है, इसी बीच एक और सवाल है जो बड़ी ही तेज़ी से उठ रहा है, और वो ये है कि आख़िर क्यों छात्र MBBS की डिग्री लेने विदेश जाते हैं, क्या इसका जवाब सिर्फ कम फीस का होना है या कुछ और...
इस वक्त जो स्थिति यूक्रेन की है, वही स्थिति वहां से MBBS कर रहे भारतीय स्टूडेंट्स की है। हजारों स्टूडेंट्स अभी भी वॉर जोन में फंसे हुए हैं। जो स्टूडेंट्स अपने वतन लौट आए, उनका जीवन तो सुरक्षित हो गया, लेकिन भविष्य अधर में है। सबके मन में एक ही सवाल है-क्या यूक्रेन में कभी परिस्थितियां सामान्य हो पाएंगी और वे लौटकर अपनी MBBS पूरी कर पाएंगे?
अक्सर लोग इस सवाल के जवाब में ये तर्क देते हैं कि MBBS करने विदेश वो ही छात्र जाते हैं जिनकी रैंक कमज़ोर होती है, दूसरा तर्क ये है कि विदेश में काम पैसों में डॉक्टरी की पढ़ाई की जा सकती हैं वहीं भारत के प्राइवेट कॉलेजों में फीस करोड़ों में है. भारत के प्राइवेट मेडिकल कॉलेजों में फीस बहुत ज्यादा वसूली जाती है, उससे एक चौथाई रुपए में विदेश से MBBS कर सकते हैं। और तीसरा तर्क ये कि जितने स्टूडेंट्स हर साल NEET देते हैं, उसके मुकाबले 10 प्रतिशत भी मेडिकल सीटें नहीं हैं, ऐसे में दूसरे देशों में जाकर MBBS करना पड़ता है।
आइये सबसे पहले जानते हैं कि क्या वही स्टूडेंट्स विदेश में MBBS करने जाते हैं, जिनकी कमजोर रैंक होती है और भारत में पढ़ने के लायक नहीं होते। एक रिपोर्ट के अनुसार पिछले दस साल में राजस्थान के 13 हज़ार से ज़्यादा स्टूडेंट्स ने विदेश से MBBS किया। बता दें कि विदेश में MBBS करने वालों को नेशनल मेडिकल कमिशन (NMC) का फॉरेन मेडिकल ग्रेजुएट एग्जामिनेशन(FMGE) देना पड़ता है. ये एग्जाम पास करने वाले ही भारत में मेडिकल प्रैक्टिस कर सकते हैं. 10 साल में 13 हज़ार में से सिर्फ 2300 डॉक्टर ये एग्जाम क्लियर कर पाए. 10 हज़ार 700 से ज़्यादा फेल हो गए.
वहीं देश से हर साल औसतन 20 हज़ार स्टूडेंट्स विदेश में MBBS करने जाते हैं. स्वास्थय एवं परिवार कल्याण मंत्रालय की एक रिपोर्ट के अनुसार 2014 से 2020 तक कुल 1 लाख 38 हज़ार 573 स्टूडेंट्स ने विदेश से MBBS किया। जिनमे से सिर्फ 23763 ही फॉरेन मेडिकल ग्रेजुएट एग्जामिनेशन पास कर पाए. यानी कि इनमे से सिर्फ 17.14 फीसदी डॉक्टरों को ही मेडिकल प्रैक्टिस की अनुमति मिली।
एक्सपर्ट्स के मुताबिक़ ऐसा इसलिए होता है क्यूंकि दुसरे देशों में भाषा अलग होती है, पढ़ाई का लेवल भी भारत से थोड़ा अलग होता है, स्लेबस में भी बदलाव होता है. विदेश से MBBS करने वाले छात्रों को पेशेंट ट्रीटमेंट का अनुभव काफी काम मिलता है, यही कारण है कि विदेश से MBBS करने वाले FMGE में फेल हो जाते हैं.
इन देशों से MBBS तो FMGE ज़रूरी नहीं
ऑस्ट्रेलिया, कनाडा, नूज़ीलैंड, यूनाइटेड किंगडम और अमेरिका से पढ़ने वाले छात्रों को FMGE पास करने की ज़रूरत नहीं है. बता दें कि FMGE का आयोजन राष्ट्रीय परीक्षा बोर्ड की और से हर साल दो बार किया जाता है. परीक्षा में सफल होने के लिए न्यूनतम 50 फीसदी अंक प्राप्त करना ज़रूरी है. परीक्षा में सफल होने के बाद मेडिकल काउंसिल ऑफ़ इंडिया (MCI) रजिस्ट्रेशन करता है.