पंजाब में जिस तरह प्रधानमंत्री के काफिले को लगभग 20 मिनट तक रुकना पड़ा, वह निस्संदेह अचंभित करने वाला है। यह भी चिंताजनक और गंभीर बात है कि प्रधानमंत्री के रूट की अति गोपनीय जानकारी लीक कैसे हुई?
पंजाब में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सुरक्षा में जिस तरह चूक हुई है, शायद वह देश के अब तक के इतिहास में सबसे बड़ी चूक नहीं, बल्कि साजिश कही जा सकती है। नरेंद्र मोदी दुनिया के कुछ उन चुनिंदा प्रधानमंत्रियों में हैं, जिनको दूसरे देशों में भी विशेष सुरक्षा कवच प्रदान किया जाता है। वैसे तो अपने देश में हर प्रधानमंत्री की सुरक्षा का मानक एक ही है, परंतु नरेंद्र मोदी ऐसे प्रधानमंत्री हैं, जो दुनिया भर के आतंकियों की हिटलिस्ट में हैं। यही कारण है कि मोदी जब विदेशों की यात्रा पर भी होते हैं तो उनको वहां भी विशिष्ट सुरक्षा कवर प्रदान किया जाता है। ऐसे में बुधवार (5 जनवरी) को पंजाब में जिस तरह पाकिस्तान के निकट पड़ने वाले हिस्से में प्रधानमंत्री के काफिले को लगभग 20 मिनट तक रुकना पड़ा, वह निस्संदेह अचंभित करने वाला है। यह भी चिंताजनक और गंभीर बात है कि प्रधानमंत्री के रूट की अति गोपनीय जानकारी लीक कैसे हुई? मामले की नजाकत तब और बढ़ जाती है जब प्रधानमंत्री अपने ही किसी राज्य के मुख्यमंत्री को इंगित करते हुए अधिकारियों से यह कहें कि ‘अपने सीएम को थैंक्स कहना, मैं जिंदा लौट रहा हूं’।
वर्ष 1991 में तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी की हत्या को भी सुरक्षा व्यवस्था में एक बड़ी चूक माना गया था। इसी के बाद प्रधानमंत्री की सुरक्षा के प्रोटोकाल में व्यापक बदलाव किया गया था। प्रधानमंत्री की सुरक्षा कितनी चौकस रहते है, इसको एक उदाहरण से समझा जा सकता है। बात वर्ष 1996 की है। एचडी गौड़ा प्रधानमंत्री बन गये थे। एक दिन दिल्ली में उनका काफिला गुजरने वाला था। उस समय भारत के मुख्य न्यायाधीश थे जस्टिस अहमदी। काफिला गुजरना था, सो सामान्य यातायात रोक दिया गया था। इस दौरान अन्य लोगों के साथ जस्टिस अहमदी को भी आधा घंटे तक रुकना पड़ा था। बाद में इस स्थिति पर जस्टिस अहमदी ने दिल्ली के पुलिस आयुक्त को तलब कर लिया तो कमिश्नर ने विनम्रतापूर्वक कह दिया था- ‘सारी सर, प्रधानमंत्री के सुरक्षा प्रोटोकाल के साथ किसी तरह का समझौता नहीं किया जा सकता और न ही किसी को छूट दी जा सकती है।’
इस उदाहरण से अंदाज लगाया जा सकता है कि प्रधानमंत्री की सुरक्षा में कितनी चौकसी बरती जाती है। फिर यह तो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी हैं, जो आतंकियों की हिटलिस्ट में हैं। ऐसे में पंजाब सरकार यदि यह कहती है कि कोई चूक नहीं हुई, तो इसे कांग्रेस और उसके नेताओं तथा मुख्यमंत्री जैसे पद पर बैठे एक नेता की बेशर्मी की पराकाष्ठा ही कहा जायेगा। पंजाब कांग्रेस अध्यक्ष और आतंकी पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान के छोटे भाई नवजोत सिंह सिद्धू का यह बयान उनके दीमागी दीवालियेपन का परिचायक ही कहा जायेगा कि दिल्ली सीमा पर किसान साल भर धरने पर बैठे रहे, तब कुछ नहीं हुआ और प्रधानमंत्री को 20 मिनट रुकना पड़ गया तो हायतौबा मच गयी। शायद सिद्धू दिमाग से कमजोर हो गये हैं, तभी तो उन्हें याद नहीं रहा कि देश में किसी आंदोलन और राष्ट्रीय सुरक्षा दो अलग विषय हैं। क्या सिद्धू भूल गये कि 1984 में तत्कालीन प्रधानमंत्री की हत्या के बाद देश किस आग में झुलसा था।
प्रधानमंत्री की सुरक्षा के साथ खिलवाड़ पर देश भर में तीखी प्रतिक्रिया भी हुई है। पंजाब की प्रमुख राजनीतिक पार्टी अकाली दल सहित कई अन्य विपक्षी नेताओं ने भी इस चूक की निंदा की है। इस पर बेतुकी राजनीति भी शुरू हो गयी है, जो नहीं होनी चाहिए। कारण, यह किसी दल के नेता की सुरक्षा का नहीं, बल्कि देश के प्रधानमंत्री की सुरक्षा से जुड़ा मामला है। प्रधानमंत्री किसी दल का नहीं, अपितु संपूर्ण देश का होता है।
बात इसकी भी नहीं है कि प्रदर्शनकारी किसान थे और प्रधानमंत्री से अपनी बात कहना चाहते थे। सवाल यह है कि पंजाब पुलिस के अधिकारी क्या कर रहे थे? उन्हें तो प्रधानमंत्री के आवागमन और रूट की जानकारी थी। इसके बावजूद किसानों को इस रूट की जानकारी कैसे हुई और जानकारी हो भी गयी थी, तो वे वहां तक पहुंच कैसे गये? एक-दो मिनट नहीं, पूरे 20 मिनट तक फ्लाईओवर पर फंसे रहे। इससे भी दुर्भाग्यपूर्ण बात यह है कि इस घटना पर पंजाब सरकार और कांग्रेस द्वारा खेद जताने के बजाय घटिया राजनीति की जा रही है। इस ओछेपन को इसी से समझा जा सकता है कि इस घटना पर जब भाजपा हमलावर हुई तो कांग्रेस नेता अलका लांबा तथा पार्टी के राष्ट्रीय प्रवक्ता रणदीप सुरजेवाला खेद जताने के बजाय बयान दे रहे हैं कि पीएम को तो हवाई मार्ग से जाना था, तो वह सड़क मार्ग से गये ही क्यों? क्या सड़क मार्ग से जाते पंजाब सरकार और वहां के पुलिस प्रशासन को जानकारी नहीं दी गयी थी, क्या पीएम की सुरक्षा में लगे दस्ते ने यह चूक की? नहीं, ऐसा कुछ नहीं था। मौसम खराब होने के कारण प्रधानमंत्री ने सड़क मार्ग से जाने का फैसला किया और बाकायदा इसकी सूचना पंजाब के मुख्य सचिव तथा पुलिस महानिदेशक को दी गयी। पंजाब के पुलिस महानिदेशक द्वारा आवश्यक सुरक्षा प्रबंधों की आवश्यक पुष्टि के बाद ही प्रधानमंत्री सड़क मार्ग से यात्रा के लिए रवाना हुए। पुलिस से हरी झंडी मिलने के बाद ही प्रधानमंत्री का काफिला रवाना हुआ था लेकिन हुसैनीवाला के पास ही, जो पाकिस्तान से सटा इलाका है, वहां किसानों ने सड़क जाम कर दी। क्या पंजाब पुलिस इतनी भोली और अंजान है कि उसे नहीं पता कि प्रधानमंत्री का काफिला गुजरते समय किन-किन बातों का ध्यान रखना पड़ता है? क्या उसे पता नहीं है कि पीएम के काफिले के गुजरने के घंटा भर पहले सड़कें खाली करवा ली जाती हैं?
यदि तथाकथित आंदोलनकारी किसान प्रदर्शन पर अड़े थे तो क्या पंजाब पुलिस का यह दायित्व नहीं बनता था कि वह एसपीजी को सूचित करती कि रास्ते में अवरोध हो सकता है, अत: रूट परिवर्तित कर दिया जाये अथवा कार्यक्रम निरस्त करने पर विचार किया जाये? पर, ऐसा कुछ नहीं हुआ और प्रधानमंत्री को काफिले को 20 मिनट तक रास्ते में ही फंसे रहना पड़ा। यह पाकिस्तान के निकट वाला इलाका है। यह भी गौर करने वाली बात है कि पीएम के दौरे से पहले पाकिस्तानी आतंकी संगठनों ने एलान भी किया था कि मोदी की रैली फेल करने वालों के मालामाल कर दिया जायेगा? इसके बाद भी इतनी बड़ी चूक? क्या माना जाये कि पंजाब सरकार जान-बूझकर ऐसा कर रही थी। ओछी राजनीति में हुआ यह कि प्रधानमंत्री अपनी पार्टी की रैली में न पहुंच पायें, इसके लिए उनकी सुरक्षा को भी धता बता दी गयी। यह साजिश माफी योग्य नहीं, बल्कि यह तो राष्ट्रद्रोह का मामला बनता है।
देश और राष्ट्र के लोग भूले नहीं हैं कि पूर्व प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी और राजीव गांधी की किन दुर्भाग्यपूर्ण स्थितियों में हत्या कर दी गयी थी। देश उस समय किस तरह की आग में जला था, यह भी कोई भूला नहीं है। क्या कांग्रेस के नेताओं को यह भी याद नहीं रहा कि गांधी परिवार को आज भी पुख्ता सरकारी सुरक्षा मिली है? क्या कांग्रेस के प्रवक्ता तथा नेता यह भी भूल गये कि प्रधानमंत्री का अपना एक प्रोटोकाल होता है और एसपीजी के जवानों की इजाजत के बिना वह तय रूट अथवा कार्यक्रम के बिना इधर-उधर नहीं जा सकता। पर, रूट को साफ रखने की जिम्मेदारी राज्य सरकार और जिला प्रशासन की होती है। बिना उसकी हरी झंड़ी के एसपीजी के जवान मूव नहीं करते।
इस घटना पर पंजाब के एक तथाकथित आंदोलनकारी नेता का यह बयान तो और भी हास्यास्पद है कि किसान नाराज हैं तो प्रधानमंत्री के सामने प्रदर्शन करेंगे ही, भले ही उनकी सुरक्षा से खिलवाड़ होता रहे? पंजाब कांग्रेस के एक नेता ने तो यहां तक कह दिया कि फिरोजपुर में भीड़ ही नहीं एकत्र थी इसलिए प्रधानमंत्री ने जान-बूझकर अपना कार्यक्रम स्थगित कर दिया। बहरहाल इतना समझ लें कि कांग्रेस ने ओछी राजनीति का दौर रोका नहीं, तो उसे रसातल में जाने से कोई रोक नहीं सकता।
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