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नसीमुद्दीन सिद्दीकी, इमरान मसूद और अब सांसद दानिश अली की बसपा से बढ़ी दूरी...

लोकसभा चुनाव 2024 को लेकर एक ओर जहां बीजेपी मुसलमानों को अपने पाले में लाने की पूरी कोशिश कर रही है। वहीं बहुजन समाज पार्टी से मुसलमानों का मूवओहभंग होता जा रहा है। ऐसा इसलिए क्योंकि एक के बाद एक बसपा के मुस्लिम नेता मायावती का साथ छोड़ते जा रहे है।

नसीमुद्दीन सिद्दीकी, इमरान मसूद और अब सांसद दानिश अली की बसपा से बढ़ी दूरी...

लोकसभा चुनाव 2024 में हाथी किस रास्ते पर चलेगा, इसकी घोषणा बसपा सुप्रीमो मायावती ने अपने 68वें जन्मदिन के मौके पर कर दी है। मायावती के इस फैसले के बाद से विरोधी दलों में खलबली मच गई है। वहीं राजनीतिक विश्लेषकों की मानें तो मायावती का एकला चलो का रास्ता बीजेपी के लिए फायदेमंद साबित होगा। बसपा सुप्रीमो ने सभी अटकलों पर विराम लगाते हुए अकेले दम पर लोकसभा चुनाव लड़ने का एलान किया है, लेकिन इस बीच मायावती की मुश्किलें कम होने का नाम नहीं ले रही है। एक के बाद एक मुस्लिम नेताओं की बहुजन समाज पार्टी से बढ़ती दूरियों ने मायावती को टेंशन में डाल दिया है। ऐसे में सवाल भी उठने लगे हैं कि क्या मायावती की पार्टी बसपा से मुस्लिम नेताओं और मुसलमानों का मोह भंग होने लगा है।

दरअसल अमरोहा से बीएसपी सांसद कुंवर दानिश अली कांग्रेस में जाने के लिए बेताब नजर आ रहे हैं। उन्होंने अपने आधिकारिक एक्स से राहुल गांधी के साथ फोटो डालकर कांग्रेस की भारत जोड़ो न्याय यात्रा में शामिल होने का निर्णय लिया है। दानिश ने अपनी पोस्ट के जरिए कहा कि ये फैसला मेरे लिए एक बहुत ही अहम फैसला है। इसे मैंने बहुत सोच समझ कर लिया है। वहीं दानिश अली के इस कदम के बाद से ये चर्चा जोरों पर है कि अमरोहा से सांसद जल्द ही कांग्रेस का दामन आधिकारिक रूप से थाम सकते हैं। हालांकि दानिश अली बसपा से निलंबित चल रहे हैं। पिछले साल 9 दिसंबर को पार्टी विरोधी गतिविधियों के चलते बसपा ने अमरोहा से सांसद कुंवर दानिश अली को निलंबित कर दिया था।

मुस्लिम नेता BSP छोड़कर गए
बीते अक्टूबर महीने में पश्चिमी यूपी के कद्दावर मुस्लिम नेता और बसपा नेता इमरान मसूद भी कांग्रेस में शामिल हो गए थे। इमरान मसूद 2022 विधानसभा चुनाव के बाद समाजवादी पार्टी छोड़कर बहुजन समाज पार्टी में शामिल हुए थे। इमरान ने बसपा ज्वाइन करने के बाद मायावती की जमकर तारीफ की थी। बसपा ने इमरान मसूद को जिम्मेदारी भी सौंप दी थी, लेकिन बसपा में कुछ दिन बीतने के बाद इमरान मसूद टिक नहीं पाए। इमरान मसूद को कांग्रेस सांसद राहुल गांधी की तारीफ करने के चलते पार्टी से निकाल दिया गया था। इसके बाद इमरान ने मायावती पर आरोप लगाते हुए कांग्रेस का दामन फिर से थाम लिया था। बताते चले कि बसपा के कद्दावर मुस्लिम नेता नसीमुद्दीन सिद्दीकी भी मायावती का साथ छोड़कर कांग्रेस में आ चुके हैं।

मुस्लिम वर्ग पर सबकी नजर
वरिष्ठ पत्रकार सुरेश बहादुर सिंह की मानें तो मुसलमान कभी भी बहुजन समाज पार्टी का समर्थक नहीं रहा है। मुसलमान हमेशा उस राजनीतिक दल के साथ रहा है, जो भारतीय जनता पार्टी को हराने की क्षमता रखता हो। उन्होंने कहा कि एक समय यूपी में समाजवादी पार्टी मजबूत स्थिति में थी उस वक्त मुसलमान सपा के साथ आ गया। जब उसे लगा की BSP मजबूत है तो मायावती के साथ चला गया। यही वहज भी रही कि 2019 लोकसभा चुनाव में सपा-बसपा गठबंधन ने 15 सीटें जीती थी। मुस्लिम समाज ने भी सपा-बसपा गठबंधन पर अपना विश्वास जताया था।

मुसलमान इस चुनाव में एंटी बीजेपी ही रहेगा
वहीं सुरेश बहादुर सिंह ने बताया कि मायावती ने जिस तरह से अकेले चुनाव लड़ने की घोषणा की है, इससे मुसलमान अब समझ गया है कि मायावती बीजेपी के इशारे पर काम कर रही है। उन्होंने कहा कि मायावती ने अपने जन्मदिन पर अकेले चुनाव लड़ने का एलान करते ही आज ही BJP की आधी मुश्किलें कम कर दी है। क्योंकि जब भी मतों का बंटवारा होगा तो बीजेपी को उसका फायदा मिलेगा। वरिष्ठ पत्रकार ने कहा कि मुसलमान इस चुनाव में एंटी बीजेपी ही रहेगा। एंटी बीजेपी में जिसकी स्थिति मजबूत होगी उसके साथ जाएगा। चाहे बसपा या हो फिर इंडिया गठबंधन का उम्मीदवार अगर होता है तो।

मुसलमान कभी मायावती के पक्ष में नहीं रहा
वरिष्ठ पत्रकार ने कहा कि अमरोहा सांसद कुंवर दानिश अली के कांग्रेस से बढ़ती नजदीकियों से बसपा को कोई नुकसान नहीं होगा। क्योंकि मुसलमान कभी बसपा के पक्ष में नहीं रहा है। मुसलमान हमेशा से जानता है कि बसपा बीजेपी के पक्ष में खड़ी रही है। सुरेश बहादुर सिंह ने कहा कि इस बार मुसलमान का रुझान कांग्रेस की ओर हो सकता है। क्योंकि कांग्रेस इंडिया गठबंधन में शामिल है और समाजवादी पार्टी भी गठबंधन का हिस्सा है, इसलिए मुसलमान इस बार सपा और कांग्रेस यानी कि इंडिया गठबंधन के संयुक्त उम्मीदवार के पक्ष में जा सकता है।

वरिष्ठ पत्रकार नवल कांत सिन्हा ने कहा कि बसपा से दूरी वही मुस्लिम नेता बन रहे हैं, जिन्हें टिकट की आस थी, लेकिन उन्हें लग रहा था कि टिकट नहीं मिलेगा। कांग्रेस दोनों नेताओं को इसलिए भी ले रही क्योंकि उसे मालूम है कि दोनों बड़े मुस्लिम नेता है और दोनों का वोटबैंक है। इनको लेने से अन्य सीटों पर भी मुस्लिम वोट के लिए फायदेमंद होगा।

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