BJP को अयोध्या का जवाब नैमिषारण्य से? वैदिक मंत्रों के साथ लोकसभा चुनाव का प्रचार शुरू करेंगे Akhilesh Yadav
समाजवादी पार्टी वैदिक मंत्रों के साथ नैमिषारण्य में अपने लोकसभा चुनाव अभियान की शुरुआत करने वाली है। मना जा रहा है कि बीजेपी से मुकाबले के लिए सपा ने अपना ट्रैक चेंज किया है।
उत्तर प्रदेश में बसपा और कांग्रेस समेत तमाम दलों के साथ गठबंधन करके भी अखिलेश को सफलता नहीं मिली। ब्राह्मण, आंबेडकर और लोहियावादी राजनीति से भी उन्हें कोई फायदा हासिल नहीं हुआ। ऐसे में सपा मुखिया अब बीजेपी की पिच पर बैटिंग करने आ गए हैं। अपने लोकसभा अभियान के तहत कार्यकर्ताओं के प्रशिक्षण के लिए सपा ने अपने कार्यक्रम की शुरुआत सीतापुर के नैमिषारण्य से की है। इसे बीजेपी की अयोध्या पॉलिटिक्स का जवाब माना जा रहा है। अखिलेश पार्टी के कोर मुसलमान वोटरों के अलावा सॉफ्ट हिंदुत्व के जरिए अपने वोटबैंक का दायरा बढ़ाने पर काम कर रहे हैं।
भारतीय जनता पार्टी लोकसभा चुनाव में सभी 80 सीटों पर जीत करने का टारगेट लेकर चल रही है। इसके लिए पार्टी के पास राम मंदिर जैसा अचूक हिंदुत्ववादी मुद्दा है। इसके मुकाबले में अखिलेश यादव की पार्टी अपना नैमिषारण्य दांव लेकर आई है। आगामी 9-10 जून को वैदिक मंत्रोच्चार और हवन-पूजन के साथ नैमिषारण्य में सपा अपने लोकसभा अभियान की शुरुआत करेगी। दो दिन तक यहां कार्यकर्ता प्रशिक्षण शिविर चलेगा, जिसमें पार्टी के वर्कर्स को चुनाव जीतने के दांव-पेच सिखाए जाएंगे। इसके अलावा मतदाता सूची सत्यापन, वोटर्स को बूथ तक ले जाने जैसी व्यवस्थाओं का तरीका भी सिखाया जाएगा।
नैमिषारण्य क्यों है अहम
अपने अभियान के आगाज के लिए सपा ने उस नैमिषारण्य को चुना है, जहां 33 करोड़ देवी-देवताओं का वास माना जाता है। ऋषियों की तपस्थली होने के कारण हिंदू मतावलंबियों के लिए यह स्थान धार्मिक रूप से काफी महत्वपूर्ण है। यहां अपना कार्यक्रम शुरू करने से पहले अखिलेश यादव समेत पार्टी के अन्य नेता वैदिक मंत्रोच्चार के साथ हवन-पूजन करेंगे। इसके लिए 151 बेदियां बनाई जाएंगी। ललितादेवी मंदिर में पार्टी के नेता और कार्यकर्ता दर्शन-पूजन करेंगे और जीत का आशीर्वाद लेंगे।
अयोध्या पॉलिटिक्स का जवाब है नैमिषारण्य
बीजेपी जहां लोकसभा चुनाव में अयोध्या में राम मंदिर के नगाड़े के साथ उतरने वाली है। वहीं सपा ने भी इसका जवाब नैमिषारण्य के रूप में खोज लिया है। दरअसल, बीते विधानसभा चुनाव में 80 फीसदी मुसलमानों ने सपा को वोट दिया था। फिर भी सपा को जीत नहीं मिली। पार्टी को लगता है कि प्रदेश में बदले राजनैतिक माहौल में मुस्लिम और यादव वोटर्स के भरोसे नहीं रहा जा सकता। ऐसे में पार्टी की ओर से कई आयामों में ऐसे विमर्श तैयार किए जा रहे हैं, जिससे उसकी पहुंच खास समुदाय-वर्ग से बाहर निकलकर सभी वर्गों में हो।
पार्टी का एक धड़ा रामचरितमानस की विवादित चौपाइयों को लेकर दलित वोटर्स को लामबंद करने में लगा है। वहीं अखिलेश समेत पार्टी का एक हिस्सा ऐसा भी है जो सॉफ्ट हिंदुत्व के जरिए धर्म के आधार पर ध्रुवीकृत हुए लोगों को अपने साथ जोड़ने की कोशिश कर रहा है। सपा पर लगातार मुस्लिम तुष्टीकरण के आरोप लगते रहे हैं। ऐसे में वह अपनी इस छवि से निकलना भी चाहती है लेकिन हिंदुत्व की पिच पर आकर खेलना भी सपा के लिए आसान नहीं रहने वाला है।
राजनैतिक विश्लेषक मानते हैं कि हिंदू मतदाताओं पर जैसी भाजपा की पकड़ है, सपा के लिए वह छीन पाना बेहद मुश्किल हो सकता है। बीजेपी ने अपने आपको जनता के सामने ऐसे पेश किया है, जैसे हिंदू हितों की रक्षा जैसा वह कर सकती है, वैसा कोई नहीं कर सकता। अन्य दल तो इसका सिर्फ दिखावा कर सकते हैं। अखिलेश और उनकी पार्टी पर ये आरोप काफी गहरे हैं। हिंदुत्व की पिच पर चलने से उनके परंपरागत मुस्लिम वोटर्स नाराज हो सकते हैं। ऐसे में इसका फायदा कांग्रेस और बीएसपी जैसे दल उठा सकते हैं, जिनको दरकिनार करके मुसलमान मतदाताओं ने विधानसभा चुनाव में सपा को वोट दिया था।