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लखनऊ: बेटियां बोझ होती हैं कहकर मां ने 10 साल की उम्र में घर से निकाला, बीमारी से जूझ रही मीनू की भावुक स्टोरी

लखनऊ के बलरामपुर अस्पताल में शशि मुखर्जी (मीनू) पिछले एक साल से अपना इलाज करवा रही हैं। वो लीवर की गंभीर बीमारी से ग्रसित हैं। लेकिन उनकी आवाज इन दिनों चर्चा का विषय बनी है। बीते दिनों उनका वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हुआ, जिसकी सभी तारीफ करते नजर आ रहे हैं।

लखनऊ: बेटियां बोझ होती हैं कहकर मां ने 10 साल की उम्र में घर से निकाला, बीमारी से जूझ रही मीनू की भावुक स्टोरी

उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ स्थित बलरामपुर अस्पताल का एक वीडियो इन दिनों खूब वायरल हो रहा है। दरअसल, यहां शशि मुखर्जी (मीनू) नाम की एक महिला मरीज भर्ती हैं। शरीर से दुबली-पतली ये मरीज लीवर की गंभीर बीमारी से ग्रसित हैं। हालाकिं, हॉस्पिटल प्रशासन मीनू को बेहतर इलाज दिलाने के लिए हर संभव प्रयास कर रहा है। एक बात से सभी हैरान हैं। वजह है इनका हौसला, क्योंकि 10 साल की उम्र से कष्टों भरा जीवन बिता रहीं हैं। पहले माता-पिता ने घर से निकाला और अब गंभीर बीमारी से पीड़ित हैं। बावजूद इसके मीनू का हौसला सामान्य इंसान से कहीं ज्यादा है। जानलेवा बीमारी से जूझ रही मीनू इतना सुरीला गाती हैं कि शायद अच्छे-अच्छे संगीतकार भी फेल हो जाएं।

मीडिया से बातचीत में शशि मुखर्जी (मीनू) ने कुछ ऐसी बातें साझा की, जिसने झकझोर कर रख दिया है। उन्होंने ने कहा कि मैं 10 साल की थी, तब मेरी मां ने यह कहकर घर से निकाल दिया था कि लड़कियां बोझ होती हैं। तब न तो रहने के लिए घर था और न ही खाने की कोई व्यवस्था। ऐसे हालातों में कुछ दिनों तक अपने स्कूल के बरामदे में बिताए। बचपन से संगीत सुनने और गाने का शौख था, लेकिन पैसे का आभाव और वातावरण ठीक न होने की वजह से सीख नहीं सकी। परिवार से दूर होने पर हालात ऐसे थे कि एक-एक दिन गुजारना भी सालों के बराबर लगता था। तकलीफें और अकेलेपन बहुत था, इसीलिए मन को बहलाने के लिए संगीत सुना करती थी। फिर धीरे- धीरे उन्हीं गानों को गुन-गुनाकर सीखने की कोशिश की।

डॉक्टर्स भी हैं आश्चर्यचकित
डॉक्टर तो इस बात पर भी आश्चर्य चकित हैं कि ऐसी स्थिति में मरीज का जीवित होना भी बड़ी बात होती है। लेकिन मीनू का जो हौसला और संगीत के प्रति प्रेम है, जिसने सभी को सोचने पर मजबूर कर दिया है। दरअसल, मीनू बलरामपुर अस्पताल के आर्थोपैडिक वार्ड में भर्ती हैं। 25 साल पहले परिवार से अलग इधर- उधर अपना गुजर-बसर कर रहीं हैं। आज भले ही उनका परिवार उनके साथ नहीं है, लेकिन उन्होंने वहां भर्ती मरीजों और डॉक्टर्स को ही अपना परिवार मान लिया हैं। अच्छी चिकित्सा सेवा मिले इसके लिए मुख्य चिकित्सा अधिकारी डॉक्टर जीपी गुप्ता उन्हें समझाकर बुझाकर केजीएमयू में भर्ती कराने का प्रयास कर रहे हैं, जिससे कि उनका जल्द से जल्द बेहतर इलाज हो सके।

आवाज से मोह लेती हैं सबका मन
बलरामपुर अस्पताल में चारों ओर निराशा के बीच मीनू की सुरीली आवाज आपका मन मोह लेगी। हैरत की बात तो ये है इसके लिए उन्होंने कहीं शिक्षा नहीं हासिल की। यही वजह है कि सोशल मीडिया के साथ अलग-अलग जगहों पर उनकी खूब सराहना हो रही है। यही नहीं मीनू हिंदी के अलावा बंगाली भाषा में भी लोगों को मुरीद करने वाला संगीत गाती हैं। उन्हें बचपन से संगीत पसंद है। दस साल की उम्र में दुःख का पहाड़ टूटा और फिर घर से निकाल दिया गया। इसके बाद जीवन तकलीफों भरा बीता। काफी संघर्षों और अकेलेपन के साथ मीनू इधर-उधर भटकती रहीं। इस दौरान उनका सहारा सिर्फ संगीत रहा। मीनू का सबसे पसंदीदा गाना 'कोरा कागज था ये मन मेरा, लिख लिया नाम इसपे तेरा' है क्योंकि इसके बोल उनकी जिंदगी पर आधारित है।

असहनीय दर्द के बीच गाती हैं संगीत
कोरा कागज गाने के जरिए हमेशा उन्होंने अपने दुखों को लोगों के सामने प्रस्तुत करने का काम किया। यही गाना आज मीनू की पहचान बन गया है, जिसको लेकर हर तरफ उनकी चर्चा हो रही है। मीनू जानलेवा बीमारी से जूझ रही है। कभी-कभी उसे असहनीय दर्द से गुजरना पड़ता है। बावजूद मीनू सुबह-शाम अस्‍पताल के एक वार्ड से दूसरे वार्ड में घूमती रहती हैं। मरीजों के पास बैठती हैं और अपना गाना सुनाकर उनके दर्द कम करने का प्रयास करती हैं। मीनू की सुरीली आवाज को पसंद करने वाले अस्पताल के मरीज और स्टाफ ही नहीं, बल्कि डॉक्टर और तीमारदार भी हैं। मीनू सभी को सुरीला गाना सुनाती हैं। लोगों की फरमाइश पर वार्ड में गुनगुना लेती हैं।

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