UP को आखिर कब मिलेगा अपना फुल टाइम DGP? जानिए रिटायर्ड अफसर और वरिष्ठ पत्रकारों का नजरिया
एक वरिष्ठ पत्रकार का कहना है कि यह केंद्र और राज्य सरकार की आपसी खींचतान का नतीजा है कि प्रदेश को तीसरी बार कार्यवाहक डीजीपी मिला है। यह राज्य और विभाग का दुर्भाग्य है। वहीं पूर्व डीजीपी ने कहा कि यह कोई थानाध्यक्ष नहीं, पुलिस महानिदेशक की नियुक्ति है, इसे गंभीरता पूर्वक लेना चाहिए।
उत्तर प्रदेश पुलिस को एक बार फिर अपना नया कार्यवाहक डीजीपी (UP DGP) मिल गया है। 1988 बैच के आईपीएस अफसर विजय कुमार (IPS Officer Vijay Kumar) को कार्यवाहक डीजीपी के रूप में जिम्मेदारी दी गई है। बीते करीब एक साल से यूपी पुलिस को कार्यवाहक डीजीपी से ही काम चलाना पड़ रहा है। वहीं इसको लेकर सियासत भी शुरू हो गई है। सपा मुखिया अखिलेश यादव से लेकर तमाम सियासी दलों ने राज्य सरकार पर हमला बोल दिया है। उधर पूर्व डीजीपी से लेकर वरिष्ठ पत्रकार तक ने चिंता व्यक्त की है।
एक वरिष्ठ पत्रकार का कहना है कि यह केंद्र और राज्य सरकार की आपसी खींचतान का नतीजा है कि प्रदेश को तीसरी बार कार्यवाहक डीजीपी मिला है। यह राज्य और विभाग का दुर्भाग्य है। वहीं पूर्व डीजीपी ने कहा कि यह कोई थानाध्यक्ष नहीं, पुलिस महानिदेशक की नियुक्ति है, इसे गंभीरता पूर्वक लेना चाहिए। पूर्ण कालिक डीजीपी यूपी का रिक्वायरमेंट और अधिकार भी है।
मुकुल गोयल थे आखिरी पूर्ण कालिक डीजीपी
दरअसल पूर्व डीजीपी ओपी सिंह के रिटायर होने के बाद 1987 बैच के आईपीएस अफसर मुकुल गोयल को परमानेंट डीजीपी बनाया गया था, लेकिन यूपी सरकार ने 11 मई 2022 को डीजीपी पद से हटा दिया था। 1987 बैच के आईपीएस मुकुल गोयल का रिटायरमेंट फरवरी 2024 में होना है। मुकुल गोयल को हटाकर यूपी सरकार ने डीएस चौहान को कार्यवाहक डीजीपी बनाया था लेकिन मार्च 2023 में डीएस चौहान सेवानिवृत्त हो गए। उसके बाद 1988 बैच के आईपीएस अफसर राजकुमार विश्वकर्मा को भी कुछ दिनों के लिए ही कार्यवाहक डीजीपी बनाया गया। आरके विश्वकर्मा 31 मई को रिटायर हो गए। अब उनकी जगह उन्ही के 1988 बैच के विजय कुमार को कार्यवाहक डीजीपी नियुक्त किया गया है। विजय कुमार मौजूदा समय में डीजी विजलेंस व सीबीसीआईडी की जिम्मेदारी संभाल रहे थे। अब उन्हें वरिष्ठता के क्रम में कार्यवाहक डीजीपी का अतिरिक्त कार्यभार सौंपा गया है।
जो कार्यवाहक डीजीपी बने, उनके कार्यकाल में कोई बड़ी घटना नहीं हुई- पूर्व डीजीपी
पूर्व डीजीपी एएल बनर्जी ने कहा कि एक बार हो सकता है लेकिन बार बार कार्यवाहक डीजीपी बने, ऐसा होना नहीं चाहिए। लेकिन उन्होंने कहा कि जो दो कार्यवाहक डीजीपी बने है उनके कार्यकाल में कोई बहुत बड़ी घटना नहीं हुई, ना ही कोई दंगा-फसाद हुआ। कानून व्यवस्था मेंटेन रहा है। इसके साथ ही उन्होंने बताया कि प्रकाश सिंह केस में क्लियरकट गाइडलाइन दिया है उसको फॉलो करना चाहिए। उस केस में डीजीपी के सेलेक्शन को लेकर आदेश दिया गया है। उन्होंने बताया कि राज्य सरकार की ओर से वरिष्ठता के आधार पर 5-6 अधिकारियों का एक पैनल यूपीएससी को भेजता है, उसमे से कुछ अधिकारियों को सेलेक्ट कर यूपीएससी राज्य सरकार को भेजता है उस पैनल से राज्य सरकार को उपयुक्त अधिकारी को सेलेक्ट कर डीजीपी बनाना होता है। जो दो साल के लिए डीजीपी बनता है।
गृह विभाग को सतर्क रहने की जरूरत- पूर्व डीजीपी विक्रम सिंह
पूर्व डीजीपी विक्रम सिंह ने कहा कि अधिकारियों की कमी नहीं है लेकिन जब पैनल ही नहीं भेजेंगे तो ऐसे ही कार्यवाहक डीजीपी बनाना पड़ेगा। उन्होंने कहा कि यह कोई थानाध्यक्ष नहीं, यूपी पुलिस महानिदेशक की नियुक्ति है इसे गंभीरता पूर्वक होना चाहिए। पूर्व डीजीपी ने कहा कि पूर्णकालिक डीजीपी ज्यादा कारगर और इफेक्टिव होगा कार्यवाहक डीजीपी से। पूर्ण कालिक डीजीपी यूपी का रिक्वायरमेंट और अधिकार भी है। कार्यवाहक डीजीपी विजय कुमार को ही स्थाई डीजीपी बना सकते हैं वो बहुत अच्छे अफसर है। गृह विभाग को सतर्क रहने की जरूरत है। इसके साथ ही विक्रम सिंह ने कहा कि मुकुल गोयल, रेणुका मिश्रा,आदित्य मिश्रा, विजय कुमार, आशीष गुप्ता ये ऐसे अधिकारी थे जिन्हें परमानेंट डीजीपी बना सकते थे।
पूर्ण कालिक डीजीपी के लिए कई अधिकारियों की बलि उचित नहीं- वरिष्ठ पत्रकार
वरिष्ठ पत्रकार सुरेश बहादुर सिंह का कहना है कि कार्यवाहक डीजीपी नहीं होना चाहिए, पूर्ण कालिक डीजीपी बनाना चाहिए। कानून व्यवस्था पर इसका बहुत असर पड़ता है। लेकिन अगर पूर्ण कालिक डीजीपी बनाने के लिए कई अधिकारियों की बलि देनी पड़े, तो वो कोई उचित कदम नहीं कहा जाएगा। वहीं कार्यवाहक डीजीपी बनाने को लेकर वरिष्ठ पत्रकार ने कहा कि सरकार वरीयता क्रम को प्राथमिकता दे रही है। कई अफसर ऐसे है जो दो-तीन महीने में रिटायर हो जा रहे हैं। लेकिन बहुत ऐसे अधिकारी भी है जिनको उनका ड्यू नहीं मिला है वो आज भी मानते है कि उनके साथ अन्याय हुआ है वो अगर थोड़े समय के लिए भी डीजीपी रहते तो उनको लगता कि उनको ड्यू मिल गया है। वरिष्ठ पत्रकार ने कहा पिछली सरकारों में यूनियर्स को प्रमोट करके (काफी सीनियर को पीछे छोड़) उनको डीजीपी बना दिया जाता था। उन्होंने कहा कि ये अच्छी बात नहीं है कानून व्यवस्था के नजरिये से की, डीजीपी कार्यवाहक हो। लेकिन सरकार ने वरीयता क्रम को ध्यान में रखा है भले ही दो-तीन महीने के लिए डीजीपी मिल रहे हो, उन अधिकारियों को मौका मिल रहा है प्रमोशन और डीजीपी के रूप में कार्य करने का। इसको इस नजरिए से भी देखा जा सकता है।
कार्यवाहक शब्द ही टम्परेरी है, अधिकारी मन-लगन से काम नहीं कर पाता- नवल कांत
वरिष्ठ पत्रकार नवल कांत सिन्हा ने कहा कि आश्चर्य की बात है कि कार्यवाहक डीजीपी क्यों बनाया जा रहा है। यूपी में पहले ऐसा हुआ है कि अगर किसी अधिकारी के रिटायमेंट की उम्र बहुत कम बची है लेकिन उसके बावजूद उन्हें फुलफ्लैश डीजीपी बनाया गया है। सरकार को पूर्णकालिक डीजीपी बनाया चाहिए। उन्होंने कहा कि जो डीजीपी होता है उसकी जिम्मेदारी होती है कि वो पुलिस विभाग का मुखिया है लेकिन कार्यवाहक शब्द ही ऐसा है कि वो टम्परेरी है। कार्यवाहक डीजीपी उतने मन और लगन से काम नहीं कर पाता है। वरिष्ठ पत्रकार ने कहा कि पुलिस का इकबाल सायलॉजिकल बनता है और जब अपराधियों के मन में होता है कि यूपी में डीजीपी ही नहीं है तो वो इकबाल नहीं बनता है। बहुत से ऐसे काम होते है जिन्हें कार्यवाहक करने की हिम्मत नहीं जुटा पाता है। ऐसा भी होता होगा कि जो आदेश फुलफ्लैश डीजीपी कर सकता है वो कार्यवाहक डीजीपी नहीं कर पाता होगा। इससे लोगों के बीच अच्छा मैसेज नहीं जाता है, सरकार की छवि और पुलिसिंग के लिए भी अच्छा सन्देश देने वाला नहीं है।
कार्यवाहक डीजीपी मिलना विभाग और राज्य का दुर्भाग्य- ब्रजेश सिंह
उधर वरिष्ठ पत्रकार ब्रजेश सिंह का कहना है कि यह राज्य और विभाग का दुर्भाग्य है कि तीन बार से कार्यवाहक डीजीपी मिल रहा है। उन्होंने कहा कि जब कार्यवाहक डीजीपी होता है तो उसका असर सब जगह होता है चाहे वो कानून व्यवस्था हो या विभाग पर, वो पूरी मनोदशा से काम नहीं कर पाता है। वरिष्ठ पत्रकार ने बराबर कार्यवाहक डीजीपी बनाने के पीछे आपसी (बीजेपी, केंद्र और राज्य सरकार की) खींचतान को वजह बताया है। इसके साथ ही ब्रजेश सिंह ने कहा कि इस मुद्दे पर अगर विपक्ष हमला बोला रहा है तो इसकी सरकार दोषी है। सरकार खुद अपनी फजीहत कराने पर तुली है। जब किसी सरकार में अफसर सरकार की कमजोरी हो जाये, इस सरकार में तमाम ऐसे अफसर है जो सरकार की कमजोरी है। व्यवस्था से कमजोर होने पर विपक्ष हमला बोलता ही है।