क्या कल से सुरु होने वाले संसद मॉनसून सत्र में अतीक अहमद को दी जाएगी श्रद्धांजली ?
28 मार्च को प्रयागराज में अतीक अहमद को 2006 के उमेश पाल अपहरण मामले में कोर्ट ने दोषी ठहराया और आजीवन कारावास की सजा सुनाई। इसी साल अप्रैल महीने में अतीक अहमद की गोली मारकर हत्या कर दी गई। ऐसे में सवाल है कि गुरुवार जब संसद का मॉनसून सत्र शुरू होगा तब अतीक को श्रद्धांजलि दी जाएगी।
संसद का मॉनसून सत्र कल यानी गुरुवार से शुरू हो रहा है। पारंपरिक रूप से प्रत्येक सत्र की शुरुआत के बाद दिवंगत सदस्यों को श्रद्धांजलि दी जाती है। ऐसे में सवाल है कि जब सत्र की शुरुआत होगी तब लोकसभा के पूर्व सदस्य अतीक अहमद को श्रद्धांजलि दी जाएगी। अतीक अहमद को 2004 से 2009 तक एक बार फूलपुर से लोकसभा सदस्य चुना गया। इसी साल अप्रैल के महीने में अतीक अहमद की गोली मारकर हत्या कर दी गई। अतीक अहमद को अपहरण के मामले में दोषी ठहराया गया था। इसके साथ ही गैंगस्टर से नेता बने अतीक अहमद पर 100 से अधिक मामले दर्ज थे। कानून के जानकारों का इस बारे में कहना है कि यह संसदीय परंपरा का हिस्सा है। न तो संविधान में और न ही किसी कानून में इसका उल्लेख है।
ऐसे में लोगों के मन में यह सवाल आ रहा है कि मॉनसून सत्र के तहत जब गुरुवार लोकसभा की कार्यवाही शुरू होगी उससे पहले पूर्व सदस्य अतीक अहमद को श्रद्धांजलि दी जाएगी या नहीं ? क्या याद में मौन रखा जाएगा? क्या सदन की कार्यवाही श्रद्धांजलि के बाद स्थगित कर दी जाएगी? ऐसे सवाल लोगों के मन में हैं। संवैधानिक विषयों के विशेषज्ञ और लोकसभा के पूर्व महासचिव सुभाष सी कश्यप ने इस बारे में कहा था कि इस पर अध्यक्ष को ही फैसला करना होता है।
ऐसा ही सवाल जब पिछले दिनों लोकसभा की पूर्व महासचिव स्नेहलता श्रीवास्तव के सामने आया। लोकसभा की पूर्व महासचिव स्नेहलता श्रीवास्तव ने कहा पूर्व सांसदों और सांसदों में किसी की मृत्यु के बारे में कोई सूचना मिलती है तो चल रहे सत्र में या अगले सत्र में शोक व्यक्त किया जाता है। हालांकि मेरे सामने ऐसा कोई मामला नहीं आया है जिसमें कोई सांसद या पूर्व सांसद जिसे सजा सुनायी गयी हो और उसे श्रद्धांजलि दी गयी हो।
संसद कवर करने वाले कुछ पत्रकारों ने इस बारे में कहा कि उनके संज्ञान में इस तरह का कोई मामला ध्यान नहीं आ रहा। सदन के दिवंगत सदस्यों को श्रद्धांजलि दी जाती है लेकिन यह सिर्फ संसदीय परंपरा का हिस्सा है। इसका उल्लेख न तो संविधान में और न ही किसी कानून में किया गया है। ऐसे में यह विशुद्ध रूप से संसदीय परंपराओं के हिस्से के रूप में किया जाता है। यह काफी कुछ सदन के अध्यक्ष पर निर्भर करता है।