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लोगों में गोबर की चप्पलों का क्रेज: रितेश को मिल रहे देश भर से ऑर्डर, पढ़ें पूरी खबर

रितेश अभी गोबर का इस्तेमाल करके तक़रीबन 30 तरह के प्रोडक्ट्स बना रहे हैं रितेश। अगर गोबर से बानी चप्पल 3-4 घंटे बारिश में भीग जाए, तो भी खराब नहीं होती।

लोगों में गोबर की चप्पलों का क्रेज: रितेश को मिल रहे देश भर से ऑर्डर, पढ़ें पूरी खबर

15 साल पहले, खेती और पशुपालन के बारे में कुछ नहीं जानने वाले छत्तीसगढ़ के रितेश अग्रवाल ने नौकरी छोड़ गौसेवा से जुड़ने का फैसला किया। उसके बाद वह गौशाला से गोबर खरीद कर इकोफ्रेंडली चीजें बना शुरू किया। 

अग्रवाल बताते हैं की सबसे पहले उन्होंने राजस्थान के प्रोफेसर  शिवदर्शन मालिक से गोबर से ईंट बनाने की ट्रेनिंग ली फिर उन्होंने गोबर से इकोफ्रेंडली लकड़ियां, ईंटे, मूर्तियां और दिये अदि बनाने का काम शुरू किया।

फ़िलहाल रितेश, छत्तीसगढ़ के राज्य सरकार की ओर से बने 'गोठान' को संभालने का काम करते हैं। 'गोठान', सड़क पर बेसहारा घूमती गायों के लिए बनी एक गौशाला है। नगर निगम के लोग, रायपुर के आस-पास से जख्मी और खाने के लिए भटकती गायों को इस गौशाला में लाते हैं। साल 2018-19 में छत्तीसगढ़ सरकार ने गोठान मॉडल शुरू किया, तब से ही रितेश भी इस मॉडल के साथ जुड़े। 

रितेश गोबर से 30 से भी ज्यादा चीजें बनाते हैं


इस गौशाला को स्वाबलंबी बनाने के लिए ही, उन्होंने गाय के गोबर से अलग-अलग चीज़े बनाना शुरू किया। अभी वह गोबर का इस्तेमाल करके तक़रीबन 30 तरह के प्रोडक्ट्स बना रहे हैं। 

फिलहाल, इस गौशाला में 385 गायें हैं। इनके चारे का भी रितेश विशेष ध्यान रख रहे हैं। वह शहर की सब्जी मंडी से बेकार सब्जियां भी लाते हैं, जो गाय के लिए बढ़िया चारा बनती हैं। 

दादी के नुस्खे से आया गोबर से चप्पल बनाने का ख्याल


दरअसल, रितेश गोबर को काफी फायदेमंद मानते हैं। इसलिए वह अक्सर इसके नए-नए प्रयोग के बारे में सोचते रहते हैं। उन्होंने बताया, “मेरी दादी हमेशा कहा करती थी कि वे गोबर की लिपाई किए हुए घर में रहते थे। अब टाइल वाले घर में मैं गोबर तो लीप नहीं सकता था, इसलिए मुझे गोबर से चप्पल बनाने का ख्याल आया।”

चप्पल बनाने के पीछे का एक और कारण टूटी हुई चप्पलों से फैल रहे प्रदूषण को कम करना भी था। गोबर से बनी उनकी ये चप्पलें पूरी तरह से ईको-फ्रेंडली हैं।  

उन्होंने पहली चप्पल अपनी दादी के लिए ही बनाई थी। वह चप्पल थोड़ी सख्त थी, लेकिन उनकी दादी ने उन्हें बताया कि इससे उन्हें स्वास्थ्य लाभ भी हो रहे हैं, जिससे रितेश को ऐसी और चप्पलें बनाने के लिए प्रेरणा मिली। 

3-4 घंटे बारिस में भीगने पर भी नहीं ख़राब होता गोबर से बने चप्पल



उनकी दादी को देखकर कई लोगों ने उन्हें ऐसी और चप्पलें बनाने को कहा। उन्होंने इस चप्पल को बनाने में गोबर, ग्वारसम  और चूने का इस्तेमाल किया है। एक किलो गोबर से 10 चप्पलें बनाई जाती हैं। अगर यह चप्पल 3-4 घंटे बारिश में भीग जाए, तो भी खराब नहीं होती, धूप में इसे सुखाकर दोबारा इस्तेमाल किया जा सकता है।  

इन चप्पलों का दाम करीब 400 रुपये है, जिसे बनाने में 10 दिन लगते हैं। उन्होंने बताया, “गाय के गोबर में रेडिएशन को कम करने की अच्छी क्षमता होती है। ऐसी चप्पल के इस्तेमाल से स्वास्थ्य भी अच्छा रहता है।”

कई बड़े शेरोन से आ रहे हैं ऑर्डर


रितेश के इस आविष्कार को देखने के बाद उन्हें दिल्ली, मुंबई, बनारस जैसे शहरों से बैग्स और चप्पल के कई ऑर्डर्स मिल रहे हैं। अभी तक उन्होंने तक़रीबन 1000 चप्पलें बनाकर बेची हैं और कई ऑर्डर्स वेटिंग में हैं।  

आप भी गोबर से बनी चप्पल खरीदने के लिए उन्हें 84618 83203 पर सम्पर्क कर सकते हैं। 

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