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2024 के लिए नीतीश कुमार का '1988' प्‍लान: जनता पार्टी का बिखरा कुनबा वापस जोड़ो, कांग्रेस से अभी मुंह मत मोड़ो

नीतीश कुमार 2024 में वैसी ही राजनीतिक बिसात बिछाना चाहते हैं, जैसी वीपी सिंह ने 1988 में रची थी। तब सिंह के नेतृत्व में जनता पार्टी के अलग-अलग धड़ों ने साथ आकर जनता दल नाम से नई पार्टी बनाई। अगले कुछ सालों में जनता दल के भी कई टुकड़े हुए।

2024 के लिए नीतीश कुमार का '1988' प्‍लान: जनता पार्टी का बिखरा कुनबा वापस जोड़ो, कांग्रेस से अभी मुंह मत मोड़ो

2024 आम चुनाव को बमुश्किल डेढ़ साल बचे हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अगुवाई में बीजेपी मिशन 2024 शुरू कर चुकी है। विपक्ष में भी हलचल दिख रही है। राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा ने कांग्रेस को थोड़ा भरोसा दिया है। इस यात्रा से कुछ स्थानीय पार्टियां भी जुड़ीं जो विपक्ष में कांग्रेस का नेतृत्व स्‍वीकारती दिखती हैं। हालांकि, पर्दे के पीछे राजनीतिक पासे कुछ अलग तरह से फेंके जा रहे हैं। 2024 में विपक्ष की बागडोर संभालने के लिए भूतपूर्व जनता दल के कुनबे को साथ लाने की जुगत है। जनता दल (यूनाइटेड), इंडियन नैशनल लोकदल (INLD), समाजवादी पार्टी, राष्ट्रीय जनता दल...नीतीश कुमार ऐसी कोशिशों में लगे हैं कि दशकों तक बड़े-बड़े राज्यों पर राज करने वाली ये पार्टियां साथ आ जाएं।

नीतीश के दूत बनकर घूम रहे हैं ललन सिंह
पिछले दिनों जब संसद सत्र चल रहा था, नीतीश ने अपनी पार्टी के अध्‍यक्ष ललन सिंह को पूर्व प्रधानमंत्री एचडी देवेगौड़ा से मिलने भेजा। गौड़ा के आवास पर हुई बैठक में सिंह का मेसेज साफ था - नीतीश की JD (U) और देवेगौड़ा की JD (S) का विलय हो जाना चाहिए। द इंडियन एक्‍सप्रेस के लिए अपने कॉलम में वरिष्‍ठ पत्रकार नीरजा चौधरी लिखती हैं कि नीतीश ने देवेगौड़ा से फोन पर बात भी की। सिंह के अनुसार, देवेगौड़ा ने हां या ना में तो जवाब नहीं दिया लेकिन रेस्‍पांस 'पॉजिटिव' था।

बकौल ललन सिंह, 'उन्‍होंने मुझे बाकी समूहों से भी बात करने को कहा... अगर हमें 2024 की लड़ाई गंभीरता से लड़नी है तो जनता दल के पुराने सहयोगियों को एकजुट करना हमारे एजेंडा का हिस्‍सा है।' नीतीश ने बिहार में सहयोगी राजद से भी बात की। RJD का आखिरी फैसला लालू प्रसाद यादव और बेटे तेजस्‍वी यादव के हाथ में है। ललन सिंह के मुताबिक, INLD को भी विलय से गुरेज नहीं है।

नीतीश कुमार का प्‍लान क्‍या है?
नीतीश चाहते हैं जनता दल के पुराने दिन वापस आ जाएं। उनके प्‍लान का पहला हिस्‍सा- कुनबे से बिखरी पार्टियां एकजुट होकर नया मोर्चा बनाएं और विपक्ष में अहम भूमिका अदा करें। वह वीपी सिंह जैसा करिश्‍मा दोहराना चाहते हैं। दूसरे चरण में नीतीश का प्‍लान है कि क्षेत्रीय दलों को इस मोर्चे का साथ देने के लिए मनाया जाए। फिर तीसरे चरण में, कांग्रेस से समर्थन जुटाया जाएगा। अगर यह योजना फलीभूत नहीं होती तो आजमाया हुआ नुस्‍खा भी है- ज्‍यादा से ज्‍यादा गैर-बीजेपी दलों को एक मंच पर लाया जाए, फिर कांग्रेस से समर्थन मांगा जाए।

35 साल पहले... जब वीपी सिंह ने बदल दिया सियासी सीन
नीतीश का प्‍लान अभी 'शुरुआती दौर' में ही है। बिखर चुके कुनबे को एकजुट कर पाना इतना आसान नहीं। यह 1998 नहीं है जब वीपी सिंह ने विपक्ष की चार-चार बड़ी पार्टियों को जोड़कर जनता दल का गठन किया था। उस वक्‍त तत्‍कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी के खिलाफ तेजी से माहौल बन रहा था। उन पार्टियों पर भारी दबाव था कि वे कांग्रेस से मुकाबले के लिए एक हो जाएं। इस एकजुटता का नतीजा रहा कि 1989 में वीपी सिंह देश के प्रधानमंत्री बने। फिर 1996 और 1997 में देवेगौड़ा और आईके गुजराल ने जनता दल के नेतृत्‍व में गठबंधन सरकारों की कमान संभाली।

भूल रहे हैं नीतीश... ये 1988 नहीं है
जनता परिवार से निकली शाखाएं आज बड़े-बड़े पेड़ बन चुकी हैं। अलग-अलग राज्‍यों में दशकों तक उनका राज रहा है। ऐसे में यह वाजिब सवाल है कि क्‍या 2023 में नीतीश का 1988 जैसा दांव सफल हो सकता है? क्‍या अखिलेश यादव, तेजस्‍वी प्रसाद, नवीन पटनायक, जयंत चौधरी, देवेगौड़ा या बाकी क्षत्रपों को किसी और के इशारों पर चलना रास आएगा? देवेगौड़ा ने अगर ललन सिंह को हां या ना में जवाब नहीं दिया तो उसके पीछे 5 महीने बाद होने वाले कर्नाटक विधानसभा चुनाव हैं।

विधानसभा चुनावों के नतीजे तय करेंगे विपक्षी एकता का भविष्‍य
बीजेपी कर्नाटक में सत्‍ता बचाने की हर कोशिश कर रही है। कांग्रेस को मौका दिख रहा है। देवेगौड़ा की JD (S) नतीजों के इंतजाार में है। पार्टी को लगता है वह या तो किंग या फिर किंगमेकर बनेगी। इसीलिए कर्नाटक के चुनाव नतीजों तक JD (S) कुछ भी साफ नहीं करना चाहती।

2024 आम चुनाव से पहले 2023 में 10 राज्‍यों के विधानसभा चुनाव होने हैं। कर्नाटक में कांग्रेस जीती तो उसे मनोवैज्ञानिक बढ़त हासिल होगी। तेलंगाना में भाजपा मजबूत हो रही है। वहां के सीएम के. चंद्रशेखर राव की नजरें भी केंद्रीय राजनीति पर हैं। उन्‍होंने पार्टी का नाम भी बदलकर भारत राष्‍ट्र समिति कर दिया है।

कांग्रेस के लिए चुनौती राजस्‍थान और छत्‍तीसगढ़ को बचाने की है। मध्‍य प्रदेश में भी उसकी राह आसान नहीं है। इन राज्‍यों में कांग्रेस का प्रदर्शन तय करेगा कि क्षत्रपों के साथ विपक्ष में उसकी भूमिका क्‍या होगी।

नेता कौन होगा? कहीं इसी में उलझ ना जाएं पार्टियां
भारत जोड़ो यात्रा से भले ही कांग्रेस में थोड़ी ऊर्जा और आक्रामकता नजर आई हो, उसका चुनावी असर दिखना बाकी है। 2024 की लड़ाई में नरेंद्र मोदी के सामने संयुक्‍त विपक्ष का चेहरा कौन होगा? इस सवाल का जवाब चुनाव से पहले मिलना मुश्किल ही लगता है। यह संभावना भी है कि नेता बनने की ललक में विपक्षी दलों के बीच रजामंदी कभी बने ही नहीं। विपक्ष का बिखराव 2024 में मोदी की राह को आसान ही बनाएगा।

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