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Tuesday, September 24, 2024
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राम मंदिर की तारीख क्यों बता रहे अमित शाह? उपलब्धि का बखान या फिर भविष्य की राजनीति

भाजपा के शीर्ष नेता और केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह इन दिनों राम मंदिर निर्माण कार्य पूरा होने की तिथि की बात को लेकर चर्चा में हैं। त्रिपुरा की एक जनसभा में वे वर्ष 2024 की जनवरी में राम मंदिर के निर्माण कार्य को पूरा होने की घोषणा की। अब इसके राजनीतिक अर्थ निकाले जा रहे हैं।

राम मंदिर की तारीख क्यों बता रहे अमित शाह? उपलब्धि का बखान या फिर भविष्य की राजनीति

केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने पिछले हफ्ते त्रिपुरा में कहा-‘2019 में राहुल गांधी पूछते थे कि मंदिर कब बनाओगे? मैं उन्हें बताना चाहता हूं, कान खोलकर सुन लें-1 जनवरी 2024 को अयोध्या में गगनचुंबी राम मंदिर आपको तैयार मिलेगा।’ इससे कुछ दिन पहले कर्नाटक दौरे पर भी शाह ने राम मंदिर के निर्माण की तारीख बताई थी। अब यह सवाल उठने लगा है कि चुनावी मंचों पर तीन दशक से भी अधिक समय से छाए रहने वाले राम मंदिर का एक बार फिर जिक्र महज ‘उपलब्धियों’ का बखान है या आगे की सियासी रणनीति का केंद्र बिंदु? वर्ष 2023 पक्ष और विपक्ष दोनों के लिए ही 2024 के लोकसभा चुनाव के पहले दिल्ली की कुर्सी के सेमीफाइनल की तरह है। इस साल नौ राज्यों के विधानसभा चुनाव हैं, जिनमें लोकसभा की 116 सीटे हैं। इन राज्यों के नतीजे 2024 के जनादेश की कसौटी तो नहीं होंगे, लेकिन आगे के संकेत, संभावनाओं और उम्मीदों के तौर पर जरूर देखे जाएंगे।

तैयारी में ‌BJP-कांग्रेस
बदलते साथियों और समीकरणों के बीच BJP ने अब तक सत्ता और सियासी जमीन दोनों पर ही मजबूत पकड़ बरकरार रखी है। इसको और पुख्ता करने के लिए अमित शाह सहित सभी केंद्रीय मंत्री चुनावी राज्यों से लेकर हारी लोकसभा सीटों तक पर पसीना बना रहे हैं। मुख्य विपक्षी कांग्रेस के सामने जीत का भरोसा वापस लौटाने की चुनौती है। राहुल गांधी भीषण ठंड में टी-शर्ट पहन ‘भारत जोड़ो यात्रा’ पर हैं। कांग्रेस भले ही इस यात्रा को चुनावी सियासत से इतर बताकर हर विपक्षी दल को मंच पर बुला रही है, लेकिन यात्रा में उठने वाले मुद्दे सियासी तैयारियों को ही धार दे रहे हैं। ऐसे में राम मंदिर से लेकर दूसरे कोर अजेंडे के जरिए BJP की घेराबंदी अनायास ही नहीं है।

कांग्रेस की उम्मीद
राहुल गांधी की ‘भारत जोड़ो यात्रा’ के जरिए कांग्रेस उनकी छवि और अपनी जमीन दोनों ही बदलने की उम्मीद लगाए है। राहुल का दावा है कि वह ‘नफरत’ की राजनीति खत्म करने निकले हैं। इस कड़ी में उनकी यात्रा में कई ऐसे चेहरे भी जुड़े रहे हैं जो अलग-अलग मुद्दों को लेकर चर्चाओं या विवादों में रहे हैं। ये ऐसे विवाद हैं जिन्होंने पहले BJP को सियासी फायदा पहुंचाया है। कांग्रेस जिसे जोड़ने का नाम दे रही है BJP उसे पहले से ही ‘तुष्टिकरण’की कोशिश के तौर पर पेश करती रही है।

ध्रुवीकरण से फायदा-नुकसान
सांप्रदायिक ध्रुवीकरण एक दशक से कांग्रेस के लिए मुसीबत बना है। BJP को इससे बेहतर चुनावी परिणाम मिले हैं। राम मंदिर आंदोलन और उससे जुड़े सवाल भी उनमें से एक है। BJP ने लोकसभा से लेकर विधानसभा चुनावों में मंदिर को लेकर कांग्रेस की भूमिका पर सवाल उठाए हैं। ‌BJP की हिंदुत्व की राजनीति का जवाब तलाशने के लिए ‘जनेऊधारी’ तस्वीरों से लेकर मंदिरों-मठों तक पहुंचने की कांग्रेस के चेहरों की कोशिशें सियासी कसौटी पर अब तक सफल नहीं हो पाई हैं। कांग्रेस जिस यात्रा के जरिए अपने ‘पुनरुद्धार’ की उम्मीद पाले हुई है, BJP आस्था और राष्ट्रववाद के सवालों के जरिए उस यात्रा से उपजी उम्मीदों की धार ‘कुंद’ करने में जुटी है।

सीधी लड़ाई
त्रिपुरा, मेघालय और नगालैंड में फरवरी-मार्च में चुनाव होने के आसार हैं। कर्नाटक में अप्रैल में चुनाव होने की संभावना है। इस साल के आखिर में मध्य प्रदेश, राजस्थान, छत्तीसगढ़, तेलंगाना और मिजोरम में चुनाव होंगे। त्रिपुरा में BJP का मुख्य विपक्षी लेफ्ट है। राजस्थान, छत्तीसगढ़ और मध्य प्रदेश के अलावा पूर्वोत्तर में भी कांग्रेस से ही सीधी लड़ाई होनी है। 2018 में राजस्थान, छत्तीसगढ़ और मध्य प्रदेश में कांग्रेस सत्ता में आई थी। हालांकि, मध्य प्रदेश में बाद में BJP ने सेंधमारी कर सरकार बना ली थी। ये वे राज्य हैं जिनका नाता राम मंदिर आंदोलन से रहा और आस्था और भावना के मुद्दे यहां कुछ हद तक असर भी डालते रहे हैं।

आस्था की आजमाइश
त्रिपुरा में अमित शाह के भाषण का एक अहम हिस्सा, अनुच्छेद-370, कश्मीर और राम मंदिर पर केंद्रित था। BJP ने 2018 में लेफ्ट को हराकर इस राज्य में पहली बार सरकार बनाई थी। कर्नाटक में शाह ने जोर देकर कहा, ‘एकतरफ, प्रधानमंत्री मोदी हैं, जिन्होंने अयोध्या, काशी, केदारनाथ और बद्रीनाथ का विकास किया है। वहीं दूसरी ओर टीपू का महिमामंडन करने वाले लोग हैं।’ कर्नाटक के राम नगर में राम मंदिर बनवाने की भी कवायद तेज है। मध्य प्रदेश में पिछले साल उज्जैन में श्री महालोक कॉरिडोर का PM नरेंद्र मोदी ने उद्‌घाटन किया था। लिहाजा, इन राज्यों में आस्था की सियासी आजमाइश होनी तय है।

BJP की उम्मीद
BJP का सबसे बड़ा लक्ष्य 2024 में केंद्र की सत्ता में हैटट्रिक लगाने का है। पार्टी की पूरी उम्मीद उत्तर भारत में सियासी पूंजी को बचाए रखने और दक्षिण में विस्तार पर टिकी है। हालांकि, बिहार से लेकर महाराष्ट्र तक उसके पुराने सहयोगी छिटक चुके हैं। जातिगत जनगणना की मांग और पहल से एक बार फिर उभर रहे जातीय छत्रपों और गठजोड़ों की चुनौती अलग है।BJP आस्था और राष्ट्रवाद जैसे भावनात्मक मुद्दे से जाति के गणित का मुकाबला करती रही है। अयोध्या, काशी, मथुरा से लेकर उज्जैन तक के आंदोलन और विकास के मुद्दे आज भी इस बेल्ट में BJP के सबसे बड़े खेवनहार हैं। लोकसभा चुनाव के पहले राम मंदिर की औपचारिक शुरुआत भी आस्था के ‘महोत्सव’ के तौर पर पेश किया जाना तय है। BJP के मुख्य रणनीतिकार अमित शाह वाया राहुल गांधी मंदिर निर्माण पूरा होने की तारीख बता इसकी बुनियाद तैयार कर रहे हैं।

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