"मैं राणा का वंशज, मैं राजपूत"...मनीष सिसोदिया ने यूं ही नहीं फेंका राजपूत कार्ड, प्लानिंग तो लंबी है!
अगले एक से डेढ़ साल में जिन राज्यों में चुनाव होने हैं, उनमें से तमाम हिंदी भाषी राज्य ऐसे हैं, जहां राजपूत वोटर निर्णायक साबित होंगे। इन राज्यों में गुजरात, मध्य प्रदेश, राजस्थान ख़ास हैं। ऐसे में दिल्ली के डिप्टी सीएम मनीष सिसोदिया के बयान को, उनके खुद को राणा का वंशज और राजपूत कहने को इट्स ओके कहकर इग्नोर नहीं किया जा सकता।
मनीष सिसोदिया आम आदमी पार्टी के नेता हैं और दिल्ली के डिप्टी सीएम हैं। हाल के दिनों में ये चर्चा में हैं क्योंकि इन पर दिल्ली की नई शराब नीति में कथित भ्रष्टाचार का आरोप है। इसी केस के संबंध में 19 अगस्त को सिसोदिया के घर पर CBI का छापा भी पड़ा था। ज़ाहिर सी बात है कि सिसोदिया और आम आदमी पार्टी का लगातार यही कहना है कि “हमने कुछ ग़लत नहीं किया जी”। ख़ैर, इन्हीं सब नूरा-कुश्ती के बीच सिसोदिया ने 22 अगस्त को एक ट्वीट किया। लिखा - “मेरे पास भाजपा का संदेश आया है। ‘आप’ तोड़कर भाजपा में आ जाओ, सारे CBI, ED के केस बंद करवा देंगे। मेरा भाजपा को जवाब- मैं महाराणा प्रताप का वंशज हूं, राजपूत हूं। सर कटा लूंगा लेकिन भ्रष्टाचारियों-षड्यंत्रकारियों के सामने झुकूंगा नहीं। मेरे ख़िलाफ़ सारे केस झूठे हैं। जो करना है कर लो।”
बीजेपी का कहना है कि जब सिसोदिया खुद को घिरा हुआ पा रहे हैं तो उन्हें राजपूत और महाराणा प्रताप याद आ रहे हैं। लेकिन बात सिर्फ इतनी ही नहीं है। राजनीति में न कहा हुआ भी सुनना होता है और न लिखा हुआ भी पढ़ना होता है।
सिसोदिया जब अपने ट्वीट्स में और बार-बार अपने संबोधनों में खुद को राणा का वंशज और राजपूत बताते हैं तो पार्टी के एक बड़े मकसद को अड्रेस कर रहे होते हैं। ये मकसद समझाने के लिए आपको 3 राज्यों से घुमाकर लाते हैं। चलिए।
पहला राज्य, गुजरात : गुजरात में इसी साल विधानसभा चुनाव होने हैं। पंजाब में जीत से उत्साहित आम आदमी पार्टी ने मोदी-शाह के होम स्टेट में जी-जान झोंक दी है। नवंबर 2018 की मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक- गुजरात में राजपूतों की आबादी करीब 8 फीसदी है। जो कि ठीक-ठाक नंबर्स हैं। वहां के राजपूत लगातार आरक्षण की मांग भी करते रहे हैं।
दूसरा राज्य, राजस्थान : राजस्थान में अगले साल चुनाव हैं। आम आदमी पार्टी के तेवरों को देखकर करीब-करीब तय है कि वहां भी वो मजबूती से लड़ना चाहेगी। राजस्थान में तो राजपूत कुल आबादी के करीब 12 फीसदी हैं। हैवी नंबर्स। एक अनुमान के मुताबिक 30 से अधिक सीटें हैं, जहां ये राजपूत वोटर खेल बनाने या बिगाड़ने का दम रखते हैं। वैसे तो ये राजपूत वोटर जनसंघ के समय से ही बीजेपी के वोटर रहे हैं। लेकिन मीडिया रिपोर्ट कहती है कि 2016 के बाद से ये रिश्ता खट्टाता जा रहा है। वजह? पद्मावत विवाद में बीजेपी की तरफ से खुलकर समर्थन न मिलना, गैंगस्टर आनंदपाल सिंह का एनकाउंटर और वसुंधरा राजे का कथित तौर पर राजपूत नेता गजेंद्र सिंह शेखावत को किनारे लगाने की कोशिश करना।
तीसरा राज्य, मध्य प्रदेश : जब राजस्थान में चुनाव होंगे, तभी होंगे मध्य प्रदेश में भी चुनाव। यहां तो पूरा मध्य भारत का रीज़न ही राजपूतों के भरोसे टिका रहता है, जहां करीब 10 फीसदी आबादी राजपूतों की ही है। मध्य भारत में 16 ज़िले और 79 विधानसभा सीट आती हैं।
यानी अगले एक से डेढ़ साल में जिन राज्यों में चुनाव होने हैं, उनमें से तमाम हिंदी भाषी राज्य ऐसे हैं, जहां राजपूत वोटर निर्णायक साबित होंगे। ऐसे में सिसोदिया के बयान को, उनके खुद को राणा का वंशज और राजपूत कहने को इट्स ओके कहकर इग्नोर नहीं किया जा सकता। इसके गहरे सियासी मायने भी हैं। ख़ासकर तब, जब आम आदमी पार्टी अब दिल्ली से निकलकर अन्य हिंदी भाषी राज्यों में भी तेजी से बढ़ने की कोशिश कर रही है।