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अखिलेश यादव के लिए डिंपल मजबूरी या जरूरी? मैनपुरी के सियासी गणित को साधने की कोशिश, 2024 पर भी नजर

मैनपुरी लोकसभा उप चुनाव को लेकर समाजवादी पार्टी ने डिंपल यादव को चुनावी मैदान में उतार दिया है। डिंपल यादव की जीत को सुनिश्चित कराने की जिम्मेदारी अखिलेश ने अपने कंधों पर ले ली है। परिवार को एकजुट करने का प्रयास करते दिख रहे हैं। लेकिन, राजनीतिक महकमे में एक सवाल इन दिनों खूब तैर रहा है।

अखिलेश यादव के लिए डिंपल मजबूरी या जरूरी? मैनपुरी के सियासी गणित को साधने की कोशिश, 2024 पर भी नजर

उत्तर प्रदेश के राजनीतिक गलियारों में इस समय सबसे अधिक चर्चा मैनपुरी लोकसभा उप चुनाव की हो रही है। सपा के संस्थापक और संरक्षक रहे मुलायम सिंह यादव के निधन के बाद यह सीट खाली हुई है। इस सीट को समाजवादी पार्टी हर हाल में वापस अपनी झोली में लाना चाहती है। पिछले तीन उप चुनावाें में समाजवादी के भीतर इस प्रकार की हलचल नहीं दिखी थी। सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव भी ठंडे दिखे। इसे रणनीति माने या फिर कुछ और, लेकिन यूपी चुनाव के बाद से पहली बार अखिलेश यादव एक चुनाव को लेकर इतने अधिक सक्रिय दिख रहे हैं। आजमगढ़ लोकसभा सीट से सांसदी छोड़ने के बाद यहां उप चुनाव हुए। रामपुर में लोकसभा के उप चुनाव हुए। गोल गोकर्णनाथ में विधानसभा उप चुनाव हुआ। इन सीटों पर अखिलेश ने एक रैली तक नहीं की। लेकिन, मैनपुरी में पत्नी के चुनावी मैदान में उतारने से लेकर उनके साथ नामांकन तक में पहुंच कर अखिलेश यादव ने बड़ा संदेश देने का प्रयास किया है। हालांकि, अखिलेश के सामने डिंपल यादव को लेकर कई सवाल किए जा रहे हैं। आखिर उन्होंने एक बार फिर पत्नी डिंपल यादव पर ही भरोसा क्यों जताया?

मैनपुरी भावनात्मक रूप से समाजवादी पार्टी के लिए महत्वपूर्ण है( यहां से मुलायम सिंह यादव पांच बार सांसद रहे हैं। इसके अलावा समाजवादी पार्टी के गठन के बाद से लगातार यह सीट पार्टी का अभेद्य किला रहा है। ऐसे में गढ़ बचाने की चुनौती सबसे अधिक अखिलेश यादव के कंधों पर है। अखिलेश यादव जानते हैं कि परिवार में से अगर किसी को टिकट दिया गया होता तो कोई दूसरा पक्ष नाराज होता। मुलायम परिवार में मैनपुरी सीट पर कई लोगों की नजर थी। मुलायम ने खुद 2009 में जब यह सीट छोड़ी थी तो पोते तेज प्रताप यादव को यहां से सांसद बनाया था। आजमगढ़ का चुनाव हारने के बाद धर्मेंद्र यादव की नजर एक सुरक्षित सीट पर थी। वह भी यहां चुनाव लड़ना चाहते थे।

शिवपाल कम नहीं होने देना चाहते भूमिका
मुलायम की विरासत की लड़ाई में शिवपाल यादव अपनी भूमिका कम नहीं होने देना चाहते। उनकी चाहत यहां से चुनावी मैदान में उतरने की थी। वहीं, शिवपाल यादव की नाराजगी अब तक बरकरार है। डिंपल के नामांकन में वे नहीं पहुंचे हैं। लखनऊ के पार्टी कार्यालय में अपनी रणनीति तैयार कर रहे हैं। इस पूरी स्थिति में अखिलेश यादव ने सेफ गेम खेलते हुए पत्नी डिंपल यादव को टिकट दे दिया। राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि इससे मुलायम परिवार में किसी प्रकार का विवाद नहीं होगा। डिंपल यादव के नाम पर परिवार में कोई बहस नहीं होगी। परिवार एकजुट रहेगा और इसका संदेश पूरे यादवलैंड में जाएगा।

पूरी कवायद वोट बैंक को एकजुट रखने की
यादवलैंड में समाजवादी पार्टी की पकड़ मजबूत रखना जरूरी है। अगर यहां से पार्टी या परिवार में किसी प्रकार के बिखराव का संदेश जाता है तो असर 2024 के लोकसभा चुनाव तक पर पड़ सकता है। अखिलेश यादव की अति सक्रियता का यह सबसे बड़ा कारण माना जा रहा है। समाजवादी पार्टी के संस्थापक मुलायम सिंह यादव ने यादव और मुस्लिम वोट बैंक के गठजोर से ऐसा माय समीकरण तैयार किया, जिसकी काट अब तक किसी पार्टी के पास नहीं दिखती है। मुलायम के निधन के बाद इस समीकरण को बचाए रखने की जिम्मेदारी अखिलेश की है। अगर पारीवारिक विवाद सतह पर आया तो फिर इसका संदेश काफी दूर तक जाएगा।

परिवार में बगावत से रणनीति पर पड़ेगा असर
मुलायम सिंह यादव की परिवार में बगावत से अखिलेश यादव की लोकसभा चुनाव 2024 की रणनीति पर असर पड़ेगा। मुस्लिम वोट बैंक में नाराजगी की खबरों को पहले से हवा दी जा रही है। बसपा इस दिशा में काम करती दिख रही है। वहीं, यादव वोट बैंक में बिखराव तभी होगा, जब मुलायम परिवार में बिखराव दिखेगा। पिछले तीन दिनों में सैफई से अखिलेश ने परिवार के इसी बिखराव को रोकने की कोशिश की है। सोमवार को जब अखिलेश यादव, डिंपल को लेकर नामांकन के लिए निकले तो उनके साथ उम्मीदवारी के दावेदार धर्मेंद्र यादव भी थे। तेज प्रताप यादव और प्रो. रामगोपाल यादव भी। इन तमाम नेताओं के जरिए मैनपुरी की जनता को अखिलेश परिवार की एका का संदेश देते दिख रहे हैं।

मैनपुरी से बड़ा संदेश देने का प्रयास
अखिलेश यादव ने पहले ही शिवपाल यादव से रास्ता अलग कर रखा है। ऐसे में अगर उनकी ओर से कोई ऐसा कदम उठाया जाता है, जो यादव वोट बैंक में बिखराव जैसी स्थिति बनती है तो उसको अलग तरीके से जस्टिफाई किया जाएगा। चुनावी मैदान में सभाओं में इस पर काफी कुछ साफ कर दिया जाएगा। अखिलेश यादव जीत के समीकरण को किसी भी स्थिति में लोकसभा चुनाव 2024 में खोना नहीं चाहते हैं। ऐसे में शिवपाल अगर विरोध में खड़े होते हैं या फिर कोई राजनीतिक बाजी खेलने की कोशिश करते हैं तो अखिलेश उसका जवाब जरूर देंगे। इसका असर चुनावी मैदान में भी दिख सकता है। यादव वोट बैंक को मजबूत कर और यादवलैंड में ताकत दिखाकर लोकसभा चुनाव 2024 को लेकर अखिलेश यादव का बड़ा संदेश कार्यकर्ताओं के बीच जाएगा। यह उनको एकजुट करने में मदद करेगी।

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