बंगाल चुनाव में बदलता माहौल:पहले भाजपा मजबूत दिख रही थी; लेकिन टिकट बंटवारे के बाद हालात बदले, हिंदू पोलराइजेशन की चर्चा भी कमजोर पड़ी
पश्चिम बंगाल में चुनाव की तारीखें जैसे-जैसे करीब आती जा रही हैं भाजपा आलाकमान की मुश्किलें बढ़ती जा रही हैं। टिकट डिस्ट्रिब्यूशन को लेकर स्थानीय कार्यकर्ता लगातार विरोध जाहिर कर रहे हैं। भाजपा ने गुरुवार को अपनी एक और लिस्ट जारी की। कार्यकर्ताओं का कहना है कि पार्टी ने जमीनी कार्यकर्ताओं के साथ भेदभाव और अनदेखी की है। इसको लेकर मालदा, जलपाईगुड़ी, मुर्शिदाबाद, उत्तर 24 परगना सहित कई जगहों पर हिंसक विरोध-प्रदर्शन जैसे हालात हैं।
भाजपा ने शिखा मित्रा को चौरंगी और तरुण साहा को काशीपुर बेलगछिया से टिकट दिया, लेकिन दोनों नेताओं ने भाजपा के टिकट पर चुनाव लड़ने से साफ इंकार कर दिया। भाजपा के लिए यह सेटबैक की तरह है। राजनीतिक विशेषज्ञ मानते हैं कि एक महीना पहले भाजपा के पक्ष में जो माहौल था अब वैसी स्थिति नहीं है। इस तरह की घटनाओं से लगता है कि पार्टी के अंदर सबकुछ ठीक नहीं है।
टिकट डिस्ट्रिब्यूशन से कार्यकर्ताओं का मनोबल कमजोर हुआ है
पॉलिटिकल एनालिस्ट डॉ. पंकज रॉय कहते हैं कि एक महीने पहले भाजपा परसेप्शन की लड़ाई में आगे थी। लोग TMC सरकार से नाराज थे। भाजपा ने विकास और तुष्टीकरण का जो मुद्दा उठाया था उसे अच्छा-खासा समर्थन मिल रहा था, लेकिन टिकटों की घोषणा और स्थानीय नेताओं की अनदेखी से चीजें बदल गई हैं। टिकट डिस्ट्रिब्यूशन में पार्टी कैडर और पाला बदल कर भाजपा में शामिल हुए नेताओं के बीच तालमेल बिठाया जाना चाहिए था, जो नहीं हो सका। इससे कार्यकर्ताओं का मनोबल कमजोर हुआ है। मुझे लगता है कि भाजपा के केंद्रीय नेताओं को जमीनी हकीकत का जायजा लेना चाहिए।
BJP के पास उम्मीदवार ही नहीं हैं : मित्रा
भाजपा की टिकट पर चुनाव लड़ने से इंकार कर चुकीं शिखा मित्रा कहती हैं कि BJP ने अपना दिमाग खो दिया है, ऐसा लग रहा है कि BJP के पास पर्याप्त उम्मीदवार नहीं हैं। वहीं साहा ने साफ कहा है कि वह TMC के साथ हैं और उसी के साथ रहेंगे। इधर भाजपा के नेशनल यूथ लीडर सौरव सिकदर ने कार्यकर्ताओं की अनदेखी का आरोप लगाते हुए गुरुवार को इस्तीफा दे दिया। सौरव दिवंगत वरिष्ठ भाजपा नेता तपन सिकदर के भतीजे हैं।
पुराने कार्यकर्ताओं की नाराजगी का असर भाजपा की रैलियों में भी दिख रहा है। पहले के मुकाबले अब भाजपा की सभाओं में कम भीड़ दिख रही है।
बंगाली अस्मिता का मुद्दा चुनाव में हावी है
भास्कर ने बंगाल के अलग-अलग हिस्सों में जाकर लोगों का मूड जानने की कोशिश की। यहां के ज्यादातर लोग, हिंदी भाषी भाजपा नेताओं को पसंद नहीं करते हैं। पंकज रॉय कहते हैं कि अगर भाजपा बंगाली कल्चर और यहां की राजनीति को नहीं समझती है तो उसे बड़ा नुकसान उठाना पड़ सकता है। उसे बंगाली अस्मिता के मुद्दे पर TMC को कोई मौका नहीं देना चाहिए। भाजपा को पार्टी के कार्यकर्ताओं और उन नेताओं से बात करनी चाहिए जो यहां तीन दशकों से ज्यादा वक्त से पार्टी के लिए काम कर रहे हैं।
गुरुवार को भाजपा को सभी चरणों के लिए उम्मीदवारों की घोषणा करनी थी, क्योंकि इसको लेकर 4 बजे सुबह से ही पार्टी के नेताओं की बैठक चल रही थी, लेकिन BJP ने 157 नामों का ही ऐलान किया। भाजपा के एक स्थानीय कार्यकर्ता कहते हैं कि TMC ने एक बार में ही अपने उम्मीदवारों की लिस्ट डिक्लेयर कर दी। उसने तो घोषणा पत्र भी जारी कर दिया है। हम भी चाहते तो ऐसा कर सकते थे, लेकिन नहीं कर पाए। इससे लोगों के बीच ये मैसेज गया है कि हम अपने उम्मीदवार भी तय नहीं कर पा रहे हैं।
चोट लगने के बाद दीदी व्हीलचेयर पर कैम्पेनिंग कर रही हैं। इससे कुछ लोगों में ममता के प्रति सहानुभूति है। सूत्रों के मुताबिक भाजपा आलाकमान ने बंगाल के नेताओं से कहा है कि वे दीदी पर पर्सनल अटैक करने के बजाय भ्रष्टाचार और भाजपा के विकास के वादों पर फोकस करें
हिंदुत्व कार्ड कमजोर हो रहा
जैसे-जैसे चुनाव की तारीखें करीब आ रही है, वैसे-वैसे भाजपा का हिंदुत्व कार्ड भी कमजोर पड़ता जा रहा है। भाजपा ने इस बार करीब 15 मुस्लिम उम्मीदवारों को टिकट दिया है। इससे समीकरण बदल गया है। एक महीना पहले तक जिस ध्रुवीकरण की बात हो रही थी, उस पर अब ज्यादा चर्चा नहीं हो रही है।
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