'अतीक जिंदा रहने के काबिल नहीं...' फूट-फूटकर रोई उमेश पाल की पत्नी, कहा- अगला नंबर हो सकता है मेरा
उमेश पाल की पत्नी जया पाल चाहती हैं कि उन्हें जीवन भर का गम देने वाले अतीक अहमद को भी मौत की सजा मिले। अतीक अहमद को नैनी सेंट्रल जेल में लाए जाने के दौरान घर पर गमगीन जया ने मीडिया से कहा कि अतीक जिंदा रहने के काबिल नहीं।
24 फरवरी को सुलेम सराय में जीटी रोड पर गोलियों से छलनी किए गए अधिवक्ता उमेश पाल की पत्नी जया पाल चाहती हैं कि उन्हें जीवन भर का गम देने वाले अतीक अहमद को भी मौत की सजा मिले। सोमवार को अतीक अहमद को नैनी सेंट्रल जेल में लाए जाने के दौरान घर पर गमगीन जया ने मीडिया से कहा कि यह अपराधी जिंदा रहने के काबिल नहीं है। उन्होंने कहा कि फांसी न मिली तो अगला नंबर उनका हो सकता है।
वह चाहती हैं कि अदालत माफिया और उसके भाई अशरफ को भी मृत्यु दंड की सजा सुनाए। उन दोनों को भी पता चले कि मौत कैसी होती है। जिस तरह से उनके निर्दोष पति को घर के भीतर तक पीछा कर मार डाला गया, वह कड़ी सजा के हकदार हैं। अतीक और अशरफ समेत सभी अपराधियों को उनकी करतूत की कठोर सजा मिलनी जरूरी है।
पति के साथ ही उन दो सरकारी गनर की क्या गलती थी, जिन्हें अतीक गिरोह के अपराधियों ने गोलियों से छलनी करके मार डाला। इसलिए मेरी अदालत से प्रार्थना है कि भले ही इतने वर्षों बाद ही सही, अतीक और अशरफ समेत सभी अभियुक्तों को ऐसी सजा सुनाई जाए कि अपराधियों में डर पैदा हो।
उमेश की मां शाति देवी ने भी कहा कि मेरे बेटे को बिना वजह मारने वाले अपराधियों को अदालत से फांसी की सजा मिलनी चाहिए। उन्होंने कहा कि मेरे बेटे ने बहुत संघर्ष किया है। जेल उसका(अतीक अहमद) घर है और वहां से वो कुछ भी करा सकता है। प्रशासन ने अभी तक जो भी कुछ किया है उससे हम संतुष्ट हैं। मेरी यही मांग है कि उसको फांसी की सज़ा हो
माफिया अतीक मतलब आतंक का चेहरा
अपराध के बल पर न सिर्फ उसने रियल एस्टेट से लेकर कई कारोबार में हाथ डाला बल्कि दहशत पैदा करके माननीय भी बन गया था। चकिया निवासी तांगे वाले स्व. हाजी फिरोज अहमद के बेटे अतीक के खिलाफ पहला मुकदमा वर्ष 1979 में लिखा गया था। खुल्दाबाद थाने में पहला मुकदमा हत्या के आरोप में दर्ज हुआ था, जिसका क्राइम नंबर 401 है।
इसके बाद अतीक ने जरायम की दुनिया में कदम बढ़ाते हुए हत्या, हत्या के प्रयास, लूट, अपहरण, बलवा जैसे तमाम जघन्य अपराध को अंजाम दिया। पिछले 42 साल में उसके विरुद्ध विभिन्न थानों में 101 मुकदमा लिखे जा चुके हैं, मगर किसी में उसे सजा नहीं हो पाई है। अब चार दशक बाद मंगलवार को पहली बार माफिया अतीक को सजा मिल सकती है।
इसी तरह खालिद अजीम उर्फ अशरफ को भी पहली दफा सजा मिल सकती है। उसके विरुद्ध भी अलग-अलग थानों में 52 मुकदमे दर्ज हैं। बसपा विधायक राजू पाल की हत्या के गवाह उमेश पाल का 28 फरवरी 2006 को दिनदहाड़े फांसी इमली सुलेम सरांय के पास से अपहरण कर लिया गया था। हथियारों से लैस कार सवार लोगों ने उमेश पाल को कार से अगवा करने के बाद अतीक के कार्यालय ले गए और रात पर पिटाई करने के बाद अगले दिन कोर्ट में माफिया के पक्ष में गवाही दिलवा दी थी। उस वक्त उमेश पाल जिला पंचायत सदस्य था।
घटना के बाद पांच जुलाई 2007 को धूमनगंज थाने में तत्कालीन सांसद अतीक अहमद, उसके भाई अशरफ, दिनेश पासी, अंसार और सौलत हनीफ के खिलाफ मुकदमा कायम किया था। अपहरणकांड के 17 साल बाद इस मुकदमे में निर्णय आएगा, जिसको लेकर सरगर्मी तेज है। जानकारों का कहना है कि अस्सी के दशक में खूनी खेल खेलने का सिलसिला अतीक ने शुरू किया तो कई साल तक चला।
इस दौरान उसने संगठित रूप से गिरोह तैयार करके अपराध कारित करने लगा। पुलिस ने अतीक के करीबियों की फेहरिस्त तैयार करते हुए गैंग चार्ट बनाया और उसका नाम दिया गया इंटर स्टेट-227। इस गैंग में सदस्यों के नाम समय-समय पर घटते-बढ़ते रहे हैं।