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सिद्धारमैया कर्नाटक के नए CM, जाने कैसा रहा कांग्रेस विरोधी से 'कट्टर' कांग्रेसी तक का सफर

जाने ऐसा क्या हुआ की साल 1999 के बाद सिद्दारमैया को कांग्रेस में शामिल होना पड़ा?

सिद्धारमैया कर्नाटक के नए CM, जाने कैसा रहा कांग्रेस विरोधी से 'कट्टर' कांग्रेसी तक का सफर

कर्नाटक को आखिरकार आज अपना मुख्यमंत्री और उपमुख्यमंत्री मिल ही गया। आज कांग्रेस के दिग्गज नेता सिद्धारमैया ने कर्नाटक के 30वें मुख्यमंत्री पद की शपथ ली। वहीं, डीके शिवकुमार ने नई सरकार में उप-मुख्यमंत्री पद की शपथ ली। इसके अलावा आठ से अधिक विधायकों को सिद्धारमैया मंत्री मंडल में शामिल किया जा रहा है।

कर्नाटक चुनाव से पहले राज्य के कद्दावर कांग्रेसी नेता और पूर्व मुख्यमंत्री सिद्दारमैया ने कहा था कि यह उनका आखरी चुनाव है। लेकिन अब जब कांग्रेस चुनाव जीत गई है तो सवाल उठ रहा था कि क्या आखिरी चुनाव की बात करने वाले सिद्दारमैया 'आखिरी' बार सीएम बनेंगे? 

चलिए हम आपको यहां सिद्दारमैया के राजनीतिक सफर पर ले जाएंगे जिनका कभी 'जनता परिवार' से करीब ढाई दशक तक का रिश्ता था और एक समय पर जिन्हें कांग्रेस विरोधी रुख के लिए जाना जाता था। 

मैसूर तालुका से की राजनीति की शुरुआत
देश आजाद होने के सालभर बाद 1948 में मैसूर जिले के वरुणा होबली में दूर दराज के गांव सिद्धारमन हुंडी में सिद्दारमैया का जन्म हुआ जिन्हें बाद में कई नेताओं द्वारा सिद्दू भी बुलाया गया। सिद्दू गरीब किसान परिवार से आते हैं जिन्होंने मैसूर विश्वविद्यालय से पहले बीएसी की डिग्री ली फिर कानून की पढ़ाई कर कुछ समय इसी पेशे में रहे। एक वक्ता के रूप में माहिर सिद्दारमैया डॉक्टर राम मनोहर लोहिया से प्रभावित थे। लोहिया यानी समाजवाद। दलितों और समाज के कमजोर वर्गों के लिए हमेशा खड़े रहने वाले सिद्दू ने फिर राजनीति में एंट्री ली।  तब सिद्धारमैया ने पहली बार मैसूर तालुका के लिए चुनाव लड़ा और जीत दर्ज की।

साल 1983 में सिद्दारमैया ने मैसूर जिले की चामुंडेश्वरी विधानसभा सीट से चुनाव लड़ा और जीत दर्ज कर 7वीं कर्नाटक विधानसभा के सदस्य के रूप में एंट्री की।पार्टी थी भारतीय लोक दल। इसके बाद वे सत्तारूढ़ जनता पार्टी में शामिल हो गए।1985 में फिर उपचुनाव हुए तो उन्होंने इसी सीट से दोबारा जीत दर्ज की। हालांकि 1989 का चुनाव वे कांग्रेस से हार गए थे।

सिद्दारमैया की जीत-हार चलती रही लेकिन वो मशहूर होते रहे। बाद में वे पिछड़ा वर्ग के लिए उम्मीद भी बनें। उन्हें आगे चलकर जनता दल का महासचिव बनाया गया। इस दौरान वह सरकार की कैबिनेट में भी शामिल हुए। 

कर्नाटक का उपमुख्यमंत्री और कन्नड भाषा
साल 1994 में उन्होंने फिर चामुंडेश्वरी से चुनाव लड़ा और जीते। इस बार उन्हें राज्य का उपमुख्यमंत्री बनाया गया, साथ ही कैबिनेट में वित्त और एक्साइज की जिम्मेदारी दी गई। कहा जाता है कि एक वित्त मंत्री के रूप में सिद्दारमैया का कार्यकाल अच्छा रहा। उनकी नीतियों ने राज्य का खजाना भरा, पिछली सरकारों के कर्ज चुकाए। कर्नाटक लेजिस्लेचर वेबसाइट के अनुसार, एक क्रेडिट रेटिंग कंपनी ने अपनी रिपोर्ट में कर्नाटक को देश में अच्छी वित्तीय स्थिति वाला राज्य बताया था। 

राज्य की सत्ता में रहते हुए कैबिनेट में उन्होंने वित्त के अलावा एनिमल हसबैंड्री, सेरिकल्चर, ट्रांसपोर्ट और शिक्षा मंत्री के रूप में भी काम किया।

इस दौरान सिद्दारमैया कन्नड़ वॉचडॉग कमेटी (कन्नड़ कवलू समिति) के पहले अध्यक्ष बने, जो आधिकारिक भाषा के रूप में कन्नड़ के कार्यान्वयन की निगरानी के लिए स्थापित की गई थी।

सिद्दारमैया को जुलाई 1999 में उपमुख्यमंत्री के पद से बर्खास्त कर दिया गया था।जनता दल के टूटने के बाद उन्होंने पूर्व पीएम एचडी देवेगौड़ा की जनता दल सेक्युलर का हाथ थामा और पार्टी के कर्नाटक प्रमुख बनाए गए।

1999 में वह विधानसभा चुनाव हार गए। अब तक तो सब नॉर्मल था, लेकिन फिर यहीं से कहानी में यू टर्न आया। मतलब इसके बाद ऐसा क्या हुआ कि उन्हें कांग्रेस में शामिल होना पड़ा?

देवेगौड़ा से अनबन और कांग्रेस की सदस्यता
साल 2004 के चुनाव में कर्नाटक में किसी भी पार्टी को बहुमत हासिल नहीं हुई, इसलिए जनता दल (सेकुलर) ने कांग्रेस के साथ मिलकर सरकार बना ली। मुख्यमंत्री बने कांग्रेसी धरम सिंह। लेकिन धरम सिंह के इस्तीफे के बाद सरकार टिक नहीं पाई। जेडीएस ने कांग्रेस का साथ छोड़ बीजेपी के साथ गठबंधन कर लिया तब जेडी (एस) के एचडी कुमारास्वामी पहली बार मुख्यमंत्री बने। कहा जाता है कि तब कांग्रेस ने सरकार बचाने के लिए सिद्दारमैया को जेडीएस से तोड़कर अपने साथ लाने की कोशिश की थी। लेकिन ऐसा कुछ हुआ नहीं। कांग्रेस के साथ सरकार में सिद्दारमैया उप मुख्यमंत्री भी थे। 

सिद्दारमैया धीरे-धीरे ये समझने लगे थे कि अगर जेडीएस की सरकार बनती है तो एचडी देवगौड़ा अपने बेटे कुमारस्वामी को मुख्यमंत्री बनाना चाहेंगे। सिद्दारमैया और देवगौड़ा के बीच फिर अनबन बढ़ने लगी। अनबन का नतीजा ये हुआ कि 2006 में सिद्दारमैया को जेडीएस ने पार्टी से बाहर कर दिया। तब सिद्दारमैया ने नई पार्टी बना ली जिसका नाम था ऑल इंडिया प्रोग्रेसिव जनता दल। लेकिन कुछ दिनों बाद ही अपने सहयोगियों के साथ वो कांग्रेस में शामिल हो गए। 

2006 के उपचुनाव में सिद्दारमैया ने कांग्रेस के टिकट पर चुनाव लड़ा और जीते। इसके बाद उन्होंने 2008 और 2013 में वरुणा सीट से चुनाव जीता और पहली बार राज्य के मुख्यमंत्री बने। 

2018 का चुनाव सिद्दू के लिए अच्छा नहीं रहा, उन्होंने 2018 में चामुंडेश्वरी और बादामी से चुनाव लड़ा जहां चामुंडेश्वरी में हार और बादामी में उन्हें जीत हासिल हुई। 

2023 में फिर उन्होंने वरुणा से चुनाव जीता और आज 20 मई को कर्नाटक के 30वें मुख्यमंत्री पद की शपथ ली।

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