निगरानी संस्था का आरोप: टोक्यो ओलंपिक खेलों के कवरेज में झलक रहा है लैंगिक भेदभाव
जेंडर मॉनिटरिंग कमेटी की इमोतो ने आरोप लगाया है कि जापानी मीडिया न सिर्फ महिला एथलीटों के प्रति भेदभाव बरत रहा है, बल्कि वह उन्हें पुरुष खिलाड़ियों जितनी गंभीरता से नहीं ले रहा है। उन्होंने कहा- ‘कई चैनल महिला खिलाड़ियों को ‘महिला’, लड़की, पत्नी या मां के रूप में ही पेश करते हैं।
ओलंपिक खेलों के दौरान लैंगिक समानता की निगरानी के लिए जापान में बनाई गई संस्था ने खेलों के कवरेज के दौरान महिला खिलाड़ियों के प्रति जारी भेदभाव पर एतराज जाहिर किया है। इस संस्था की प्रमुख नाओको इमोतो ने सोमवार को कहा- ‘जब खेलों की बात आती है, तो महिलाओं के प्रति पूर्वाग्रह से भरा नजरिया दिखने लगता है।’ इमोतो खुद भी पहले तैराक रह चुकी हैं। उन्होंने 1996 में हुए अटलांटा ओलंपिक में जापान का प्रतिनिधित्व किया था।
इमोतो ने आरोप लगाया है कि जापानी मीडिया न सिर्फ महिला एथलीटों के प्रति भेदभाव बरत रहा है, बल्कि वह उन्हें पुरुष खिलाड़ियों जितनी गंभीरता से नहीं ले रहा है। उन्होंने कहा- ‘कई चैनल महिला खिलाड़ियों को ‘महिला’, लड़की, पत्नी या मां के रूप में ही पेश करते हैं।’ टोक्यो ओलंपिक खेलों के दौरान लैंगिक समानता को खास महत्त्व दिया गया है। इसके लिए रोजाना के स्तर पर जेंडर मॉनिटरिंग कमेटी की प्रेस कांफ्रेंस होती है। ये पहल अंतरराष्ट्रीय ओलंपिक समिति (आईओसी) और टोक्यो खेल आयोजन समिति ने मिल कर की है।
टोक्यो ओलंपिक में जापान ने जो शुरुआती आठ पदक जीते, उनमें से पांच महिला खिलाड़ियों ने जीते थे। उनमें तीन स्वर्ण पदक भी शामिल थे। प्रेस कांफ्रेंस के दौरान इमोतो ने यह साफ जिक्र नहीं किया कि जापान का कौन सा टीवी चैनल लैंगिक भेदभाव वाली भाषा का इस्तेमाल कर रहा है। लेकिन इसके पहले एक इंटरव्यू में उन्होंने कहा था कि आम तौर पर जापानी मीडिया पुरुष और महिला खिलाड़ियों का कवरेज अलग-अलग नजरिए के साथ करता है। उन्होंने कहा था कि पुरुष खिलाड़ियों के निजी जीवन की चर्चा कोई नहीं करता। लेकिन महिला खिलाड़ी क्या खाती हैं और कैसे मुस्कराती हैं, आदि बातें मीडिया की खबर बनती हैं।
इमोतो के बयान के बाद सोशल मीडिया पर तीखी प्रतिक्रिया हुई। एक ट्विट में कहा गया- ‘मुझे यह सुन कर हैरत हुई कि महिलाएं इस पर शोर मचा रही हैं कि प्रोफेशनल स्पोर्ट्स के कवरेज में लैंगिक समानता नहीं है। आखिर इन महिलाओं के लिए पैसा कहां से आता है?’ पर्यवेक्षकों के मुताबिक सोशल मीडिया पर आई टिप्पणियों से यही जाहिर होता है कि जापानी समाज का बड़ा हिस्सा आज भी लैंगिक समानता की बात सुनने को तैयार नहीं है।
गौरतलब है कि इस साल फरवरी में जापान की ओलंपिक समिति के प्रमुख योशिरो मोरी को लिंगभेदी टिप्पणी करने के कारण अपना पद छोड़ना पड़ा था। मोरी ने कहा था कि महिलाएं बैठकों के दौरान बहुत बोलती हैं। उसके एक महीना बाद टोक्यो ओलंपिक खेलों के लिए नियुक्त क्रिएटिव डायरेक्टर हिरोशी ससाकी ने टेनिस खिलाड़ी नाओमी ओसाका की तुलना 'सुअर' से कर दी। तब उन्हें भी अपना पद छोड़ना पड़ा।
इन्हीं विवादों के बीच टोक्यो ओलंपिक के आयोजकों ने लैंगिक समानता वॉचडॉग के गठन का फैसला किया। इसके प्रमुख के तौर पर इमोतो की नियुक्ति हुई, जो संयुक्त राष्ट्र की संस्था यूनिसेफ के लिए काम करती हैँ। गौरतलब है कि अपने लिंगभेदी नजरिए के कारण जापानी मीडिया पहले भी कठघरे में खड़ा होता रहा है।
टोक्यो स्थित ग्रैजुएट स्कूल में पत्रकारिता की शिक्षक काओरी हयाशी ने पिछले दिनों एक सम्मेलन में कहा था कि जापानी मीडिया पर पुरुष हावी हैं। इसीलिए वह लैंगिक स्टीरियो टाइप इमेज बनाने में जुटा रहता है। जापानी समाचार एजेंसी क्योदो की एक खबर के मुताबिक जापान के न्यूज चैनलों में सर्वोच्च पद पर एक भी महिला नहीं है। अखबारों के चार प्रमुख इंडस्ट्री एसोसिएशनों में कुल 159 लोग हैं, जिनमें सिर्फ तीन महिलाएं हैं। जापान दुनिया के विकसित देशों में एक है। लेकिन वर्ल्ड इकॉनमिक फोरम की जेंडर गैप रैंकिंग में इस साल उसे 30वें नंबर पर बताया गया था।