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मिसाल: सड़क हादसे में घायल बीटेक छात्रा स्वीटी को बचाने के लिए कैसे दोस्त, पुलिसवाले और अजनबी आए साथ

ग्रेटर नोएडा में नए साल से ठीक पहले कार सवार ने स्वीटी समेत तीन दोस्तों को रौंद दिया था। हादसे के बाद स्वीटी कोमा में चली गई। स्वीटी की जान बचाने के लिए उसके दोस्तों ने अपनी पूरी ताकत झोंक दी। यहां तक की कॉलेज में पढ़ने वाले इन दोस्तों ने लाखों रुपये का फंड तक इलाज के लिए इकठ्ठा कर लिया।

मिसाल: सड़क हादसे में घायल बीटेक छात्रा स्वीटी को बचाने के लिए कैसे दोस्त, पुलिसवाले और अजनबी आए साथ

नए साल के जश्न से ठीक पहले ग्रेटर नोएडा में स्वीटी को एक कार सवार रौंदते हुए फरार हो गया था। इसमें उसके दो दोस्त भी घायल हुए थे। ये हादसा उसी रात को हुआ था जब दिल्ली कंझावला की घटना हुई थी। हालांकि कई लोगों की कोशिश के बाद से स्वीटी की जान बच गई। बीटेक छात्रा स्वीटी को एक तरफ रौंद कर फरार हो जाने वाले अज्ञात कार चालक ने अमानवीयता दिखाई। वहीं दूसरी तरफ स्वीटी के दोस्तों, टीचर और न जाने कितने अनजान लोगों ने उसे मौत के मुंह से बाहर निकाल लिया। ये सब जिंदगी और मौत के बीच जूझ रही स्वीटी के लिए दिन-रात खड़े रहे। यहां तक की पुलिसकर्मियों ने भी स्वीटी की जान बचाने के लिए अपनी एक दिन की सैलरी दान की। परिवार और दोस्तों ने ऐसा दिन भी देखा जब वो एक-एक रुपये के मोहताज थे और एक दिन ऐसा आयाा जब स्वीटी की जान बचाने के लिए लोगों ने लाखों रुपये डोनेशन में दे दिए। कई दिन मौत से जंग लड़ने वाली स्वीटी ने जब पहली बार आंख खोली और दो शब्द बोले तो उसके दोस्त भी खुशी से रो पड़े। स्वीटी के मां-बाप को भी कहना पड़ा कि मेरी बेटी भाग्यशाली है, जो उसे ऐसे दोस्त मिले।

ग्रेटर नोएडा में जब स्वीटी का एक्सीडेंट हुआ, तब पिता शिव 1 हजार किलोमीटर से अधिक दूर पटना के दनियावां गांव में अपने घर पर थे। एक्सीडेंट की जानकारी मिलने के बाद वो अगले दिन ही पहुंच सकते थे। हालांकि इस दौरान उन्हें मदद के लिए भटकना नहीं पड़ा। इसकी सबसे बड़ी वजह थी, स्वीटी के दोस्त, टीचर, कॉलेज के साथी और कुछ अजनबी। स्वीटी की जान बचाने की अपील पर सब एक जुट हो गए थे। स्वीटी के सीनियर आशीर्वाद मणि त्रिपाठी कहते हैं, "सुना था घर से दूर दोस्त ही आपका परिवार होता है। अब देख भी लिया।" आशीर्वाद और करण पांडे एक्सीडेंट का पता चलने के बाद सबसे पहले कैलाश अस्पताल पहुंचे थे, जहां उसे भर्ती कराया गया था। करसोनी और अंगनबा भी वहीं थे। उन्हें मामूली चोटें आई थीं, लेकिन स्वीटी बेहोश थी। आशीर्वाद ने आगे कहा, हमें बताया गया था कि उसके सिर में गंभीर चोटें आई हैं और कई फ्रैक्चर हुए हैं। 31 दिसंबर को नया साल सेलिब्रेट करने के लिए स्वीटी, उसकी फ्लैटमेट करसोनी और अंगनबा कुछ सामान लेने बाहर गए थे। वापस लौटते समय फ्लैट के पास ही एक कार ने उन्हें टक्कर मार दी थी।

अस्पताल में दोस्त ने किया फॉर्म पर साइन
स्वीटी की फ्लैटमेट और कॉलेज में जूनियर करसोनी डोंग ने बताया कि एक जोरदार टक्कर से मैं गिर गई थी और कुछ सेकंड के लिए बेहोश थी। जब मुझे होश आया, तो मैंने देखा कि स्वीटी के कानों से खून बह रहा है। मैंने उसके दिल की धड़कन की जांच की। एक राहगीर ने हमें अस्पताल पहुंचाया। कुछ लोगों ने हमें बताया कि यह एक सफेद सैंट्रो थी। अस्पताल में सबसे पहले प्रतिक्रिया देने वाले सिर्फ स्वीटी के करीबी दोस्त थे और वे घबरा रहे थे। स्वीटी के कान से खून बह रहा था और वह बेहोश थी। डॉक्टरों ने कहा कि उसे ब्रेन ट्रॉमा इंजरी है। आशीर्वाद ने बताया कि "हमें उसके माता-पिता से संपर्क करना था, लेकिन उसका फोन पासवर्ड लॉक था।" रात करीब 11 बजे हादसे के करीब दो घंटे बाद उसके पिता शिव से बात हो पाई। हालांकि सर्जरी के लिए इंतजार नहीं किया जा सकता था और डॉक्टरों को इलाज के लिए सहमति की जरूरत थी। वह सबसे कठिन हिस्सा था, क्योंकि उसके माता-पिता यहां नहीं थे और ऑपरेशन तुरंत किया जाना था। ऐसे में आशीर्वाद ने फॉर्म पर साइन किए। फिर इलाज के लिए पैसा जुटाना सबसे बड़ी चुनौती थी। सबसे पहले आशीर्वाद और करण ने अपने जानने वाले दोस्तों के जरिए 40 हजार रुपये इकट्ठा किए। दूसरी तरफ शिवम सिंह, करण और स्वीटी के बैचमेट ने हिट एंड रन का पुलिस केस दर्ज कराया। अगले दिन, करण और अन्य लोग इलाज में और पैसे की जरूरत की अपील लेकर कॉलेज की सभी क्लास में स्टूडेंट्स के बीच गए।

कॉलेज के टीचर और कर्मचारियों ने भी की मदद
एक अन्य छात्र प्रतीक मिश्रा ने कॉलेज कैंटीन में छात्रों से 500 रुपये के डोनेशन कैंपेन की शुरुआत की। इसके बाद स्वीटी के क्लासमेट ही नहीं, जूनियर और टीचर ने भी हेल्प की। इससे 60 हजार रुपये मिले, लेकिन अभी ये काफी नहीं था। 3 जनवरी तक स्वीटी कोमा में थी और अस्पताल का बिल 2.5 लाख रुपए तक आ चुका था। ये बिल चुका पाना उसके माता-पिता की क्षमता से परे था। तभी सोशल मीडिया पोस्ट चल निकले। व्हाट्सएप से इंस्टाग्राम और लिंक्डइन और 'जीएनआईओटी कन्फेशन' नाम के एक कॉलेज ग्रुप पर स्वीटी के लिए इमोशनल अपील की गई। स्वीटी के केस में चुनौती जितनी कठिन थी, लोगों का समर्थन उतना ही मजबूत होता गया। ग्रेटर नोएडा इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी यानी स्वीटी के कॉलेज में एडमिशन सेल के हेड पंकज सिंह ने कहा, "स्वीटी के इलाज के लिए पैसा इकट्ठा करने के लिए टीचर और कॉलेज के कर्मचारी मिशन मोड में चले गए। हम सभी यह देखकर प्रेरित हुए कि कैसे छात्र स्वीटी के पीछे एक दीवार की तरह खड़े हैं।

कॉलेज में कैसे सबकी लाडली बनी स्वीटी
इसके आगे ग्रेटर नोएडा की एक टेक फर्म में काम करने वाले आशीर्वाद ने बताया कि स्वीटी को पसंद करने की सबके पास खास वजह थी। वो सबकी लाडली है। सभी दोस्त उसकी हिम्मत की तारीफ करते हैं। आशीर्वाद ने बताया कि नवंबर 2021 में कॉलेज के एक स्पोर्ट्स इवेंट था। स्वीटी को एक रिले दौड़ में भाग लेना था, लेकिन उसने मना कर दिया। आखिरकार, हम उसे इसमें हिस्सा के लिए मनाने में कामयाब रहे, उसकी टीम ने सिल्वर मेडल जीता। कॉलेज के साथ ही उसकी कहानी सोशल मीडिया और न्यूजपेपर में भी छा गई। इसमें जिक्र किया गया कि ग्रामीण पटना की लड़की, एक खेतिहर मजदूर की बेटी, जिसने डिग्री और नौकरी हासिल करने के लिए घर से दूर अपना रास्ता बना लिया है। इसमें चर्चा था कि वो माता-पिता को एक बेहतर जीवन देगी, जिसने कई लोगों के दिल को छुआ।

पुलिसकर्मियों ने एक झटके में जुटाए 10 लाख रुपये
गौतमबुद्धनगर पुलिस कमिश्नर लक्ष्मी सिंह ने कहा कि कुछ मामले आप के दिल को छू जाते हैं। स्वीटी के माता-पिता से बात करते हुए हमें परिवार की विनम्र पृष्ठभूमि के बारे में पता चला। उन्होंने अपनी बेटी को जीवन में कुछ बड़ा हासिल करने के लिए भेजा। अब हमें कुछ ऐसा करना था जो पुलिसिंग से परे हो। इसके बाद लक्ष्मी सिंह ने नोएडा में पुलिसकर्मियों से स्वीटी के इलाज के लिए एक दिन का वेतन दान करने के लिए कहा। इससे तुरंत 10 लाख रुपये इकठ्ठा हो गए। स्वीटी के लिए इलाज के लिए तब तक फंड 29 लाख रुपये तक पहुंच गया। उन्होंने बताया कि हमने शुरुआत में 5 लाख रुपये का लक्ष्य रखा था, लेकिन छात्रों ने खुद ही 7 लाख रुपये जमा कर लिए थे।

स्वीटी ने सबसे पहले पूछा, मेरा फोन कहां है?
आशीर्वाद ने बताया कि दोस्तों के लिए 4 जनवरी का दिन राहत भरा था, जब स्वीटी कोमा से बाहर आई। वहीं 8 जनवरी को उसने पहली बार बात की और पूछा कि उसका फोन कहां है। स्वीटी को अपने फोन का पासवर्ड भी याद था, ये सब देखकर कुछ दोस्त खुशी से रोने लगे। फिलहाल, स्वीटी कैलाश अस्पताल में न्यूरोसर्जन की कड़ी निगरानी में है। अस्पताल के निदेशक डॉ. बीके शर्मा ने बताया कि 1 जनवरी को हेड सर्जरी के बाद स्वीटी अच्छी तरह से ठीक हो रही है, उसने थोड़ा बोलना शुरू कर दिया है। वो अपने परिवार को पहचानती है। एक बार जब वह अधिक स्थिर हो जाएगी, तो ऑर्थोपेडिक का आगे का इलाज जारी रहेगा। फिलहाल स्वीटी न्यूरोसर्जन डॉ. आलोक दुबे की देखरेख में है। अस्पताल के ऑर्थोपेडिक स्पेशलिस्ट डॉ. भरत दुर्गिया ने बताया कि हमने स्वीटी का इलाज शुरू करने और उसकी ऑर्थोपेडिक सर्जरी की तैयारी करने की अनुमति मांगी थी, लेकिन डॉक्टरों ने कुछ और समय मांगा है। उन्होंने कहा, सर्जरी के लिए एनेस्थीसिया देना होगा। इससे पहले उसकी हेड इंजरी को ठीक करना होगा। स्वीटी के बाएं पैर में टिबिया और फाइबुला की हड्डी टूट गई है, जिसके लिए सर्जरी की जरूरत है। वहीं उसके दाहिने पैर में फ्रैक्चर है, जिसे प्लास्टर से ठीक किया जाएगा।

क्या खराब होगा स्वीटी का आखिरी साल?
स्वीटी इलेक्ट्रिकल एंड कम्युनिकेशन में बीटेक कर रही है। 6 जनवरी से उसके आखिरी सेमेस्टर का पेपर शुरू हो चुका है, लेकिन एक्सीडेंट की वजह से वजह से वो इसमें शामिल नहीं हो पाई। इससे उसका एक साल खराब हो सकता है। GNIOT के निदेशक धीरज गुप्ता ने बताया कि स्वीटी एक मेधावी छात्रा रही है। हालांकि वह नियमों से बंधे हुए हैं, लेकिन उसके मामले को डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम टेक्निकल यूनिवर्सिटी भेजने की बात कही। अगर यूनिवर्सिटी उचित समझे, तो वह उसके लिए एक विशेष परीक्षा आयोजित कर सकता है, जब स्वीटी पेपर लिखने लायक ठीक हो जाए। अगर ऐसा संभव नहीं हुआ तो उसे अगले साल पेपर देना पड़ेगा।

पिता ने कहा- मेरी बेटी है भाग्यशाली
हालांकि दूसरी तरफ स्वीटी के पिता कहते है कि ये सब बाद की बात है। अभी सबसे जरूरी बात ये है कि उनकी बेटी जिंदा है। इतना सब उसके दोस्तों और कई अनजान लोगों की मदद से संभव हो पाया। मेरी बेटी भाग्यशाली है कि उसे ऐसे दोस्त मिले। मेरे लिए इतना पैसा और बाकी सब कर पाना कल्पना से परे था। इसके साथ ही वो भारी तनाव के बीच कुछ राहत की सांस लेते हैं।

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