दारोगा बनी बेटी को सैल्यूट करना चाहते हैं हेड कांस्टेबल पिता, आइएएस-आइपीएस बनने का है आकांक्षा का सपना
बेटी के दारोगा पद पर चयन होने के बाद हेड कांस्टेबल के सपनों को पंख लग गए हैं। पिता चाहते हैं कि ट्रेनिंग के बाद बेटी की भी पहली पोस्टिंग उन्नाव में हो। जब वह सामने आए तो फक्र से सीना चौड़ा हो जाए।
उन्नाव: गोद रूपी पालने में जिस बेटी को झुलाया, अंगुली पकड़कर चलना सिखाया, आज उसी बेटी को सैल्यूट करने के लिए हेड कांस्टेबल पिता बेताब है। बेटी के दारोगा पद पर चयन होने के बाद हेड कांस्टेबल के सपनों को पंख लग गए हैं। पिता चाहते हैं कि ट्रेनिंग के बाद बेटी की भी पहली पोस्टिंग उन्नाव में हो। जब वह सामने आए तो फक्र से सीना चौड़ा हो जाए और सैल्यूट करने के लिए हाथ मस्तक तक अपने आप पहुंच जाएं।
मूल रूप से गोंडा जनपद के वजीरगंज क्षेत्र के नौबस्ता गांव निवासी पुलिस विभाग में हेड कांस्टेबल परमानंद पांडेय की वर्ष 2009 में उन्नाव जीआरपी में तैनाती हुई थी। पांच साल यहां रहने के बाद वर्ष 2014 में सिविल पुलिस में जिले में ही तैनाती मिल गई। पत्नी सरोज, बेटे अनुराग, आकाश व बेटी आकांक्षा के साथ यही किराए के घर में रहने लगे।
बच्चों ने सदर क्षेत्र के सेंट ज्यूड्स कालेज में शिक्षा ग्रहण की। तीनों बच्चे पढ़ाई में अव्वल रहे। बेटा अनुराग एनडीए टॉपर रहा। वर्तमान में लेफ्टिनेंट कैप्टन के पद पर जम्मू में तैनात है। वहीं दूसरा बेटा आकाश एमबीबीएस करने के बाद लखनऊ में डॉक्टर है।
बेटी आकांक्षा भी भाई अनुराग से प्रेरित होकर सिविल की तैयारी करने लगी। इसी बीच उसने वर्ष 2022 की दारोगा भर्ती की परीक्षा दी। पहली बार में ही उसे सफलता मिल गई। पुलिस विभाग में बेटी का चयन होने पर हेड कांस्टेबल पिता परमानंद फूले नहीं समा रहे हैं। मौजूदा समय में वह सोहरामऊ थाना की पीआरवी 2915 के कमांडर है।
यूपीएससी में चयन है लक्ष्य
आकांक्षा ने बताया कि वह यूपीएससी की तैयारी कर रही है। उसका सपना आइएएस/आइपीएस बनने का है। पुलिस विभाग में अपनी जिम्मेदारी का निर्वहन करते हुए वह इस मुकाम तक पहुंचकर रहेगी। अपनी सफलता का श्रेय वह अपने माता-पिता और दोनों भाइयों को देती है।
उन्नाव की माटी को मस्तक पर लगाया
हेड कांस्टेबल परमानंद पांडेय कहते हैं कि उनकी जन्मभूमि गोंडा जरूर रही पर कलम और शौर्य की धरा उन्नाव से जो मिला वह किसी ऋण से कम नहीं। सेवाकाल के 14 वर्ष उन्नाव में गुजारे। यहां की माटी से बच्चों को जो संस्कार मिले, उसका आज यह प्रतिफल है कि सभी अपने-अपने मुकाम पर हैं।