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DSP जिया उल हक मर्डर केस में राजा भैया के खिलाफ नहीं होगी जांच, इलाहाबाद HC ने पलटा CBI कोर्ट का फैसला

साल 2013 के जिया उल हक मर्डर केस में आरोपी रहे राजा भैया को इलाहाबाद हाई कोर्ट से बड़ी राहत मिली है। कोर्ट ने स्पेशल सीबीआई अदालत के उस आदेश को खारिज कर दिया है, जिसमें मर्डर केस में राजा भैया की भूमिका को लेकर आगे जांच करने के आदेश दिए गए थे।

DSP जिया उल हक मर्डर केस में राजा भैया के खिलाफ नहीं होगी जांच, इलाहाबाद HC ने पलटा CBI कोर्ट का फैसला

उत्तर प्रदेश के कुंडा में पुलिस अधिकारी जिया-उल-हक की हत्या मामले में विधायक रघुराज प्रताप सिंह उर्फ राजा भैया को इलाहाबाद हाई कोर्ट से बड़ी राहत मिली है। हाई कोर्ट ने सीबीआई की विशेष अदालत के उस आदेश को खारिज कर दिया है, जिसमें जिया-उल हक हत्याकांड में राजा भैया की भूमिका की जांच करने का आदेश दिया गया था। साल 2014 में पर्याप्त सबूत न मिलने के कारण सीबीआई ने राजा भैया को क्लीन चिट देकर अंतिम रिपोर्ट दाखिल कर दी थी लेकिन सीबीआई कोर्ट ने इस रिपोर्ट को खारिज कर आगे की जांच का आदेश दे दिया था।

मामला 2 मार्च 2013 का है। प्रतापगढ़ जिले के बालीपुर गांव में तत्कालीन कुंडा सर्कल अधिकारी और पुलिस उपाधीक्षक (डीएसपी) जियाउल हक, ग्राम प्रधान नन्हे लाल यादव और उनके भाई सुरेश की गोली मारकर हत्या कर दी गई थी। कुंडा के तत्कालीन विधायक राजा भैया हत्या के नामजद आरोपियों में से एक थे। घटना की जांच कर रही सीबीआई ने 5 आरोपियों के खिलाफ चार्जशीट दाखिल की थी। घटना के एक साल बाद 2014 में सीबीआई ने इस केस की फाइनल रिपोर्ट दाखिल कर दी थी।

इसके बाद लखनऊ की सीबीआई अदालत के स्पेशल न्यायिक मैजिस्ट्रेट ने इस रिपोर्ट को खारिज कर दिया था और मामले की आगे जांच करने के आदेश दे दिए थे। सीबीआई ने स्पेशल कोर्ट के इस फैसले के खिलाफ इलाहाबाद हाई कोर्ट में याचिका दाखिल की थी। इस पर सुनवाई करते हुए 25 नवंबर को पारित अपने आदेश में हाई कोर्ट ने कहा कि 8 जुलाई 2014 को पारित विवादित आदेश को निरस्त किया जाता है।

मामले में आदेश देने वाले जस्टिस दिनेश कुमार सिंह ने कहा कि तथ्यों पर नजर डालें तो लगता है कि स्थानीय विधायक राजा भैया मामले की जांच के दौरान स्वेच्छा से पॉलीग्राफी टेस्ट से गुजरे थे। इस दौरान उनके खिलाफ कोई सबूत नहीं मिले थे। ऐसे में कोर्ट को लगता है कि स्पेशल कोर्ट का आदेश कानूनन अस्थिर है और यह तथ्यों की बजाय मैजिस्ट्रेट की धारणाओं पर आधारित है। इसके अलावा जिया उल हक की पत्नी परवीन आजाद के लगाए आरोपों की पुष्टि भी नहीं की जा सकी क्योंकि वह कोई सबूत पेश नहीं कर सकी थीं। कोर्ट ने कहा कि मैजिस्ट्रेट के फैसले से साफ लगता है कि उनका आदेश अपराध की फिर से जांच को लेकर था। न कि उसकी आगे की जांच के लिए था।

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