पीएम मोदी के ड्रीम प्रॉजेक्ट DME पर घोटाला नॉनस्टॉप, अब जांच अधिकारी सस्पेंड
डीएमई के लिए अधिग्रहीत की गई जमीन के मुआवजे में करीब 22 करोड़ रुपये का घोटाला किया गया था। जांच में पाया गया कि गांव मटियाला और रसूरपुल सिकरोड़ की जमीन का गलत तरीके से 22 करोड़ रुपये का मुआवजा हासिल किया गया। शासन की ओर से इस कथित घोटाले को काफी गंभीरता से लिया गया था, लेकिन पहली एफआईआर के मामले में आरोपी गोल्डी गुप्ता और अरुण गुप्ता को कोर्ट से जमानत मिल गई।
दिल्ली मेरठ एक्सप्रेसवे (डीएमई) पीएम नरेंद्र मोदी के ड्रीम प्रॉजेक्ट में से एक है। इसका इंतजार गाजियाबाद और आसपास के शहरों के लोगों ने बेसब्री से किया। शिलान्यास से लेकर उद्घाटन तक यह प्रॉजेक्ट लगातार चर्चा में बना रहा, लेकिन इसकी जितनी चर्चा हुई, उतना ही यह अब विवादों में भी है। विवाद की वजह इसके लिए किए अधिग्रहीत की गई जमीन के मुआवजे में हुआ खेल है। इस प्रकरण में थाना सिहानी गेट में केस दर्ज होने के बावजूद जांच अधिकारी बनाए गए सब-इंस्पेक्टर की जांच में ढिलाई और आरोपियों की गिरफ्तारी के बावजूद कोर्ट में सही साक्ष्यों के साथ मजबूती से पैरवी न करने के कारण दो आरोपियों को जमानत मिल गई। इस मामले में डीएम के निर्देश पर एसएसपी मुनिराज ने जांच अधिकारी अखिलेश सिंह को सस्पेंड कर दिया है। हालांकि सूत्रों का दावा है कि इस मामले में शासन की ओर से भी नाराजगी दिखाने पर निलंबन की कार्रवाई की गई है। फिलहाल अब घोटाले की जांच क्राइम ब्रांच को सौंपी गई है।
क्या है मामला
डीएमई के लिए अधिग्रहीत की गई जमीन के मुआवजे में करीब 22 करोड़ रुपये का घोटाला किया गया था। जांच में पाया गया कि गांव मटियाला और रसूरपुल सिकरोड़ की जमीन का गलत तरीके से 22 करोड़ रुपये का मुआवजा हासिल किया गया। इस मामले में अशोक सहकारी समिति के सचिव अरुण गुप्ता और सदस्य गोल्डी गुप्ता पर यह आरोप लगा। प्रकरण की जांच डीएम के निर्देश पर एडीएम प्रशासन रितु सुहास ने एसडीएम सदर से कराई थी। इस मामले में 22 एफआईआर अलग-अलग तरह से थाना सिहानी गेट में दर्ज हो चुकी हैं।
शासन ने दिखाई गंभीरता
शासन की ओर से इस कथित घोटाले को काफी गंभीरता से लिया गया था, लेकिन इस प्रकरण में दर्ज पहली एफआईआर के मामले में आरोपी गोल्डी गुप्ता और अरुण गुप्ता को कोर्ट से जमानत मिल गई। इस प्रकरण की जानकारी जैसे ही शासन तक पहुंची तो शासन ने कोर्ट में साक्ष्यों के साथ मजबूती से पेश न होने के कारण जांच अधिकारी को जिम्मेदार माना। एडीएम प्रशासन रितु सुहास ने बताया कि इस घोटाले में दर्ज एफआईआर की जांच कर रहे पुलिस सब-इंस्पेक्टर अखिलेश सिंह को सस्पेंड किया गया है। अगर ठीक से कोर्ट में केस की पैरवी की जाती तो इस मामले में घोटाले के आरोपियों को जमानत नहीं मिलती। इस मामले में जांच अधिकारी को प्रथम दृष्टा में दोषी मानते हुए उन्हें निलंबित किया गया है।
कैसे किया था घोटाला
दिल्ली निवासी गोल्डी गुप्ता और अरुण गुप्ता ने फर्जी तथ्यों के आधार पर अशोक सहकारी समिति गठित की थी। इस समिति में एक दर्जन से अधिक सदस्य बनाए गए। इस समिति के नाम से ही गांव मटियाला और गांव रसूलपुर सिकरोड़ के कई खसरों की जमीन की खरीद की गई। जबकि यह जमीन डीएमई के लिए अधिग्रहण की वजह से एनएचएआई की ओर से थ्री डी घोषित हो चुकी थी। वर्ष 2016 में जमीन की खरीद फरोख्त की गई। जिन समितियों के नाम जमीन खरीदी गई उनका रजिस्ट्रेशन वर्ष 1999 में इस समिति का पंजीकरण निरस्त कर दिया गया था। जिस जमीन की खरीद फरोख्त हुई वह सीलिंग श्रेणी की थी। जिसका बाद में करीब 22 करोड़ रुपये मुआवजा लिया गया।
जांच में कई कर्मचारी भी फंस सकते हैं
इस मामले में एक जांच गोपनीय स्तर पर भी चल रही है। सीलिंग श्रेणी की जमीन को कैसे किसी ने खरीद लिया और उसकी रजिस्ट्री भी हो गई। मगर किसी को इसकी खबर तक नहीं हुई है। इस मामले में अब विभागीय जांच भी चल रही है। माना जा रहा है कि इस मामले में अभी रेवेन्यू विभाग के कई और कर्मचारी भी फंस सकते हैं।
जांच अब क्राइम ब्रांच को
डीएमई में जमीन के मुआवजे में हुए करीब 22 करोड़ रुपये के घोटाले को लेकर शासन भी गंभीर है। माना जा रहा है कि इसी कारण जांच अधिकारी पुलिस सब इंस्पेक्टर अखिलेश सिंह को निलंबित किया गया है। अब शासन ने इस घोटाले से जुड़ी सभी एफआईआर की जांच क्राइम ब्रांच के हवाले कर दी है। माना जा रहा है कि अब इस मामले में एफआईआर के आधार पर जांच गंभीरता के साथ होगी।
डीएमई के लिए अधिग्रहण में डीएम भी फंस चुके हैं
डीएमई अधिग्रहीत जमीन के मुआवजे में भ्रष्टाचार का मामला कोई नया नहीं हैं। इससे पहले निर्धारित किए गए मुआवजे से दस गुना अधिक तक मुआवजा देने के मामले में गाजियाबाद के पूर्व डीएम डीएम निधि केसरवानी और विमल शर्मा समेत एक एडीएम पर भी आरोप लग चुके हैं। 20 जुलाई 2016 से 28 अप्रैल 2017 तक गाजियाबाद की डीएम रहीं मणिपुर कैडर की आईएएस अफसर निधि केसरवानी पर आरोप लगे थे कि उन्होंने दिल्ली एक्सप्रेस वे के लिए तय किए गए रेट से छह गुना अधिक का मुआवजा देकर सरकार को रेवन्यू का नुकसान पहुंचाया है। वहीं इससे पूर्व डीएम रहे विमल कुमार शर्मा ने भी अवॉर्ड राशि में 10 गुना से अधिक मुआवजा दे दिया। इसी जमीन में एडीएम रहे घनश्याम सिंह भी जांच के घेरे में आ चुके हैं।