बाहुबली माफिया मुख्तार अंसारी पर चला कोर्ट का डंडा, इलाहाबाद हाईकोर्ट ने सुनाई 7 साल की सजा
माफिया मुख्तार अंसारी को हाईकोर्ट से तगड़ा झटका लगा है। मुख्तार अंसारी को हाईकोर्ट ने 7 साल की सजा सुनाई है। होईकोर्ट ने आलमबाग थाने के एक आपराधिक मामले में मुख्तार अंसारी को दोषी करार दिया।
माफिया मुख्तार अंसारी को हाईकोर्ट से तगड़ा झटका लगा है। मुख्तार अंसारी को हाईकोर्ट ने 7 साल की सजा सुनाई है। होईकोर्ट ने आलमबाग थाने के एक आपराधिक मामले में मुख्तार अंसारी को दोषी करार दिया और 7 साल कारावास की सजा सुनाई है। जानकारी के मुताबिक, मुख्तार अंसारी के खिलाफ साल 2003 में आलमबाग कोतवाली में केस दर्ज हुआ था। तत्कालीन जेलर SN द्विवेदी ने मुकदमा दर्ज कराया था। जस्टिस दिनेश कुमार सिंह की बेंच ने लखनऊ के तत्कालीन जेलर को धमकाने के मामले में मुख्तार अंसारी को सजा सुनाई है।
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने उत्तर प्रदेश के पूर्व विधायक मुख्तार अंसारी को 2003 में एक जेलर को गाली देने और जान से मारने की धमकी देने के मामले में सात साल की जेल की सजा सुनाई है। मुख्तार के पक्ष में पारित बरी के आदेश को रद्द करते हुए जस्टिस दिनेश कुमार सिंह की पीठ ने जेलर को उसके कर्तव्य का निर्वहन करने से रोकने के इरादे से उसकी ओर पिस्तौल तानकर आपराधिक बल का इस्तेमाल करने के लिए धारा 353 आईपीसी के तहत अन्य धाराओं में सजा सुनाई है।
शिकायतकर्ता एसके अवस्थी के अनुसार वे 2003 में जिला जेल लखनऊ में जेलर के रूप में तैनात थे। 23 अप्रैल 2003 को सुबह लगभग 10:30 बजे जेल के अंदर बंद मुख्तार अंसारी से कुछ लोग मिलने आए। शिकायतकर्ता ने उसकी तलाशी लेने का आदेश दिया, जिससे उस समय विधायक रहे मुख्तार अंसारी काफी नाराज हो गए। उन्होंने कहा, “आप अपने आपको बहुत ऊंचा समझते हैं। आप आने वाले लोगों को मुझसे मिलने में बाधा पैदा करते हैं।” इस पर जेलर अवस्थी ने अंसारी से कहा कि ये लोग बिना तलाशी लिए अंदर नहीं आ सकते। इस पर अंसारी ने कहा, “तुम जेल से बाहर आओ, मैं तुम्हें मार डालूंगा।” इसके अलावा, उन्होंने जेलर के साथ गाली-गलौज की और एक व्यक्ति से रिवॉल्वर लिया जो उससे मिलने आया था और शिकायतकर्ता की ओर तान दिया।
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हाईकोर्ट के समक्ष राज्य-अपीलकर्ता की ओर से उपस्थित अतिरिक्त सरकारी अधिवक्ता ने प्रस्तुत किया कि अंसारी का नाम आम जनता और यहां तक कि सरकारी अधिकारियों के दिलों और दिमागों में भय और दहशत फैलाता है और वह जेल को अपनी सत्ता की सीट के रूप में मानता था। जहां उसके लोग आ सकते थे और जेल अधिकारियों द्वारा बिना किसी रोक या बाधा के हथियार लेकर किसी भी समय उनसे मिल सकते थे और जब जेलर अवस्थी ने जेल बुक और जेल मैनुअल के अनुसार आगंतुकों को विनियमित करने की कोशिश की तो अंसारी इसे बर्दाश्त नहीं कर सके।
कोर्ट ने शुरू में कहा कि घटना की जगह, घटना के स्थान पर आरोपी की उपस्थिति, शिकायतकर्ता की उपस्थिति और तथ्य के गवाह विवाद में नहीं हैं। इसके अलावा, कोर्ट ने कहा कि अंसारी को खुंखार अपराधी और माफिया डॉन के रूप में जाना जाता है, जिस पर जघन्य अपराधों के 60 से अधिक मामले हैं। अदालत ने आगे कहा कि शिकायतकर्ता (जेलर) की परीक्षा दिसंबर 2003 को पूरी हो गई थी, हालांकि, आरोपी ने उस दिन उससे जिरह नहीं की और जिरह का अधिकार बंद कर दिया गया।
इस बीच शिकायतकर्ता जल्द ही सेवानिवृत्त हो गया और 10 साल बाद धारा 311 सीआरपीसी के तहत आरोपी द्वारा शिकायतकर्ता को फिर से वापस बुलाने के लिए एक आवेदन दायर किया गया। इसे अजीब पाते हए कोर्ट ने एजीए के प्रस्तुतीकरण में सार पाया कि बाद में आरोपी द्वारा शिकायतकर्ता को दबाव में ले लिए जाने पर उक्त गवाह को वापस बुलाने के लिए एक आवेदन दायर किया गया जिसे अनुमति दी गई और फिर शिकायतकर्ता ने अपने परिवार के सदस्यों की सुरक्षा के डर से कथित तौर पर जिरह में अभियोजन पक्ष के मामले का पूरी तरह से समर्थन नहीं किया। नतीजतन रिकॉर्ड पर लाए गए सबूतों का विश्लेषण करते हए,ॉ अदालत ने कहा कि यह साबित होता है कि अंसारी ने शिकायतकर्ता को जेलर के रूप में अपने कर्तव्य का निर्वहन करने से रोकने के इरादे से उसकी पिस्तौल तानकर आपराधिक बल का इस्तेमाल किया। कोर्ट ने उसे आईपीसी की धारा 353, 504 और 506 के तहत दोषी ठहराया।