गाेमती में लगी आस्था की डुूबकी, लखनऊ में केले के तने से बनी नावों को भी किया गया प्रवाहित
पहले नाव के सहारे ओडिशा के व्यापारी जावा सुमात्रा व श्रीलंका जैसे कई देशों में कारोबार के लिए जाते थे। बारिश के बाद शुरू होने वाली यात्रा के दौरान कोई बाधा न आए और व्यापार आगे बढ़े इसके लिए पूजा की जाती थी।
कार्तिक पूर्णिमा पर गंगा स्नान कर दान पुण्य करने की सनातन परपंरा का निर्वहन भी किया जाता है। सुबह ग्रहण का सूतक लगने से पहले सुबह नौ बजे के पहले श्रद्धालुओं ने गोमती में डुबकी लगाई। आदि गंगा गोमती के घाटों पर श्रद्धालुओं ने आस्था की डुबकी लगाई और गरीबों को दान दिया।
कुड़ियाघाट पर पिछले साल के मुकाबले स्नान करने वालों की संख्या अधिक रही। झूलेलाल घाट के साथ ही संझिया व अग्रसेन घाट पर भी लोगों ने स्नान किया। लक्ष्मण मेला घाट के अलावा खदरा के शिव मंदिर घाट ओम ब्राह्मण समाज के धनंजय द्विवेदी ने स्नान कर आदि गंगा गोमती को निर्मल व स्वच्छ बनाने का संकल्प लिया।
कार्तिक पूर्णिमा से करीब डेढ़ महीने तक लगने वाला ऐतिहासिक कतकी मेला भी नजर आया। आचार्य शक्तिधर त्रिपाठी ने बताया कि कार्तिक मास की पूर्णिमा सोमवार से शुरू हुई। उदया तिथि के चलते मंगलवार को स्नान दिन किया।
आचार्य एसएस नागपाल ने बताया कि मान्यता है कि भगवान शिव ने त्रिपुरासुर नामक असुर का वध कार्तिक पूर्णिमा को ही किया था और विष्णु जी का मत्स्य अवतार भी इसी दिन को हुआ था। देवताओं ने इसी दिन दीपावली मनाई थी। हालांकि एक दिन पहले सोमवार को ही देव दीपावली ग्रहण के चलते मना ली गई।
भजनों के बीच नावें हुईं प्रवाहित : उड़िया समाज की ओर से बोइटो वंदना के तहत मंगलवार को झूलेलाल घाट पर भोर में केले के तने से बनी नावों को प्रवाहित किया गया। समाज के डीआर साहू ने बताया कि जल मार्ग से व्यापार की शुरुआत का पर्व बोइटो वंदना है। सुबह झूलेलाल घाट पूजन के साथ नाव प्रवाहित की गई। इस अवसर पर उप्र पावर कारपोरेशन के महानिदेशक सतर्कता एसएन साबत सहित समाज के लोग मौजूद थे।
इसलिए मनाया जाता है बोइटो वंदना : बाबा साहेब भीमराव आंबेडकर केंद्रीय विश्वविद्यालय गृह विज्ञान विभाग की विभागाध्यक्ष प्रो. सुनीता मिश्रा ने बताया कि हर साल कार्तिक पूर्णिमा का त्योहार मनाया जाता है। मान्यता है कि पहले नाव के सहारे ओडिशा के व्यापारी नाव के सहारे जावा, सुमात्रा व श्रीलंका जैसे कई देशों में कारोबार के लिए जाते थे। बारिश के बाद शुरू होने वाली यात्रा के दौरान कोई बाधा न आए और व्यापार आगे बढ़े, इसके लिए पूजा की जाती थी। सदियों पुरानी परंपरा अभी भी जीवंत है।