गोंडा: न इलाज मिला, न एंबुलेंस, लिखी बाहर की दवा; बीमार पिता को कंधे पर लादकर घर ले गया बेटा
यूपी के गोंडा से ध्वस्थ स्वास्थ्य व्यवस्था और अमानवीय तस्वीर सामने आई है। पैसे न होने और इलाज के आभाव में जब बेटे ने पिता को अस्पताल से घर ले जाना चाहा, तो एंबुलेंस तक नहीं मिली।
योगी सरकार भले ही स्वास्थ्य सुविधाओं को बेहतर बनाने के लिए तरह-तरह का प्रयास कर रही हो, लेकिन सरकारी अस्पताल में गरीबों को बिना जेब ढीली किए इलाज नहीं मिल पा रहा है। इस बात की पोल तब खुली जब कर्नलगंज तहसील के हलधरमऊ ब्लाक निवासी शिव भगवान अपने वृद्ध पिता जीवबोध को लेकर दर-दर भटकता रहा। गोंडा के जिला अस्पताल में पहले बेहतर इलाज नहीं मिला। फिर जब घर जाने के लिए एंबुलेंस तक नहीं मिली। इसके बाद उसने 30 किलोमीटर दूर स्थित घर तक पिता को अपने कंधों पर ले जाना तय किया।
शिव भगवान ने बताया कि पिता को खांसी और सांस लेने में दिक्कत थी। करीब 4 दिनों तक कर्नलगंज सीएचसी पर इलाज कराया। कोई आराम न मिलने पर वहां के अधीक्षक ने इन्हें जिला अस्पताल के लिए रेफर कर दिया। 20 मई को शिव भगवान ने अपने पिता को जिला अस्पताल में भर्ती कराया गया। आरोप है कि वहां पर वार्ड में तैनात नर्स ने फाइल बनाने के नाम पर एक सौ रुपए की मांग की गई। रुपया न होने के कारण वह नहीं दे सका तो उसे डेंगू वार्ड में डाल दिया गया। इस दौरान नर्स ने उसे बाहर से 2 इंजेक्शन मंगाने के लिए कहा गया तो उसने किसी तरह 590 रुपए के 2 इंजेक्शन का बाहर से इंतजाम किया।
पैसे न मिलने पर कही रेफर करने की बात
4 दिनों में सिर्फ वही दो इंजेक्शन लगाकर अस्पताल से कोई भी दवा नहीं दी गई। पैसा न मिलने से नाराज नर्स बार-बार वृद्ध को लखनऊ रेफर करने की बात कहती रही। पीड़ित गरीब नर्स के सामने गिड़गिड़ाता रहा कि पैसे नहीं हैं लखनऊ कैसे लेकर जाएं। लेकिन अस्पताल के कर्मचारियों को इस गरीब पर जरा सी भी दया नहीं आई। इस दौरान वृद्ध दर्द से चिल्लाता रहा। बेटा अस्पताल कर्मचारियों को पैसे न होने की दुहाई देता रहा। लेकिन किसी ने बेटे की बात नहीं सुना। इलाज के अभाव में वृद्ध ने खाना पानी भी खाना बंद हो गया।
न इलाज, न एंबुलेंस, लिखी बाहर की दवा
पिता की हालत अत्यधिक नाजुक होने पर उसने कहा कि साहब जब इलाज नहीं हो रहा है, तो मेरे पिताजी को एंबुलेंस से घर भिजवा दीजिए। अस्पताल के कर्मचारियों ने बताया गया कि एंबुलेंस सिर्फ मरीजों को लाती है और वापस छोड़ने नहीं जाती है। तुम जैसे भी चाहो इनको घर ले जाओ यहां से कोई व्यवस्था नहीं हो पाएगी। बेटे को जब कोई उपाय नहीं सूझा तो उसने अपने बीमार वृद्ध पिता को कंधे पर लादकर 30 किलोमीटर दूर अपने घर पैदल चलने का निर्णय लिया।सीएमओ राधेश्याम केसरी से इस पर पूछा गया तो उन्होंने अपना पल्ला झाड़ते हुए अस्पताल के प्रमुख चिकित्सा अधीक्षक से बात करने की सलाह दी।