एक विवाह ऐसा भी! दूल्हे ने धनुष तोड़ लिए फेरे, डीजे की जगह गूजीं रामचरित मानस की चौपाइयां
उत्तर प्रदेश के जालौन में खास तरह की शादी का आयोजन हुआ। धनुष तोड़ने के बाद दूल्हे ने दुल्हन को वरमाला पहनाई। वहीं डीजे के गानों के बजाय यहां रामचरित मानस की चौपाईयों के साथ फूलों की बारिश की गई। शादी का ये वीडियो सोशल मीडिया पर भी वायरल हो रहा है।
जहां एक तरफ आजकल शादी के पलों को यादगार बनाने के लिए इवेंट्स मैनेजमेंट का सहारा लिया जाता है। वहीं जालौन में एक ऐसी शादी का आयोजन हुआ जिसे देख लोग हैरत में पड़ गए। इस खास तरह की शादी में ऐसे कार्यक्रमों का आयोजन हुआ, जिसने लोगों को भगवान श्री राम और माता सीता के स्वयंवर की याद दिला दी। यहां बुधवार को हुई शादी में दूल्हे ने फिल्मी गानों की धुन पर नहीं, बल्कि रामचरित मानस की चौपाइयों के बीच धनुष छोड़ तोड़कर लड़की के गले में वरमाला पहनाई।
दरअसल, पूरा मामला जालौन के कदौरा नगर का है। यहां पर भाजपा मंडल मंत्री की बेटी पूनम की शादी हमीरपुर के रहने वाले आशुतोष से तय हुई थी। आशुतोष के पिता संतराम वर्मा तय समय पर बारात को लेकर अपनी बधू की विदाई के लिए पहुंचे। शादी के कार्यक्रम में कुछ इस तरह से अयोजन किए गए जैसे मानो किसी स्वयंवर का आयोजन किया गया हो। दूल्हा आशुतोष पर मंच पर आता है तो रामचारित मानस की चौपाइयों का उद्घोष शुरु हो जाता है। तभी दूल्हा धनुष तोड़ते हुए पूनम के गले में वरमाला पहना देता है। इसके बाद शादी में मौजूद लोग दोनों पर पुष्पवर्षा करते हुए जय-जय कार करना शुरू कर देते हैं।
खरज चौपाई से शुरु हुई शादी
शादी में गायक और ग्रामीणों की मंडली रामचरित मानस के सीता विवाह प्रसंग का मधुर पाठ कर रही है। देसी वाद्यों का संगीत इसे और कर्णप्रिय बना रहा था। गायक खरज से चौपाई उठाते हैं, 'लेत चढ़ावत खेचत गाढ़े, काहुं नलखा देखि सबु ठाढ़े। तेहि छन राम मध्य धनु तोरा, भरे भुवन धुनि घोर कठोरा...। दूल्हा धनुष तोड़ता है और उस पर फूलों की बारिश होने लगती है। सैकड़ों कंठ सियाराम की जय-जयकार करने लगते हैं।
मानस एक ग्रंथ नही, बल्कि हर शब्द में अचूक मंत्र
बेटी के विवाह के वक्त माता-पिता की आंखों में खुशी के आंसू थे। पिता कामता और मां सावित्री देवी ने बताया कि चरित मानस रामचरितमानस एक पुस्तक नहीं बल्कि इसकी चौपाइयां अचूक मंत्र है। ग्रामीणों के सहयोग से भगवान श्री राम के स्वयंवर के तर्ज पर बेटी का विवाह संपन्न हुआ। सभी से प्रार्थना है कि मर्यादा पुरुषोत्तम के विचारों का स्मरण कर उनके पदचिन्हों पर चलना सीखे।