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चाय-शिकंजी बेचती हैं योगी की बहन, बोलीं- हमारी हालत देखकर दुखी न हों महाराज

राखी की बात आते ही शशि ने कहा, “हर साल भेजती हूं, अपने हाथों से कब बांध पाऊंगी अब नहीं पता। उनके साथ बिताया हर पल याद आता है।”

चाय-शिकंजी बेचती हैं योगी की बहन, बोलीं- हमारी हालत देखकर दुखी न हों महाराज

UP के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के गांव पंचूर से 50 किलोमीटर दूर पहाड़ों पर कोठार गांव बसा है। उनकी बहन शशि इसी गांव में रहती हैं। कोठार से ढाई किलोमीटर दूर पहाड़ पर पार्वती मंदिर है। मंदिर के पास ही योगी की बहन की चाय-नाश्ते, प्रसाद और शिकंजी की दुकान है।

चारा काट कर गाय-भैंस को खिलाना होता है, इसलिए जल्दी घर चली जाती हैं
योगी के जीजा ने बताया, “जब दुकान में ज्यादा काम नहीं होता तब वो शाम को 4-5 बजे तक घर चली जाती हैं। उन्हें गाय-भैंस के खाने के लिए चारा काटने जाना होता है। घर के और भी काम होते हैं। जब दुकान पर ज्यादा काम होता है तब ही देर रात तक रुकती हैं।"

खेती से घर नहीं चल पा रहा था, इसलिए झोपड़ी में शुरू की थी चाय- नाश्ते की दुकान
शशि से ये पूछने पर कि वे चाय की दुकान कब से चला रही हैं और क्यों? उन्होंने कहा, “हमारे यहां पहाड़ों में ज्यादा खेती नहीं होती। जो थोड़ा बहुत उगाओ तो जानवर खा जाते हैं। गाय-भैंस पालने से घर नहीं चल पा रहा था। इसलिए हमने 2010 में यहां एक छोटी सी झोपड़ी बना कर चाय-नाश्ते और प्रसाद की दुकान शुरू कर दी। लोग माता पार्वती के दर्शन करने आते हैं तो हमारी दुकान भी चल जाती है। कोरोना लॉकडाउन लगा था तब हमने खुद से ही इसमें टीन डाल दिया। अब दुकान ठीक हो गई है। बरसात में पानी अंदर नहीं आता।”

आगे वे मुस्कुराते हुए बोलीं, “दुकान ठीक होने के बाद हमने यहां महाराज जी की फोटो लगाई थी। एक ऐसी ही फोटो घर पर भी लगाई है।”

योगी को इतना भावुक नहीं होना चाहिए, बिना काम करे हम कैसे खाएंगे
जब शशि से ये पूछा गया कि, “एक टीवी इंटरव्यू में आपकी तस्वीर देख कर योगी की आंखों में आंसू आ गए थे। उनके मुंह से शब्द नहीं निकल रहे थे। आपने देखा?” वो बोलीं, “हां देखा था। महाराज जी को इतना भावुक नहीं होना चाहिए, हमारा तो ये रोज का काम है। हम खुश हैं, उनको ये समझना चाहिए। छोटे गांव का जीवन ऐसा ही है। बिना काम किए कोई कैसे खाएगा? ये कहने के बाद बहन की आंखों में आंसू भर आए।”

“योगी ने डोली उठाई, मेरी शादी के फेरों में सारी रस्में उन्हीं ने निभाई थीं”
शशि ने भरी हुई आवाज में बताया, “शादी से पहले महाराज जी के साथ लम्बा वक्त गुजारा। हम सब भाई बहन साथ हंसते-खेलते थे। योगी शुरुआत से ही अलग स्वाभाव के थे। मुस्कुराते हुए सबको समझाते थे कि सही रास्ते पर चलो।”

“5 मार्च, 1991 में मेरी शादी हो गई। मेरी शादी में योगी ने ही सारी रस्में निभाई थीं। फेरों के वक्त खील-बताशे वही डाल रहे थे। मेरी डोली भी उन्हीं ने उठाई थी। शादी के बाद मेरी ससुराल भी आया करते थे। जब ऋषिकेश में पढ़ाई करते थे तब दिल्ली से पैदल मेरे गांव आया करते थे। मेरी छोटी सी बेटी से उन्हें बहुत लगाव था। उसको देखने आया करते थे। उस समय ये रोड नहीं बनी थी।”

राखी की बात आते ही शशि ने कहा, “हर साल भेजती हूं, अपने हाथों से कब बांध पाऊंगी अब नहीं पता। उनके साथ बिताया हर पल याद आता है।”

“मम्मी की उम्र हो गई है, उनसे मिलने आना ही पड़ेगा”
शशि रोते हुए बोलीं, “मम्मी की उम्र हो गई हैं। वो 84 साल की हो गई हैं। पिता जी के जाने के बाद उनकी याददाश्त भी कमजोर हो गई है। महाराज जी पिता जी के अंतिम संस्कार में भी शामिल नहीं हो पाए थे। अब उनको मम्मी से मिलने आना ही चाहिए। एक बार मम्मी से मिल लेंगे तो उनका मन भर जाता कि मेरा बेटा यहां आ गया। हम सब की तरह मम्मी भी उनको महाराज जी ही बोलती हैं। मम्मी से मिलने आएंगे तो हम भी उनसे मिल लेंगे।”

योगी से क्या चाहती हैं वाले सवाल पर शशि जी ने कहा, “हम उनसे कुछ नहीं चाहते, बस एक बार मां से मिल लें।”

“पिता से योगी की गंभीर बातें हुआ करती थीं”
संन्यास लेने के पहले महाराज जी पिता जी से बोला करते थे- पिता जी आपने इतने बड़े जीवन में क्या किया बच्चों को पालने के अलावा। पिता जी बोला करते थे, बेटा मैंने 80-85 रुपए की तनख्वाह में अपने बच्चों को पाल लिया यही बहुत है। बेटा आपको देखेंगे आप कितनी जनता की सेवा कर पाते हो। सबसे बड़ी खुशी की बात ये है कि पिता जी अपनी आंखों से देख कर चले गए कि लड़का मेरा कामयाब है।

“उत्तराखंड का विकास रुका हुआ है। योगी जी यहां के CM बनें”
मन थोड़ा हल्का होने के बाद शशि जी ने कहा, “योगी एक बार उत्तराखंड के मुख्यमंत्री बन जाते तो यहां भी कुछ परिवर्तन आ जाता।”

“हमारा यमकेश्वर ब्लॉक बहुत पिछड़ा ब्लॉक है। गांव से दुकान तक दो-ढाई किलोमीटर पैदल चल कर आती हूं। सड़क में गड्ढे और धूल ही धूल है। बरसात में गड्ढे और बड़े हो जाते हैं उनमें पानी भर जाता है। रात को कोई बीमार हो जाए तो रोड की वजह से जा नहीं पाते। नीलकंठ मंदिर में उत्तराखंड के साथ यात्री आते हैं। पार्किंग की व्यवस्था नहीं है। ATM की सुविधा नहीं है।”

योगी के जीजा से हुई बातचीत के हिस्से


योगी ने चुनाव जीतने के बाद की थी बात, 2019 में आखिरी बार मिले थे
योगी के जीजा पूरन सिंह पायल ने बताया, साल 2017 में मुख्यमंत्री बनने से पहले जब योगी यहां रितू खंडूरी के लिए प्रचार करने आए थे। उसी टाइम अपने गांव पंचूर भी गए थे तब उनके साथ खुल कर मिलना हुआ था।

2019 में ऋषिकेश आए थे तो हम उनसे मिलने गए थे। 10 मिनट के लिए मिल पाए थे। तब से मुलाकात नहीं हुई। शशि से उनकी बात त्योहारों में हो जाती है। अभी आखिरी बातचीत दोबारा चुनाव जीतने के दो दिन बाद हुई थी। बात PA के माध्यम से होती है।

“शशि रोती हैं, देख कर हमारी आंखों में भी आंसू आ जाते हैं”
“योगी जब पूरे समझदार हो गए थे तब उन्होंने संन्यास का फैसला लिया था। दो बड़ी बहनें स्कूल चली जाती थीं तो उनका सबसे ज्यादा वक्त शशि के साथ ही बीतता था। बहन की शादी के बाद यहां भी लगातार आते थे, रहते थे। इसीलिए वो शशि का नाम सुनकर भावुक हो जाते हैं और शशि भी कभी भी उनको याद करके रोने लगती है। शशि को देख कर हमारी आंखों में भी आंसू आ जाते हैं।”

“एक बेटा गेस्टहाउस चलाता है, दूसरा एम्स में लैब और बेटी रिसर्चर है”
बच्चों की बात करते हुए शशि और उनके पति ने बताया, “मेरा एक बड़ा बेटा अभिषेक नीलकंठ में 9 कमरे का गेस्ट हॉउस चलाता है। छोटा बेटा अरविंद एम्स में लैब में काम करता है। बेटी मोनिका पतंजलि, हरिद्वार में रिसर्चर है। अभी उसकी शादी करनी है।”

“वो योग जीवन में हैं, भावनाओं में डाल कर हम उनको कष्ट नहीं देना चाहते”
“योगी जी ने संन्यास धारण किया है। पूरे प्रदेश की जिम्मेदारी उनके कंधों पर है। अगर हम उनको भावनाओं में डालेंगे तो उन्हें कष्ट होगा, इसलिए हम उनसे खुद दूर रहना चाहते हैं। बस कभी-कभी फोन पर आशीर्वाद देते रहें। हमारे लिए बहुत बड़ी बात है। उनकी नेतृत्व करने की क्षमता शुरुआत से ही अच्छी है। मैं उनसे 8 साल बड़ा हूं, गलत होने पर मुझे भी टोक दिया करते थे। आखिरी बात यही कहूंगा, एक आखिरी बार मां से मिलने आ जाएं।”

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