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डिंपल यादव को सपोर्ट ना करते तो जयचंद कहलाने का था खतरा, अखिलेश के साथ आए शिवपाल की मजबूरी तो समझिए

पहले अखिलेश और फिर शिवपाल ने 'मिलन' की तस्वीरें सोशल मीडिया पर साझा कीं। लेकिन यह सबकुछ इतना भी आसान नहीं है, बल्कि इसके पीछे शिवपाल की मजबूरी छिपी है। शिवपाल ने अपील करते हुए बहू को वोट देने की बात कही। अगर वह ऐसा नहीं करते तो परिवार में जयचंद कहलाने का खतरा था।

डिंपल यादव को सपोर्ट ना करते तो जयचंद कहलाने का था खतरा, अखिलेश के साथ आए शिवपाल की मजबूरी तो समझिए

महज चार महीने पहले ही समाजवादी पार्टी से 'औपचारिक स्वतंत्रता' प्राप्त करने वाले प्रगतिशील समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष शिवपाल यादव एक बार फिर रिश्तों के 'अधीन' हो गए। सपा मुखिया अखिलेश यादव गुरुवार को अपनी पत्नी और मैनपुरी उम्मीदवार डिंपल यादव के साथ सैफई में शिवपाल यादव के घर पहुंचे। समर्थन और आशीर्वाद मांगा। कुछ ही देर में, पहले अखिलेश और फिर शिवपाल ने 'मिलन' की तस्वीरें सोशल मीडिया पर साझा कीं। लेकिन यह सबकुछ इतना भी आसान नहीं है, बल्कि इसके पीछे शिवपाल की मजबूरी छिपी है।

मैनपुरी में उपचुनाव की घोषणा के बाद शिवपाल ने अपने पत्ते नहीं खोले थे। लेकिन, पिछले दिनों बदले घटनाक्रम में शिवपाल-अखिलेश के बीच सब दुरुस्त नजर आने लगा है। सपा ने मंगलवार को शिवपाल को मैनपुरी उपचुनाव में स्टार प्रचारक बनाया। शिवपाल बुधवार को सैफई पहुंचे। गुरुवार को पहले अखिलेश, फिर डिंपल उनसे मिलने पहुंचीं। इसके बाद शिवपाल ने डिंपल को समर्थन का ऐलान कर दिया। उन्होंने अपील करते हुए बहू को वोट देने की बात कही। अगर वह ऐसा नहीं करते तो परिवार में जयचंद कहलाने का खतरा था।

रिश्ता पास लाया या सियासत
विधानसभा चुनाव के बाद शिवपाल के सुर अखिलेश के प्रति इतने तल्ख हो गए थे कि 23 जुलाई को सपा ने आधिकारिक चिट्ठी जारी कर कहा दिया, 'अगर आपको लगता है, कहीं ज्यादा सम्मान मिलेगा तो वहां जाने के लिए आप स्वतंत्र है।' इस पर शिवपाल ने भी जवाब दिया, 'औपचारिक स्वतंत्रता के लिए धन्यवाद। राजनीतिक यात्रा में सिद्धांतों और सम्मान से समझौता अस्वीकार्य है।'

हालांकि, चार महीने बाद शिवपाल की सम्मान की तलाश आखिरकार सपा दरवाजे पर ही पूरी हुई। इस हृदय परिवर्तन में महज रिश्तों की गर्माहट ही नहीं बल्कि सियासी संभावनाओं की आहट भी छुपी है। मैनपुरी उपचुनाव में मुलायम की विरासत बचाने के लिए एकजुटता का संदेश सपा के लिए जरूरी है, इसलिए अखिलेश एका का हर दरवाजा खटखटा रहे हैं।

नई पीढ़ी की राय जुदा
सपा से अलग राह चुनने के बाद भाजपा पर नर्म सुर के कारण शिवपाल की संभावनाएं भगवा दल से भी जोड़ी जाती रही हैं, लेकिन परिवार की नई पीढ़ी इसको लेकर बहुत सहज नहीं है। सूत्रों का कहना है कि डिंपल के उम्मीदवार घोषित होते ही आदित्य यादव ने प्रसपा प्रवक्ताओं को इस मुद्दे पर बोलने से मना कर दिया था। शिवपाल के बेटे आदित्य सपा के साथ ही सियासी भविष्य को बेहतर मान रहे हैं। यहां रिश्ते सुधरे तो अहमियत हमेशा ज्यादा रहेगी। लिहाजा, परिवार का दबाव भी शिवपाल पर था।

मैनपुरी लोकसभा उपचुनाव से पहले सपा और भाजपा के बीच वाक् युद्ध भी अपने चरम पर है। यूपी बीजेपी अध्यक्ष भूपेंद्र चौधरी ने शिवपाल और अखिलेश की मुलाकात पर तंज कसा तो सपा भड़क गई। चौधरी ने कहा कि शिवपाल अभी तक अलग-थलग थे लेकिन बीजेपी के प्रभाव से डरकर अखिलेश अब चाचा की शरण में चले गए हैं। इस पर पलटवार करते हुए सपा ने बीजेपी को कृतघ्न, लंपट और बेशर्म बता डाला। साथ ही बीजेपी के शीर्ष नेताओं अटल, आडवाणी और मुरली मनोहर जोशी को लेकर पार्टी पर बेहद तीखा हमला बोला।

शिवपाल यादव के सपोर्ट करने से सपा प्रत्याशी डिंपल की जीत आसान हो जाएगी। क्योंकि शिवपाल जसवंतनगर सीट से मौजूदा विधायक हैं वो मैनपुरी लोकसभा क्षेत्र में ही आते हैं। इस मुलाकात से स्पष्ट है कि आंतरिक कलह भी खत्म हो गई है। अब इनकी सीधी लड़ाई बीजेपी से ही है। साथ ही उनका ये भी कहना है कि शिवपाल यादव के पास भी डिंपल को सपोर्ट करने के अलावा कोई अन्य रास्ता नहीं था। यह मुलाकात चाचा-भतीजे के बीच चल रही तनातनी को दूर होने की दिशा में एक कारगर कदम माना जा सकता है।

अखिलेश-शिवपाल की मुलाकात पर ओपी राजभर ने कहा कि ऐसा पहली बार नहीं हुआ है जब दोनों लोग साथ आएं हों। बीते विधानसभा चुनाव में भी दोनों लोग मिलकर चुनाव लड़े थे, लेकिन नतीजे आते ही अलग-अलग अपना राग अलापने लगे थे। उन्होंने कहा इस मुलाकात से ना ही कोई फर्क पड़ने वाला है और ना ही कोई असर दिखने वाला है सिर्फ लोग माहौल बना रहे हैं। बीजेपी का भी कहना है कि जब चुनाव फंस गया तो शिवपाल याद आ रहे हैं।

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