मायावती ने बिगाड़े सपा के सियासी समीकरण:बसपा पहली बार सिंबल पर चुनाव लड़ी; सपा को 9 सीटों पर दिया झटका, गेमचेंज की 5 वजह
निकाय चुनाव में भाजपा ने विपक्षी दलों के मंसूबों पर पानी फेर दिया है, खासकर सपा की उम्मीदों पर। 3 दशक से निकाय चुनाव में बेहतर प्रदर्शन का दावा करने वाली सपा इस चुनाव में पिछली बार से भी फिसड्डी साबित हुई है। राजनीतिक जानकर मानते हैं कि सपा के खराब प्रदर्शन के पीछे बसपा प्रमुख मायावती का मुस्लिम कार्ड है। उन्होंने 17 मेयर सीटों पर 11 मुस्लिम चेहरे उतार कर सपा के वोट बैंक में सीधे सेंधमारी कर दी। पहली बार इस निकाय चुनाव में बसपा अपने सिंबल पर चुनाव लड़ी थी। बसपा की वजह से सपा 7 सीटों पर तीसरे नंबर पर और 9 सीटों पर दूसरे नंबर पर रही है।
सपा के कोर वोट बैंक को बसपा ने खूब साधा
सपा ने मेयर पद के लिए 4 मुस्लिम कैंडिडेट फिरोजाबाद से मशरूर फातिमा, सहारनपुर से नूर हसन मलिक, अलीगढ़ से जमीर उल्ला खां और मुरादाबाद से सैयद रईस उद्दीन पर भरोसा जताया। पार्टी ने केवल गाजियाबाद से यादव चेहरे के मेयर का टिकट दिया था। राजनीतिक जानकार मानते हैं कि मायावती ने 17 मेयर उम्मीदवारों में से 11 टिकट मुस्लिमों को दिए।
पार्टी ने पहले चरण के 10 सीटों पर उम्मीदवारों का ऐलान किया था। इसमें 6 मुस्लिम प्रत्याशी थे। इसके बाद दूसरे चरण के 7 उम्मीदवारों में से 5 मुस्लिम उम्मीदवार मेरठ, शाहजहांपुर, गाजियाबाद, अलीगढ़, बरेली से उतारे। यानी पार्टी की सपा के कोर वोटर्स में सेंध लगाने की पूरी कोशिश की गई।
अतीक-अशरफ एनकाउंटर के बाद बसपा ने लगाए थे आरोप
माफिया अतीक अहमद और अशरफ के एनकाउंटर के बाद बसपा प्रमुख मायावती ने सपा पर गंभीर आरोप लगाए थे। हालांकि मायावती ने प्रेस कॉन्फ्रेंस करके अतीक अहमद और उसके परिवार के किसी सदस्य को टिकट नहीं देने का ऐलान किया था। लेकिन मुस्लिमों का हितैषी होने का दावा भी कर दिया था।
राजनीतिक जानकार यह भी मानते हैं कि अतीक-अशरफ के एनकाउंटर के बाद मुसलमान एक तरफ सपा से नाराज दिखाई दिए। वहीं, उन्होंने विकल्प के तौर पर भाजपा को टक्कर देने के लिए बसपा को मजबूत माना।
पहली बार सिंबल पर लड़ी बसपा
2023 के निकाय चुनाव में बसपा ने पहली बार अपने सिंबल पर प्रत्याशियों को उतारा। इससे पहले बहुजन समाज पार्टी निकाय चुनाव में उम्मीदवारों को समर्थन देती थी। लेकिन अपना सिंबल नहीं देती थी। राजनीतिक जानकार यह भी मानते हैं कि भाजपा के कट्टर हिंदुत्व के मुद्दे की वजह भी समाजवादी पार्टी पर भारी पड़ी।
बसपा का मुख्य कैडर वोट दलित माना जाता है। पहली बार निकाय चुनाव में सिंबल पर बसपा के चुनाव लड़ने पर उसके वोटर्स ने खुलकर मतदान किया। सपा दलित, मुस्लिम और ओबीसी वोट बैंक के कार्ड को एक करने में सफल नहीं हो सकी।
सपा के सहयोगी दलों का साथ नहीं आया काम
2017 के विधानसभा चुनावों सपा, कांग्रेस के साथ गठबंधन में लड़ी और 47 सीटों पर सिमट गई थी। 2019 के लोकसभा चुनावों में अखिलेश यादव ने बसपा के साथ हाथ मिलाया था। यह एक ऐसा निर्णय था, जिसे पार्टी के वरिष्ठ नेताओं ने भी अस्वीकार कर दिया था। उस चुनाव में सपा को गठबंधन से कोई फायदा नहीं हुआ। हालांकि इस चुनाव में बसपा को फायदा हुआ और 10 लोकसभा सीटों पर जीत दर्ज की। इस चुनाव के तुरंत बाद गठबंधन टूट भी गया था। बाद के महीनों में सपा उपचुनावों में अपनी आजमगढ़ और रामपुर सीटें भी भाजपा से हार गई थी
इसके बाद साल 2022 में सपा ने राष्ट्रीय लोक दल (रालोद) सहित छोटे दलों के साथ गठबंधन किया, लेकिन यह भी काम नहीं आया। 2023 निकाय चुनाव से पहले अखिलेश यादव ने अपने चाचा शिवपाल यादव के साथ संबंध सुधारे, लेकिन यह प्रयास बहुत असरदार साबित नहीं हुआ। अब सपा कार्यकर्ता ही अखिलेश यादव के नेतृत्व पर सवाल उठा रहे हैं।
9 महापौर सीट पर सपा रही दूसरे नंबर पर
निकाय चुनाव के परिणाम के बाद भी सपा खुद का प्रदर्शन बेहतर मान रही है। सपा प्रमुख अखिलेश के नेतृत्व में पहली बार लड़ा गया यह चुनाव 17 नगर निगमों में से 9 सीट पर सपा और भाजपा की सीधी टक्कर रही। सपा गांव के निकाय चुनाव में भी सफल होने का दावा कर रही है।
सपा 9 महापौर की सीट पर दूसरे पायदान पर रही। 4 सीट सहारनपुर, मथुरा, गाजियाबाद और आगरा में बसपा दूसरे नंबर पर है। कांग्रेस शाहजहांपुर, मुरादाबाद और झांसी में दूसरे नंबर पर थी। वहीं, मेरठ में AIMIM नंबर दो पर रही है।
बसपा को भी नुकसान, 18 मई को मायावती करेंगी समीक्षा
सिर्फ अखिलेश को ही नहीं, निकाय चुनाव में मायावती को भी नुकसान हुआ है। इसकी समीक्षा के लिए उन्होंने 18 मई को बसपा पार्टी कार्यालय पर सभी कोआर्डिनेटर और जिला अध्यक्ष को बुलाया है। इस बार के निकाय चुनाव में 2017 के मुकाबले बसपा की न केवल सीट कम हुई, बल्कि वोट प्रतिशत भी काफी कम हो चुका है।