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राजगुरु की कर्मभूमि रहा बनारस, तो भगत सिंह को यहीं मिली शादी न करने की सलाह

शहीद भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु को मिलाने वाला और क्रांति को दिशा दिखाने वाला शहर बनारस ही रहा।

राजगुरु की कर्मभूमि रहा बनारस, तो भगत सिंह को यहीं मिली शादी न करने की सलाह

शहीद भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु का नाता काशी से बहुत गहरा रहा था। इन तीनों क्रांतिकारियों को मिलाने वाला और क्रांति को दिशा दिखाने वाला शहर बनारस ही रहा। 1924 में तीनों क्रांतिकारियों ने वाराणसी के शचींद्र नाथ सान्याल द्वारा बनाए गए हिंदुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशन को ज्वाइन किया। 'बनारस का बलवा' एक कविता में कहा गया है कि करो काम भारतवासी, जो राह तकाए तीनों जने। गुरु घराना तेलियाबाग है काशी निवासी तीनों जने।

काशी हिंदू विश्वविद्यालय, बालाजी घाट, रामकुंड, काशी विद्यापीठ और बेनिया अखाड़े के आसपास क्रांतिकारियों की गुप्त बैठकें होती थीं, जहां तीनों क्रांतिकारियों की आपस में मुलाकात होती थीं। राजगुरु जन्मजात मराठा थे, मगर उन्हे पहचान बनारस ने ही सबसे पहले दी। उन्होंने कर्मभूमि बनारस को बनाया। क्रांतिकारी रघुनाथ या राजगुरु महाराष्ट्र से स्कूली शिक्षा पूरी करने के बाद संस्कृत पढ़ने बनारस आ गए।

यहां पर हिंदू धर्म ग्रंथों का गहन अध्ययन किया। कुछ ही दिनों में राजगुरु बनारस के ज्ञानियों में शुमार हो गए। उनके साथ उठना-बैठना भी शुरू हो गया। महज 16 साल की उम्र में वह सबसे पहले चंद्रशेखर आजाद के संपर्क में आए। इसके बाद उन्होंने क्रांतिकारियों के संगठन हिंदुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिक एसोसिएशन को ज्वाइन कर लिया। इसी के बाद उनकी मुलाकात हुई शहीद-ए-आजम भगत सिंह से।

लिम्बडी हॉस्टल में रहे थे भगत सिंह

कलाविद अमिताभ भट्टाचार्य के अनुसार, HSRA की बैठक में भगत सिंह और राजगुरु की पहली मुलाकत हुई थी। एसोसिएशन की तरफ से जयदेव कपूर को संगठन को मजबूत करने के लिए बनारस भेजा। इसी दौरान भगत सिंह भी बनारस आए और जय देव के साथ काफी समय तक IIT-BHU तात्कालिक नाम (बनारस इंजीनियरिंग कॉलेज) के लिम्बडी हास्टल में रहे। उस दौरान BHU का पूरा कैंपस ही क्रांतिकारियों की जननी हुआ करती थी।

भगत सिंह ने मानी शचींद्र की बात

पूर्व विशेष कार्याधिकारी डॉ. विश्वनाथ पांडेय ने बताया कि भगत सिंह के जीवन की सबसे बड़ी दुविधा बनारस में ही दूर हुई थी। क्रांतिकारियों के गुरु बनारस के शचींद्र नाथ सान्याल ने भगत सिंह को शादी न करने की सलाह दी थी। इसके पहले भगत सिंह काफी पशोपेश और घर के दबाव में थे। शचींद्र नाथ ने बताया कि असली मातृभूमि की रक्षा करो और शादी का विचार फिलहाल त्याग दो। इसके बाद भगत सिंह की राह पूरी तरह बदल गई और उन्होंने अपने क्रांतिकारी जीवन में काफी ऊंचाइयां हासिल कीं।

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